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Productivity Wasted On The Delhi Roads – सड़कों पर बर्बाद होती उत्पादकता : आने-जाने में खर्च हो रहा है समय, रोज 3 करोड़ की हानि

उत्तर-पश्चिम दिल्ली के मुबारकपुर में विजेंद्र सिंह की रिहायश है। वह नौकरीपेशा हैं। आठ घंटे की ड्यूटी है। उन्हें हर दिन केंद्रीय सचिवालय जाना होता है। घर से दफ्तर की दूरी करीब 30 किमी है। बस का सफर है। वह जिन सड़कों से निकलते हैं, उनकी औसत चाल 40-60 किमी के बीच है। इसलिए रोजाना एक तरफ से करीब 40-50 मिनट लगने चाहिए, लेकिन सीधी बस मिलने के बाद भी अब औसतन दो घंटे का समय लगता है। दोनों तरफ से उनका करीब दो से ढाई घंटे का समय बेकार चला जाता है। इसे अगर कुल नौकरीपेशा लोगों के लिहाज से देखें तो कार और बाइक वालों की उत्पादकता का हर महीने करीब 93 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है। यानी, रोजाना लगभग तीन करोड़ की क्षति।

अकेले विजेंद्र सिंह की यह समस्या नहीं है, वाहनों के बोझ से कराहती सड़कों पर दिल्ली की करीब 33.28 फीसदी नौकरीपेशा आबादी इस समस्या से रोजाना दो-चार होती है। सफर छोटा हो या लंबा, चलना कार से हो या बाइक व बस से, सभी का अपने सफर में अतिरिक्त समय खर्च होता है। विशेषज्ञों का मानना है कि हर नौकरीपेशा का औसतन सवा से डेढ़ घंटे का समय ऑफिस और घर के बीच बर्बाद होता है। इससे दिल्ली के कुल कार्यबल का करीब एक हजार करोड़ रुपये तक उत्पादकता का सालाना नुकसान होता है।

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जिन लोगों के पास कार है, उनमें से करीब 13 फीसदी लोग ऑफिस जाने के लिए अपनी कार का इस्तेमाल करते हैं। बाइक रखने व ऑफिस जाने वालों का अनुपात 83 व 17 का है। संख्या के हिसाब से करीब 16.50-16.50 लाख लोग अपनी कार या बाइक का इस्तेमाल करते हैं। वहीं, 16.5 लाख लोग मेट्रो, बस, ऑटो, टैक्सी और ई-रिक्शा समेत दूसरे परिवहन विकल्पों को अपनाते हैं। बाकी करीब 40 फीसदी लोग पैदल या साइकिल अपनाते हैं। इनमें कम दूरी और आय वर्ग के लोगों को अधिक परेशानी होती है। मंजिल तक जल्दी पहुंचने के लिए मेट्रो या दूसरे विकल्प अपनाने के लिए उन्हें अधिक खर्च करना पड़ता है।

विशेषज्ञों ने कहा…

परिवहन सेवाओं का एकीकरण जरूरी
उत्पादकता का नुकसान कई वजहों से होता है। इसमें वाहनों की भारी तादाद के कारण लगने वाला जाम, आर्थिक तौर पर कमजोर वर्ग के लिए परिवहन सुविधाओं की उपलब्धता का अभाव और दिल्ली के हर कोने तक परिवहन सुविधाओं की सीधी पहुंच न होना है। कई बार दफ्तरों तक सीधी पहुंच न होने की वजह से भी लोग अपने नजदीक ही नौकरियां तलाशते हैं, ताकि उन्हें रोजाना परेशानियों से न गुजरना पड़ा। इससे भी नुकसान हो रहा है।

क्योंकि, काबिलियत होने के बाद भी बुनियादी सुविधाओं की कमी अगर किसी वर्ग के आगे बढ़ने में बाधा बनती है तो इसे दूर किया जाना चाहिए। हालात में सुधार के लिए जरूरी है कि सभी परिवहन सुविधाओं का एकीकृत किया जाए। इससे न केवल गंतव्य तक पहुंचना आसान होगा बल्कि सीधी कनेक्टिविटी से।
– संजय गुप्ता, डीन, स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर

अंदरूनी हिस्सों तक परिवहन साधनों की पहुंच से बढ़ेंगी सहूलियतें
आवागमन में सहूलियत के लिहाज से अभी भी दिल्ली के कुछ अंदरूनी हिस्से तक के लिए परिवहन सेवाएं जरूरत के मुताबिक नहीं हैं। इससे गंतव्य तक पहुंचने में अधिक वक्त के साथ खर्च भी होता है। खासतौर पर वित्तीय हालत कमजोर होने पर मेट्रो, टैक्सी या ऑटो में सफर करना इस वर्ग के लिए मुश्किल हो गया है।

बसों की संख्या में बढ़ोतरी हो, ताकि निजी वाहनों के बजाय अधिक से अधिक लोग सार्वजनिक परिवहन को अपनाएं। मल्टी मॉडल इंटीग्रेेशन को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए, जिससे दिल्ली में एक से दूसरी जगह पहुंचने में मेट्रो की तर्ज पर सुविधाएं मिल सके। लास्ट माइल कनेक्टिविटी बेहतर होने से देरी से बचना संभव है। कारों की तुलना में दिल्ली में दोपहिया वाहनों की संख्या काफी अधिक है, मगर सड़क पर दो बाइक की जगह एक कार ही चल सकती है। पहले किए गए एक अध्ययन में यह बात सामने आई कि दिल्ली के रिंग रोड पर एक मिनट में 90 कारें गुजरती हैं।
– अनन्या दास, डिप्टी प्रोग्राम मैनेजर, क्लीन एयर एंड सस्टेनेबल मोबिलिटी, सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट

निर्बाध परिवहन सेवा से वक्त की नहीं होगी बर्बादी 
सार्वजनिक परिवहन की सुविधाएं पर्याप्त न होने की वजह से लोगों को थोड़ी देरी जरूर होती है। लॉकडाउन के दौरान वर्क फ्रॉम होम के दौरान लोगों ने घर से काम किया। इसके तहत हफ्ते में दो-तीन दिन दफ्तरों से काम की सुविधा देने के लिए हाइब्रिड मॉडल को अपनाया जा सकता है। इससे पेट्रोल की बचत के साथ साथ कई और उत्पादकता भी कम नहीं होगी।

परिवहन व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जिससे लोगों को एक से दूसरी जगह जाने के लिए निर्बाध सेवा मिल सके। परिवहन क्षेत्र में दिल्ली में कई तकनीकी बदलाव आए हैं, मगर बसों की संख्या और लास्ट माइल कनेक्टिविटी जरूरत के मुताबिक होने से सहूलियत बढ़ सकेंगी। इसके प्रोडक्टिविटी लॉस के बजाय इसे समय का नुकसान कहा जा सकता है। कमजोर वर्ग के लोगों के लिए परिवहन विकल्पों में अंतर बढ़ने से मुश्किलें बढ़ गईं।
– प्रो. शोवन साहा, पूर्व निदेशक, स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर

यह आंकड़े जनगणना रिपोर्ट-2011, आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट, सीएसई की रिपोर्ट के साथ विशेषज्ञों से बातचीत के आधार पर निकाले गए हैं।

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