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Revision Summoned On The Issue Of Revision Of Salaries Of Mandis – मंडियों के पल्लेदारों के वेतन में संशोधन मुद्दे पर जवाब तलब

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नई दिल्ली। उच्च न्यायालय ने दिल्ली के कृषि बाजारों (मंडियों) में कार्यरत पल्लेदारों या हेड लोड श्रमिकों को देय वेतन में संशोधन नहीं करने के मुद्दे पर दायर याचिका पर दिल्ली सरकार व अन्य को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। यह याचिका जी-श्रेणी के लाइसेंस जारी करने से भी संबंधित है।
न्यायमूर्ति रेखा पल्ली ने दिल्ली एग्रीकल्चर मार्केट बोर्ड और एपीएमसी आजादपुर को भी तीन सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। अदालत ने सुनवाई 16 फरवरी तय की है। यह याचिका राष्ट्रीय हमाल पंचायत असंगठित कामगार यूनियन ने दायर की है। यूनियन में आजादपुर मंडी में काम करने वाले पल्लेदार शामिल हैं।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि अधिकारियों के प्रतिनिधित्व के बावजूद 1980 से पल्लेदारों के वेतन में संशोधन नहीं करने सहित विभिन्न बुनियादी मुद्दों को याचिका में उठाया गया है। इसके अलावा याचिका में उन्हें लाइसेंस जारी करने का मुद्दा भी उठाया गया है।
दिल्ली कृषि उत्पाद विपणन (विनियमन) सामान्य नियम के अनुसार प्रतिवादियों का कर्तव्य है कि वे पल्लेदारों को देय शुल्क को पीस रेट के आधार पर तय करें। हालांकि यह दावा किया गया है कि उक्त शुल्क को 1980 से वैधानिक रूप से संशोधित नहीं किया गया है। इसलिए यह उचित पारिश्रमिक के उनके वैध अधिकार का घोर उल्लंघन है।
इसके अलावा, याचिका दिल्ली कृषि उत्पाद विपणन (विनियमन) अधिनियम की धारा 80 और नियमों के नियम 15 पर निर्भर है जो दो रुपये के वार्षिक शुल्क पर इन पल्लेदारों को निशुल्क जी-श्रेणी के लाइसेंस जारी करने का प्रावधान करती है।
याचिका में कहा गया है कि लाइसेंस और बैज के अभाव में श्रमिकों के पास कोई दस्तावेजी सबूत या एपीएमसी के साथ कोई औपचारिक मान्यता या संबंध नहीं है। इससे शोषण होता है। पल्लेदारों के लिए कोई सुरक्षा या काम उपलब्ध नहीं है और किसी भी दुर्घटना की स्थिति में वे कानूनी रूप से मंडी में अपना अस्तित्व साबित नहीं कर सकते हैं।

नई दिल्ली। उच्च न्यायालय ने दिल्ली के कृषि बाजारों (मंडियों) में कार्यरत पल्लेदारों या हेड लोड श्रमिकों को देय वेतन में संशोधन नहीं करने के मुद्दे पर दायर याचिका पर दिल्ली सरकार व अन्य को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। यह याचिका जी-श्रेणी के लाइसेंस जारी करने से भी संबंधित है।

न्यायमूर्ति रेखा पल्ली ने दिल्ली एग्रीकल्चर मार्केट बोर्ड और एपीएमसी आजादपुर को भी तीन सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। अदालत ने सुनवाई 16 फरवरी तय की है। यह याचिका राष्ट्रीय हमाल पंचायत असंगठित कामगार यूनियन ने दायर की है। यूनियन में आजादपुर मंडी में काम करने वाले पल्लेदार शामिल हैं।

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि अधिकारियों के प्रतिनिधित्व के बावजूद 1980 से पल्लेदारों के वेतन में संशोधन नहीं करने सहित विभिन्न बुनियादी मुद्दों को याचिका में उठाया गया है। इसके अलावा याचिका में उन्हें लाइसेंस जारी करने का मुद्दा भी उठाया गया है।

दिल्ली कृषि उत्पाद विपणन (विनियमन) सामान्य नियम के अनुसार प्रतिवादियों का कर्तव्य है कि वे पल्लेदारों को देय शुल्क को पीस रेट के आधार पर तय करें। हालांकि यह दावा किया गया है कि उक्त शुल्क को 1980 से वैधानिक रूप से संशोधित नहीं किया गया है। इसलिए यह उचित पारिश्रमिक के उनके वैध अधिकार का घोर उल्लंघन है।

इसके अलावा, याचिका दिल्ली कृषि उत्पाद विपणन (विनियमन) अधिनियम की धारा 80 और नियमों के नियम 15 पर निर्भर है जो दो रुपये के वार्षिक शुल्क पर इन पल्लेदारों को निशुल्क जी-श्रेणी के लाइसेंस जारी करने का प्रावधान करती है।

याचिका में कहा गया है कि लाइसेंस और बैज के अभाव में श्रमिकों के पास कोई दस्तावेजी सबूत या एपीएमसी के साथ कोई औपचारिक मान्यता या संबंध नहीं है। इससे शोषण होता है। पल्लेदारों के लिए कोई सुरक्षा या काम उपलब्ध नहीं है और किसी भी दुर्घटना की स्थिति में वे कानूनी रूप से मंडी में अपना अस्तित्व साबित नहीं कर सकते हैं।

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