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Suggestion of Parliamentary Committee- Teach Vedas and Gita in school books; History of Sikh, Maratha, Jat, Gurjar-tribals should be included | संसदीय समिति का सुझाव- स्कूल की किताबों में वेद और गीता पढ़ाएं; सिख, मराठा, जाट, गुर्जर-आदिवासियों का इतिहास शामिल हो

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नई दिल्ली21 मिनट पहलेलेखक: अनिरुद्ध शर्मा

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संसद की स्थायी समिति ने किताबों के कंटेंट-डिजाइन में सुधार की रिपोर्ट सौंपी। - Dainik Bhaskar

संसद की स्थायी समिति ने किताबों के कंटेंट-डिजाइन में सुधार की रिपोर्ट सौंपी।

स्कूली किताबों में सुधार के लिए बनी संसदीय समिति ने चारों वेदों व भगवद्गीता का विवरण पाठ्यक्रम में शामिल करने का सुझाव दिया है। इस समिति को देशभर से करीब 20 हजार सुझाव मिले थे, जिन्हें रिपोर्ट का हिस्सा बनाकर सरकार को सौंपा गया है। रिपोर्ट के मुताबिक लोगों ने सुझाव दिया है कि पाठ्यपुस्तकों में इतिहास की प्रसिद्ध महिलाओं को नायक के रूप में पेश किया जाए। सिखों, मराठा, गुर्जर, जाट तथा आदिवासियों और भारतीय महाकाव्यों को भी किताबों में जगह देने की मांग की है। यह रिपोर्ट संसद के इसी सत्र में पेश की गई है।

भाजपा सांसद डॉ. विनय सहस्रबुद्धे की अध्यक्षता वाली 31 सदस्यीय स्थायी समिति ने रिपोर्ट में कहा, चारों वेद और गीता का विवरण स्कूली पाठ्यपुस्तकों में शामिल करना चाहिए। रिपोर्ट कहा गया कि तमाम देशों में धार्मिक अध्ययन के लिए समर्पित विश्वविद्यालय हैं जबकि भारत में ऐसा नहीं है। ईरान के तेहरान यूनीवर्सिटी में उपनिषद एक विषय के रूप में पढ़ाया जाता है। इसके साथ ही इतिहास की किताबों में विक्रमादित्य, चोल, चालुक्य, विजयनगर, गोंडवाना के शासकों, बौद्ध, त्रावणकोर व उत्तरपूर्व के अहोम के इतिहास को शामिल करने पर पर्याप्त ध्यान देने की जरूरत है।

पाठ्यपुस्तक बनाने में वि‌विध विषयों के विशेषज्ञों से लें राय
रिपोर्ट में कहा गया है कि हर विषय की पाठ्यपुस्तक तैयार करने के लिए केवल विषय ही नहीं बल्कि विविध विषयों के विशेषज्ञों से परामर्श होना ताकि एक गुणवत्तापूर्ण किताब बन सके। पाठ्यपुस्तकों की विषयवस्तु, ग्राफिक्स व लेआउट के लिए अनिवार्य मानक लागू करने की भी सिफारिश की गई है। किताबों को स्टूडेंट फ्रेंडली बनाने पर जोर देना चाहिए।

समिति ने इतिहास की पुस्तकों में व्यापक बदलाव की सिफारिश करते हुए कहा, तमाम शख्सियतों व स्वतंत्रता सेनानियों को किताबों में अपराधी के रूप में पेश किया गया है। इन किताबों में विभिन्न क्षेत्रों व समुदायों के स्वाधीनता संग्राम सेनानियों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने की जरूरत है। 1947 के बाद का इतिहास व विश्व इतिहास अपडेट किया जाए। समित ने एनसीईआरटी को इतिहास की किताबों के लेखन संबंधी दिशा-निर्देशों पर पुनर्विचार करने को कहा है।

नालंदा, तक्षशिला जैसे मॉडल विकसित हों
समिति ने राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एससीईआरटी) को सुझाया है कि वह जिलेवार इतिहास व स्थानीय ऐतिहासिक शख्सियतों के बारे में जिलास्तर पर पाठ्यपुस्तकें तैयार कर उपलब्ध कराएं। पारंपरिक भारतीय ज्ञान प्रणालियों का विज्ञान, गणित, दर्शनशास्त्र, चिकित्सा, आयुर्वेद, ज्ञानमीमांसा, प्राकृतिक विज्ञान, राजनीति, अर्थव्यवस्था, नैतिकता, भाषा विज्ञान व कला की पाठ्यपुस्तकों में समावेश हो। नालंदा, विक्रमशिला व तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालयों के शैक्षिक पद्धतियों का अध्ययन करके समकालीन संदर्भ में मॉडल विकसित किया जाए।

महिला शख्सियत किताबों में शामिल हों
समिति ने कहा, पाठ्यपुस्तकों में महिलाओं के योगदान को उचित प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। उभरते व्यवसायों में महिलाओं को रोल मॉडल के रूप में पेश करने की जरूरत है। अहिल्याबाई होलकर, अबला घोष, आनंदी गोपाल जोशी, अनसुया साराभाई, आरती साहा, अरुणा आसफ अली, कनकलता डेका, रानी मां गुडुंगलू, आसीमा चटर्जी, कैप्टन प्रेम माथुर, चंद्रप्रभा सैकिनी, कोरनेलिया सोराबजी, दुर्गावती देवी, जानकी अम्माल, महाश्वेता देवी, कल्पना चावला, कमलादेवी चट्‌टोपाध्याय, कित्तूर चेन्नमा, एमएस शुभालक्ष्मी, मैडम भीकाजी कामा, रुक्मिणी देवी अरुंदाले व सावित्री बाई फुले के नाम व योगदान को एनसीईआरटी व एससीईआरटी की किताबों मंे प्रमुखता से शामिल करने की अनुसंशा की गई है।

महिला प्रधान : अहिल्याबाई जैसी शख्सियतें शामिल हों…

महिलाओं के योगदान को प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। अहिल्याबाई होलकर, अबला घोष, आनंदी जोशी कल्पना चावला जैसे नाम शामिल हों।

इतिहास का रुख: तक्षशिला जैसे मॉडल विकसित करें

SCERT जिलेवार इतिहास व स्थानीय ऐतिहासिक शख्सियतों के बारे में किताबें तैयार करें। नालंदा-तक्षशिला जैसे मॉडल विकसित हों।

भाषा : भ्रमण अनिवार्य करें… स्थानीय बोली-भाषाओं पर जोर

भ्रमण (घूमना/दौरा) को अनिवार्य शामिल करें। स्थानीय इतिहास भी शामिल करना चाहिए। जहां तक संभव हो स्थानीय भाषा में पढ़ाएं।

महाराष्ट्र मॉडल : बस्ते का बोझ कम करने की पहल

महाराष्ट्र में पहली के बच्चों के लिए केवल एक किताब है। अन्य राज्यों को भी शुरुआती स्तर पर इसी तरह का मॉडल अपनाना चाहिए।

  • पर्यावरण संवेदनशीलता, मानवीय मूल्य, इंटरनेट की लत के दुष्प्रभावों को भी शामिल रखा जाए।

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