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The Pain Of The Relatives Of The Farmers Died During The Agitation – किसान आंदोलन : संघर्ष के ‘हवनकुंड’ में दी प्राणों की आहुति…वे होते तो कुछ और बात होती

पंकज तोमर, नई दिल्ली
Published by: दुष्यंत शर्मा
Updated Mon, 13 Dec 2021 04:14 AM IST

सार

आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों के परिजनों और रिश्तेदारों का छलका दर्द। एक किसान के बेटे ने कहा- पापा जिंदा होते तो आज वह भी अपने साथियों संग घर लौटते।
 

शहीद किसानों की याद में…
– फोटो : amar ujala

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यह सिर्फ आंदोलन ही नहीं, अधिकारों की लड़ाई थी। इन्हें पाने के लिए हमारे अपनों ने आंदोलन के ‘हवनकुंड’ में अपने प्राणों की आहुतियां डालीं। एक के बाद एक लगभग 700 किसान शहीद हो गए। किसी का सुहाग उजड़ा तो किसी का भाई हमेशा के लिए चला गया। कई बेवा तो आज भी दर-दर भटकने को मजबूर हैं। क्योंकि, घर का मुखिया चले जाने के बाद उनकी आर्थिक स्थिति बेहद खराब है। अब हम लड़खड़ाते कदमों से घर तो लौट रहे हैं, लेकिन बगैर अपनों के। यह उन किसानों के परिजनों और रिश्तेदारों का कहना था, जिन्होंने आंदोलन के दौरान अपनी जान गवां दी। रविवार को सिंघु और गाजीपुर बॉर्डर से घर जाते समय उनकी आंखें अपनों को तलाश रही थी।

मैंने पिता को खोया है, उनके बिना घर कैसे लौटूं…
पंजाब के मोगा से आए मनप्रीत ने बताया कि 24 मई को वह अपने पिता और अन्य लोगों के साथ सिंघु बॉर्डर पर आंदोलन में आए थे। 31 मई तक सब कुछ ठीक था, लेकिन अचानक पिता जसवंत सिंह की तबीयत खराब होने लगी। आनन-फानन अस्पताल की इमरजेंसी में भर्ती कराया, जहां उन्होंने दम तोड़ दिया। आज पापा होते तो वह भी अपने साथियों के साथ घर लौटते। आंदोलन में जीत की खुशी तो है, लेकिन पिता के बगैर घर कैसे लौटूं। उनके निधन ने मेरे परिवार को गहरा सदमा दिया है।

हमने एक दिलखुश इंसान को खो दिया…
गलतान सिंह तोमर उत्तर प्रदेश के बागपत जिला अंतर्गत मौजिदाबाद गांव के रहने वाले थे। किसान राजवीर सिंह ने बताया कि आंदोलन के दौरान गाजीपुर बॉर्डर पर उनकी गलतान से मुलाकात हुई थी। वह बेहद दिलखुश इंसान था, जिन्हें हमने खो दिया है। कड़ाके की ठंड के कारण उनकी मौत हो गई। वह सुबह उठते ही अन्य साथियों को मंच पर जाने के लिए कहते थे। सभी किसानों से भाईचारा रखते थे। उनकी मौत से किसानों को गहरा सदमा लगा है।

जीत के लिए दे दी शहादत
गाजीपुर बॉर्डर पर मौजूद सुरेंद्र सिंह ने बताया कि उनके रिश्तेदार रामपुर निवासी कश्मीर सिंह ने जीत के लिए शहादत दी है। आंदोलन के दौरान उन्होंने एक शौचालय में फंदा लगाकर जान दे दी थी। सुसाइड नोट में उलिखा कि वह इसलिए आत्महत्या कर रहे हैं, ताकि उनकी शहादत बेकार न जाए। कश्मीर की मौत से उनका परिवार टूट गया है। वह बेहद निराश हैं और आज उनके बगैर घर वापसी हो रही है। यह कहते हुए सुरेंद्र की आंखें छलक उठीं।

गांव वाले पूछेंगे कहां खो दिया लाल
अमृतसर से सिंघु बॉर्डर पर 26 मई को दिलजीत सिंह भी अपने साथियों के साथ आए थे। उनके जानकार हरप्रीत सिंह ने कहा कि वह बेहद होनहार था। अधिकारों की लड़ाई में वह डटकर खड़ा रहा, लेकिन जून में अचानक उसका स्वास्थ्य बिगड़ा और मौत हो गई। उसके जाने के बाद हर किसान रोया। नम आंखों से हरप्रीत ने कहा, अब वह गांव जाएंगे तो लोग पूछेंगे कि अपना लाल कहां खो दिया। परिवार को भी जवाब नहीं दे पाएंगे।

विस्तार

यह सिर्फ आंदोलन ही नहीं, अधिकारों की लड़ाई थी। इन्हें पाने के लिए हमारे अपनों ने आंदोलन के ‘हवनकुंड’ में अपने प्राणों की आहुतियां डालीं। एक के बाद एक लगभग 700 किसान शहीद हो गए। किसी का सुहाग उजड़ा तो किसी का भाई हमेशा के लिए चला गया। कई बेवा तो आज भी दर-दर भटकने को मजबूर हैं। क्योंकि, घर का मुखिया चले जाने के बाद उनकी आर्थिक स्थिति बेहद खराब है। अब हम लड़खड़ाते कदमों से घर तो लौट रहे हैं, लेकिन बगैर अपनों के। यह उन किसानों के परिजनों और रिश्तेदारों का कहना था, जिन्होंने आंदोलन के दौरान अपनी जान गवां दी। रविवार को सिंघु और गाजीपुर बॉर्डर से घर जाते समय उनकी आंखें अपनों को तलाश रही थी।

मैंने पिता को खोया है, उनके बिना घर कैसे लौटूं…

पंजाब के मोगा से आए मनप्रीत ने बताया कि 24 मई को वह अपने पिता और अन्य लोगों के साथ सिंघु बॉर्डर पर आंदोलन में आए थे। 31 मई तक सब कुछ ठीक था, लेकिन अचानक पिता जसवंत सिंह की तबीयत खराब होने लगी। आनन-फानन अस्पताल की इमरजेंसी में भर्ती कराया, जहां उन्होंने दम तोड़ दिया। आज पापा होते तो वह भी अपने साथियों के साथ घर लौटते। आंदोलन में जीत की खुशी तो है, लेकिन पिता के बगैर घर कैसे लौटूं। उनके निधन ने मेरे परिवार को गहरा सदमा दिया है।

हमने एक दिलखुश इंसान को खो दिया…

गलतान सिंह तोमर उत्तर प्रदेश के बागपत जिला अंतर्गत मौजिदाबाद गांव के रहने वाले थे। किसान राजवीर सिंह ने बताया कि आंदोलन के दौरान गाजीपुर बॉर्डर पर उनकी गलतान से मुलाकात हुई थी। वह बेहद दिलखुश इंसान था, जिन्हें हमने खो दिया है। कड़ाके की ठंड के कारण उनकी मौत हो गई। वह सुबह उठते ही अन्य साथियों को मंच पर जाने के लिए कहते थे। सभी किसानों से भाईचारा रखते थे। उनकी मौत से किसानों को गहरा सदमा लगा है।

जीत के लिए दे दी शहादत

गाजीपुर बॉर्डर पर मौजूद सुरेंद्र सिंह ने बताया कि उनके रिश्तेदार रामपुर निवासी कश्मीर सिंह ने जीत के लिए शहादत दी है। आंदोलन के दौरान उन्होंने एक शौचालय में फंदा लगाकर जान दे दी थी। सुसाइड नोट में उलिखा कि वह इसलिए आत्महत्या कर रहे हैं, ताकि उनकी शहादत बेकार न जाए। कश्मीर की मौत से उनका परिवार टूट गया है। वह बेहद निराश हैं और आज उनके बगैर घर वापसी हो रही है। यह कहते हुए सुरेंद्र की आंखें छलक उठीं।

गांव वाले पूछेंगे कहां खो दिया लाल

अमृतसर से सिंघु बॉर्डर पर 26 मई को दिलजीत सिंह भी अपने साथियों के साथ आए थे। उनके जानकार हरप्रीत सिंह ने कहा कि वह बेहद होनहार था। अधिकारों की लड़ाई में वह डटकर खड़ा रहा, लेकिन जून में अचानक उसका स्वास्थ्य बिगड़ा और मौत हो गई। उसके जाने के बाद हर किसान रोया। नम आंखों से हरप्रीत ने कहा, अब वह गांव जाएंगे तो लोग पूछेंगे कि अपना लाल कहां खो दिया। परिवार को भी जवाब नहीं दे पाएंगे।

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