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They Ask Who Is ‘ghalib’. – पूछते हैं वो कि गालिब कौन है

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नई दिल्ली। ‘पूछते हैं वो कि गालिब कौन है, कोई बतलाओ कि हम बतलाएं क्या।’ अपने वक्त में गालिब ने शायद इसे मजाक में कहा होगा, लेकिन आज बल्लीमरान में मौजूद मिर्जा गालिब की हवेली की इसकी हकीकत बयां कर रही है। ख्याल उनको भी नहीं कि गालिब का सोमवार को जन्मदिन था, जो दूर-दराज से हवेली में घूमने पहुंचे थे।
वह भी मशहूर शायर को भुला बैठे हैं, जो हवेली के पड़ोस में ही बैठे हैं। जश्न मनने की जगह वहां हर ओर वीरानगी छाई हुई थी। हवेली के अंदर तो उनकी किताबें, गालिब का बुत, कपड़े, शतरंज और चौसा और हुक्का समेत दूसरी दैनिक इस्तेमाल वाली चीजें करीने से सजाकर रखी थीं।
हवेली के दरवाजे तो खुले थे, लेकिन कोविड की वजह से गालिब के जन्मदिन पर वहां कोई आयोजन नहीं रखा गया था। अपनी भतीजी के साथ घूमने पहुंचे आमिर हम्जा बताते हैं कि हम यहीं पास में रहते हैं। उनको इल्म तक नहीं कि आज गालिब साहब का जन्मदिन है। हम तो बस यूं ही ही घूमते हुए भतीजी को हवेली दिखाने लेकर आए थे।
हवेली के बड़े दरवाजे से हवेली के अन्दर पहुंचा जा सकता है। करीने से सारी चीजें अपनी जगह रखी हैं। कुछ इस हालत में, जैसे देर से वहां कोई न आया हो। इसकी देखरेख करने वाले गार्ड बताते हैं कि आज हवेली बंद रहती है लेकिन ऑफिस से फोन आया कि आज गालिब का जन्मदिन है, इसी वजह से हवेली को खोल दिया जाए। इन्हीं सब वजह से गालिब सिर्फ लोगों की कहावत में ही जिंदा रह गए। आखिर में लोग गालिब को भूल जाते हैं।

नई दिल्ली। ‘पूछते हैं वो कि गालिब कौन है, कोई बतलाओ कि हम बतलाएं क्या।’ अपने वक्त में गालिब ने शायद इसे मजाक में कहा होगा, लेकिन आज बल्लीमरान में मौजूद मिर्जा गालिब की हवेली की इसकी हकीकत बयां कर रही है। ख्याल उनको भी नहीं कि गालिब का सोमवार को जन्मदिन था, जो दूर-दराज से हवेली में घूमने पहुंचे थे।

वह भी मशहूर शायर को भुला बैठे हैं, जो हवेली के पड़ोस में ही बैठे हैं। जश्न मनने की जगह वहां हर ओर वीरानगी छाई हुई थी। हवेली के अंदर तो उनकी किताबें, गालिब का बुत, कपड़े, शतरंज और चौसा और हुक्का समेत दूसरी दैनिक इस्तेमाल वाली चीजें करीने से सजाकर रखी थीं।

हवेली के दरवाजे तो खुले थे, लेकिन कोविड की वजह से गालिब के जन्मदिन पर वहां कोई आयोजन नहीं रखा गया था। अपनी भतीजी के साथ घूमने पहुंचे आमिर हम्जा बताते हैं कि हम यहीं पास में रहते हैं। उनको इल्म तक नहीं कि आज गालिब साहब का जन्मदिन है। हम तो बस यूं ही ही घूमते हुए भतीजी को हवेली दिखाने लेकर आए थे।

हवेली के बड़े दरवाजे से हवेली के अन्दर पहुंचा जा सकता है। करीने से सारी चीजें अपनी जगह रखी हैं। कुछ इस हालत में, जैसे देर से वहां कोई न आया हो। इसकी देखरेख करने वाले गार्ड बताते हैं कि आज हवेली बंद रहती है लेकिन ऑफिस से फोन आया कि आज गालिब का जन्मदिन है, इसी वजह से हवेली को खोल दिया जाए। इन्हीं सब वजह से गालिब सिर्फ लोगों की कहावत में ही जिंदा रह गए। आखिर में लोग गालिब को भूल जाते हैं।

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