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Up to 50% able to protect against severe symptoms of corona, study on 2 thousand 714 health workers of AIIMS in second wave of Kovid | कोरोना के गंभीर लक्षणों से बचाने में 50% तक सक्षम, एम्स के 2 हजार 714 स्वास्थ्यकर्मियों पर काेविड की दूसरी लहर में अध्ययन

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नई दिल्ली36 मिनट पहले

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शोधकर्ताओं ने कहा कि कोवैक्सीन के तीसरे फेज के ट्रायल में वैक्सीन 77.8% प्रभावी पाई गई थी, मगर उनके शोध के नतीजे अलग हैं। - Dainik Bhaskar

शोधकर्ताओं ने कहा कि कोवैक्सीन के तीसरे फेज के ट्रायल में वैक्सीन 77.8% प्रभावी पाई गई थी, मगर उनके शोध के नतीजे अलग हैं।

कोवैक्सीन की दो डोज गंभीर लक्षणों वाले कोरोना से बचाने में 50% कारगर है। भारत बायोटेक द्वारा विकसित वैक्सीन की कार्यक्षमता के पहले रियल-वर्ल्ड आकलन के नतीजे हाल ही में अंतरराष्ट्रीय जर्नल लैंसेट में प्रकाशित हुए हैं। यह आकलन देश में कोरोना की दूसरी लहर की पीक के दौरान (15 अप्रैल से 15 मई के बीच) दिल्ली एम्स में कार्यरत 2,714 स्वास्थ्यकर्मियों पर अध्ययन के आधार पर निकाला गया है।

अध्ययन में शामिल दिल्ली एम्स में मेडिसिन के प्रोफेसर डॉ. मनीष सोनेजा के मुताबिक स्टडी के लिए चुने सभी 2,714 स्वास्थ्यकर्मियों में कोरोना के लक्षण थे। सबका आरटी-पीसीआर टेस्ट कराया गया, जिसमें 1,617 स्वास्थ्यकर्मी संक्रमित मिले। दरअसल, देश में 16 जनवरी, 2021 से शुरू कोविड टीकाकरण अभियान में सबसे पहले स्वास्थ्यकर्मियों को टीके लगाए गए थे। एम्स ने अपने सभी 23 हजार कर्मचारियों को कोवैक्सीन ही लगाई थी।

यानी टेस्ट में शामिल सभी स्वास्थ्यकर्मियों को कोवैक्सीन की दो डोज आरटी-पीसीआर टेस्ट से कम से कम 14 दिन पहले लग चुकी थी। पहले टेस्ट के बाद 7 दिन फॉलो-अप पीरियड में भी कोवैक्सीन की प्रभावशीलता 50% ही रही। डॉ. सोनेजा ने कहा, हमारा अध्ययन एक बार फिर यह साबित करता है कि कोरोना के खिलाफ जल्द से जल्द वैक्सीनेशन ही महामारी नियंत्रित करने का सबसे कारगर उपाय है।

  • 2,714 दिल्ली एम्स में कार्यरत स्वास्थ्यकर्मियों पर अध्ययन के आधार पर निकाला गया है।
  • 1,617 स्वास्थ्यकर्मी संक्रमित मिले, सबका आरटी-पीसीआर टेस्ट कराया गया था।
  • 23,000 एम्स के कर्मचारियों को कोवैक्सीन ही लगाई थी, यह डोज टेस्ट से 14 दिन पहले दी थी।

स्वास्थ्यकर्मियों पर टेस्ट की वजह से कम रह सकती है इफेक्टिवनेस
शोधकर्ताओं ने स्वीकार किया कि कोवैक्सीन के तीसरे फेज के ट्रायल के नतीजों में वैक्सीन को 77.8% प्रभावी पाया गया था, मगर उनके शोध के नतीजे इससे इतर हैं। इसके तीन प्रमुख कारण हैं।
पहला- यह अध्ययन सामान्य जनता पर नहीं, स्वास्थ्यकर्मियों पर किया गया, जिन्हें संक्रमण का खतरा ज्यादा है।
दूसरा- अध्ययन कोरोना की दूसरी लहर की पीक के दौरान किया गया, जब टेस्ट पॉजिटिविटी रेट पहले से ही ज्यादा थी।
तीसरा- शोध के दौरान कोरोना के डेल्टा समेत कई वैरिएंट्स ऑफ कंसर्न फैले थे जो वैक्सीन की प्रभावशीलता कम कर सकता है।

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