UP Dadri News : महेंद्र सिंह भाटी दादरी के शेर, जिन्होंने उत्तर प्रदेश की राजनीति को दिया नया मोड़, मुख्यमंत्री बनने से पहले ही काल के गाल में समा गए
महेंद्र सिंह भाटी की कहानी केवल एक नेता की कहानी नहीं है, यह एक ऐसे व्यक्ति की गाथा है, जिसने अपने साहस, निष्ठा और समर्पण से दादरी और उत्तर प्रदेश की राजनीति में नया इतिहास रचा। उनके योगदान और विरासत को दादरी के लोग आज भी याद करते हैं और भावी पीढ़ी के लिए प्रेरणा मानते हैं।
दादरी, रफ्तार टुडे। उत्तर प्रदेश के राजनीति के इतिहास में महेंद्र सिंह भाटी का नाम एक ऐसा नाम है, जो साहस, नेतृत्व, और जनता के प्रति समर्पण का प्रतीक बन चुका है। उन्हें “दादरी का शेर” और “भविष्य के मुख्यमंत्री” जैसे खिताबों से नवाजा गया था। उनका जीवन, संघर्ष और असमय निधन, उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक ऐसे मोड़ की कहानी है जिसे कोई भुला नहीं सकता।
ग्रेटर नोएडा के विकास से पहले दादरी का दौर
महेंद्र सिंह भाटी का जन्म 1 जनवरी 1943 को ग्रेटर नोएडा के मकौड़ा गांव में हुआ था। आज जो ग्रेटर नोएडा तकनीकी और आर्थिक केंद्र बन गया है, उस समय यह एक साधारण क्षेत्र था। लेकिन महेंद्र सिंह भाटी ने अपनी दूरदर्शिता और संघर्षशीलता से दादरी और इस क्षेत्र का नाम पूरे देश में फैलाया। उनके नेतृत्व में दादरी की पहचान उत्तर प्रदेश से बाहर निकल कर देशभर में होने लगी।
तीन बार विधायक, मुख्यमंत्री बनने के थे प्रबल दावेदार
महेंद्र सिंह भाटी ने राजनीति में कदम रखते ही अपनी विशिष्ट पहचान बनाई। 1985 में वह भारतीय क्रांति दल (BKD) से पहली बार विधायक बने। इसके बाद 1989 और 1991 के चुनावों में उन्होंने ऐसी जीत दर्ज की कि उनके विरोधियों की जमानत जब्त हो गई। राजनीति के खेल में उन्होंने इतने ऊंचे मुकाम पर पहुंचा दिया था कि उनके समर्थक उन्हें भविष्य के मुख्यमंत्री के रूप में देखने लगे थे। लेकिन 13 सितंबर 1992 को उनके जीवन का पटाक्षेप हो गया जब उनकी हत्या कर दी गई।
गुर्जर नेता के रूप में उभरे महेंद्र सिंह भाटी
महेंद्र सिंह भाटी उत्तर प्रदेश और गौतमबुद्ध नगर में गुर्जर नेता के रूप में उभरे थे। उस समय महेंद्र सिंह भाटी और राजेश पायलट का जिले में जलवा था। राष्ट्रीय स्तर पर भी महेंद्र सिंह भाटी को गुर्जर नेता के रूप में जाना जाता था। दोनों गुर्जर समाज के दिग्गज नेता थे लेकिन राजेश पायलट को छोटा और महेंद्र सिंह भाटी को बड़ा नेता माना जाता था। इसमें कोई दो राय वाली बात नहीं है कि महेंद्र सिंह भाटी किसानों के सबसे लोकप्रिय नेता थे। वह उत्तर प्रदेश की दादरी विधानसभा सीट से तीन बार विधायक चुने गए। इस दौरान उन्होंने नोएडा प्राधिकरण और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण पर किसानों की मांगों को लेकर सैकड़ों बाद प्रदर्शन किए। बताया जाता है कि महेंद्र सिंह भाटी एक फोन से जिले की कोई भी फैक्ट्री और कंपनी स्थानीय युवा को नौकरी दे देती थी। महेंद्र सिंह भाटी की चौपाल में 24 घंटे लोगों की भीड़ रहती थी। जिसके कारण वह जमीन से जुड़े हुए नेता माने जाते थे। शराब माफिया और भू-माफिया के खिलाफ लगातार महेंद्र सिंह भाटी ने प्रदर्शन किए।
दादरी में हुई थी हत्या
दादरी को गुर्जरों की राजधानी कहें तो महेंद्र सिंह भाटी को शेर कहना पड़ेगा, यह बात उनके घनिष्ठ दोस्त और यूपी के दिवंगत मंत्री रवि गौतम ने सूरजपुर में एक जनसभा में 2014 के लोकसभा चुनाव में कही थी। उन्होंने कहा था, जब से वह (महेंद्र सिंह भाटी) गए राजनीति का मजा ही चला गया है। अभी उनके जैसा नेता पैदा नहीं हुआ है। लेकिन, आज से 27 साल पहले 13 सितम्बर 1992 को दादरी के तत्कालीन विधायक महेंद्र सिंह भाटी की दादरी में ही हत्या कर दी गई थी।
एके-47 से हुई थी हत्या, उस दिन पूरा दादरी रोया था
13 सितंबर 1992 को हुई उस घटना ने पूरे उत्तर प्रदेश को हिलाकर रख दिया। अपराध और राजनीति के घालमेल की कलई खोलकर रख दी थी। एक विधायक की हत्या हुई थी। इस हत्या में एके-47 इस्तेमाल की गई थी। हत्या का आरोपी राजनीति की सीढ़ियां चढ़ता गया और उत्तर प्रदेश की सरकार में कैबिनेट मंत्री तक बन गया। बड़ी बात ये कि विधायक महेंद्र सिंह भाटी हत्यारोपी का राजनीतिक गुरू थे। हत्या का आरोप बुलन्दशहर के तत्कालीन विधायक डीपी यादव पर लगा था, जो बाद में मुलायम सिंह यादव के खासमखास बने। एक जमाना ऐसा भी आया कि इन्हीं डीपी यादव को 2012 में टिकट न देकर अखिलेश यादव ने अपनी साफ छवि वाली इमेज बना ली। यही इमेज लेकर अखिलेश यादव अभी तक चल रहे हैं।
महेंद्र सिंह भाटी की हत्या: 32 साल बाद भी रो पड़ते हैं लोग
महेंद्र सिंह भाटी की हत्या ने दादरी क्षेत्र को गहरा सदमा दिया। 13 सितंबर 1992 की वह काली रात जब भाटी जी का जीवन समाप्त हुआ, उसी समय से दादरी के लोगों की आंखों में आंसू और दिलों में दुख भरा हुआ है। आज भी लोग उस मनहूस घड़ी को याद करते हुए कहते हैं, “अगर उस रात ऐसा ना होता तो महेंद्र सिंह भाटी आज मुख्यमंत्री होते।”
दादरी से लेकर उत्तराखंड तक फैला परिवार का प्रभाव
महेंद्र सिंह भाटी का राजनीतिक प्रभाव सिर्फ दादरी तक सीमित नहीं था, बल्कि उनका परिवार भी राजनीति में सक्रिय है। उनके दामाद कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन उत्तराखंड में चार बार विधायक रह चुके हैं। उनकी बेटी रानी देवयानी सिंह भी भाजपा के टिकट पर हरिद्वार से चुनाव लड़ चुकी हैं। महेंद्र सिंह भाटी के परिवार का राजनीति में ये स्थान आज भी बरकरार है।
पुण्यतिथि पर होती है बड़ी श्रद्धांजलि सभा
हर साल 13 सितंबर को महेंद्र सिंह भाटी की समाधि पर उनके समर्थक, परिवार, और समाज के प्रमुख लोग इकट्ठा होते हैं और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। मकौड़ा गांव में स्थापित उनकी समाधि आज भी लोगों के लिए प्रेरणा और आदर का केंद्र है।
जब फाटक खुला तो सामने दो कारें खड़ी थीं। कारों के दरवाजे खोले हुए थे। शायद महेंद्र सिंह भाटी को अनुमान हो गया कि कुछ होने वाला है लेकिन उन्हें संभलने का मौका नहीं मिला। अंधाधुंध फायरिंग की गई। विधायक महेंद्र सिंह भाटी और उदय प्रकाश आर्य की मौके पर ही मौत हो गई। गनर गोली लगने से घायल हो गया था, जबकि चालक देवेंद्र बचकर भाग निकला था।
महेंद्र सिंह भाटी ने विधानसभा में कहा था कि उनकी जान को खतरा है।
सादुल्लापुर के पूर्व ग्राम प्रधान रणवीर सिंह ने बताया, महेंद्र सिंह भाटी को उनके खिलाफ चल रही साजिश का पता चल गया था। उन्होंने जून 1992 में विधानसभा सत्र के दौरान एक लिखित सवाल करते हुए कहा था कि राजनीतिक कारणों से उनकी हत्या हो सकती है। पुलिस और प्रशासन उन्हें सुरक्षा नहीं दे रहे हैं। सुरक्षा नहीं मिली तो अगले सत्र में मेरी शोकसभा होगी। इसके बाद भी तत्कालीन कल्याण सिंह सरकार ने उन्हें सुरक्षा मुहैया नहीं कराई थी। तीन माह बाद उनकी हत्या हो गई थी। आखिरकार उनकी बात सच साबित हुई।
महेंद्र सिंह भाटी की विरासत
महेंद्र सिंह भाटी के दो बेटे समीर भाटी और नीशीत भाटी हैं, और उनकी बेटी दिव्यानी भाटी। उनके बच्चों ने अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाते हुए मकौड़ा गांव में उनकी समाधि बनाई, जहां हर साल श्रद्धांजलि सभा का आयोजन होता है।
समाज और राजनीति के लिए प्रेरणा
महेंद्र सिंह भाटी की कहानी केवल एक नेता की कहानी नहीं है, यह एक ऐसे व्यक्ति की गाथा है, जिसने अपने साहस, निष्ठा और समर्पण से दादरी और उत्तर प्रदेश की राजनीति में नया इतिहास रचा। उनके योगदान और विरासत को दादरी के लोग आज भी याद करते हैं और भावी पीढ़ी के लिए प्रेरणा मानते हैं।
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