अमर उजाला ब्यूरो, नई दिल्ली
Published by: सुशील कुमार
Updated Sat, 27 Nov 2021 12:36 AM IST
सार
न्यायालय सम्यक गंगवाल द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही है। याची ने संविधान के तहत पीएम केयर्स फंड को ‘राज्य’ घोषित करने की मांग की है।
उच्च न्यायालय ने प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और आपातकालीन स्थिति निधि (पीएम केयर्स फंड) में राहत से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई 10 दिसंबर तय की है। दायर याचिका में पीएम केयर्स फंड को ‘राज्य’ घोषित करने की मांग की है, जबकि केंद्र पहले ही कह चुका है यह भारत सरकार का फंड नहीं, बल्कि एक चेरीटेबल ट्रस्ट है।
मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने मामले में जल्द सुनवाई की मांग करने वाले आवेदनों को स्वीकार करते हुए यह तिथि तय की है। पहले इस मामले की सुनवाई 18 नवंबर को होनी थी, लेकिन संबंधित पीठ के न बैठने के चलते सुनवाई स्थगित कर दी गई थी।
न्यायालय सम्यक गंगवाल द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही है। याची ने संविधान के तहत पीएम केयर्स फंड को ‘राज्य’ घोषित करने की मांग की है। याचिकाकर्ता ने पीएम केयर्स फंड को भारत के प्रधानमंत्री या प्रधानमंत्री का उपयोग करने से रोकने के लिए इसके नाम और इसकी वेबसाइट, ट्रस्ट डीड और अन्य अधिकारियों या अनौपचारिक संचार सहित इसके संक्षिप्ताक्षर का उपयोग करने से रोकने की भी मांग की है।
प्रधान मंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने याचिका के जवाब में हाल ही में कहा है कि पीएम केयर्स फंड भारत सरकार का फंड नहीं है और यह राशि भारत के समेकित कोष में नहीं जाती है। पीएमओ द्वारा दायर एक हलफनामे में कहा गया है कि यह एक चेरीटेबल ट्रस्ट है और ट्रस्ट का फंड भारत सरकार का फंड नहीं है और यह राशि भारत के समेकित कोष में नहीं जाती है। यह भारत के संविधान द्वारा या उसके अधीन या संसद या किसी राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए किसी कानून के तहत नहीं आती।
उन्होंने कहा कि ट्रस्ट पारदर्शिता के साथ काम करती है और इसके फंड का ऑडिट एक ऑडिटर द्वारा किया जाता है, जो चार्टर्ड अकाउंटेंट द्वारा तैयार पैनल से लिया जाता है। जवाब में यह भी कहा गया है कि पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए, ट्रस्ट द्वारा प्राप्त धन के उपयोग के विवरण के साथ ऑडिट रिपोर्ट ट्रस्ट की आधिकारिक वेबसाइट पर डाल दी जाती है।
केद्र ने कहा कि ट्रस्ट किसी भी अन्य धर्मार्थ ट्रस्ट की तरह बड़े सार्वजनिक हित में पारदर्शिता और सार्वजनिक भलाई के सिद्धांतों पर काम करता है और इसलिए, पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए अपने सभी प्रस्तावों को अपनी वेबसाइट पर अपलोड करने में कोई आपत्ति नहीं हो सकती है। केंद्र ने याचिका को खारिज करने का आग्रह किया है।
विस्तार
उच्च न्यायालय ने प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और आपातकालीन स्थिति निधि (पीएम केयर्स फंड) में राहत से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई 10 दिसंबर तय की है। दायर याचिका में पीएम केयर्स फंड को ‘राज्य’ घोषित करने की मांग की है, जबकि केंद्र पहले ही कह चुका है यह भारत सरकार का फंड नहीं, बल्कि एक चेरीटेबल ट्रस्ट है।
मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने मामले में जल्द सुनवाई की मांग करने वाले आवेदनों को स्वीकार करते हुए यह तिथि तय की है। पहले इस मामले की सुनवाई 18 नवंबर को होनी थी, लेकिन संबंधित पीठ के न बैठने के चलते सुनवाई स्थगित कर दी गई थी।
न्यायालय सम्यक गंगवाल द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही है। याची ने संविधान के तहत पीएम केयर्स फंड को ‘राज्य’ घोषित करने की मांग की है। याचिकाकर्ता ने पीएम केयर्स फंड को भारत के प्रधानमंत्री या प्रधानमंत्री का उपयोग करने से रोकने के लिए इसके नाम और इसकी वेबसाइट, ट्रस्ट डीड और अन्य अधिकारियों या अनौपचारिक संचार सहित इसके संक्षिप्ताक्षर का उपयोग करने से रोकने की भी मांग की है।
प्रधान मंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने याचिका के जवाब में हाल ही में कहा है कि पीएम केयर्स फंड भारत सरकार का फंड नहीं है और यह राशि भारत के समेकित कोष में नहीं जाती है। पीएमओ द्वारा दायर एक हलफनामे में कहा गया है कि यह एक चेरीटेबल ट्रस्ट है और ट्रस्ट का फंड भारत सरकार का फंड नहीं है और यह राशि भारत के समेकित कोष में नहीं जाती है। यह भारत के संविधान द्वारा या उसके अधीन या संसद या किसी राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए किसी कानून के तहत नहीं आती।
उन्होंने कहा कि ट्रस्ट पारदर्शिता के साथ काम करती है और इसके फंड का ऑडिट एक ऑडिटर द्वारा किया जाता है, जो चार्टर्ड अकाउंटेंट द्वारा तैयार पैनल से लिया जाता है। जवाब में यह भी कहा गया है कि पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए, ट्रस्ट द्वारा प्राप्त धन के उपयोग के विवरण के साथ ऑडिट रिपोर्ट ट्रस्ट की आधिकारिक वेबसाइट पर डाल दी जाती है।
केद्र ने कहा कि ट्रस्ट किसी भी अन्य धर्मार्थ ट्रस्ट की तरह बड़े सार्वजनिक हित में पारदर्शिता और सार्वजनिक भलाई के सिद्धांतों पर काम करता है और इसलिए, पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए अपने सभी प्रस्तावों को अपनी वेबसाइट पर अपलोड करने में कोई आपत्ति नहीं हो सकती है। केंद्र ने याचिका को खारिज करने का आग्रह किया है।
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