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Metro Gets Its First Indigenous Iats System, Trial Begins – दिल्ली : मेट्रो को मिला पहला स्वदेशी आई एटीएस सिस्टम, ट्रायल हुआ शुरू

अमर उजाला नेटवर्क, नई दिल्ली
Published by: दुष्यंत शर्मा
Updated Sat, 25 Dec 2021 04:26 AM IST

सार

ड्राइवरलेस हो जाएंगी ट्रेनें, खुद डिपो और स्टेशनों तक जाएंगी। 

रेड लाइन मेट्रो
– फोटो : अमर उजाला

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मेट्रो परिचालन के 20वें वर्ष की शुरुआत पर रेड लाइन (शहीद स्थल-रिठाला) पर देश में विकसित पहले स्वचालित ट्रेन पर्यवेक्षण (आई-एटीएस) और सिग्नलिंग तकनीक का ट्रायल शुक्रवार को शुरू किया गया। केंद्रीय आवासन, शहरी कार्य मंत्रालय के सचिव एवं डीएमआरसी के चेयरमैन दुर्गा शंकर मिश्रा ने वीडियो के जरिए इसका उद्घाटन किया। 

इस मौके पर कश्मीरी गेट में मेट्रो के अब तक के सफर की तस्वीरों को जीवंत रूप में पेश किया गया। दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (डीएमआरसी) के प्रबंध निदेशक डॉ. मंगू सिंह, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) के सीएमडी आनंदी रामलिंगम सहित वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद रहे।

मेक इन इंडिया के तहत कम्युनिकेशन बेस्ड ट्रेन कंट्रोल (सीबीटीसी) और सिग्नलिंग तकनीक की दिशा में यह पहल की गई। इससे मेट्रो परिचालन को नया आयाम मिला है। इस तकनीक की बदौलत ही मेट्रो को ड्राइवरलेस करना संभव हुआ। परिचालन की शुरुआत से अब तक होने वाले बदलाव के तहत पूर्ण तौर पर स्वदेशी तकनीक को बढ़ाया दिया गया। आत्मनिर्भर भारत के लिहाज से भी डीएमआरसी और बीईएल की संयुक्त पहल को अहम माना जा रहा है। फेज-4 के सभी कॉरिडोर पर नई तकनीक का इस्तेमाल होगा। इससे ड्राइवरलेस संचालन और यात्रा में सुरक्षा के साथ मेट्रो को नई रफ्तार भी दी जा रही है। 

आई-एटीएस, सीबीटीसी आधारित सिग्नलिंग सिस्टम का एक हिस्सा है। इस कंप्यूटरीकृत प्रणाली के जरिए ट्रेनों के परिचालन की निगरानी कंट्रोल एंड कमांड सेंटर से संभव हुई है।    

फेज-4 के सभी कॉरिडोर पर मिलेगा फायदा : आई-एटीएस प्रणाली का उपयोग फेज-4 के सभी कॉरिडोर पर किया जाएगा। इससे ट्रेनों का परिचालन ड्राइवरलेस करने सहित नई तकनीक पर आधारित दूसरी सेवाएं भी यात्रियों की सहूलियत के लिए मुहैया की जाएंगी।

तकनीक के मामले में बढ़ेगी आत्मनिर्भरता
आई-एटीएस तकनीक के माध्यम से मेट्रो परिचालन को नियंत्रित किया जाता है। हर मिनट की गतिविधियों की निगरानी स्वचालित होती है। इससे मेट्रो भी ड्राइवरलेस हुई है। नई टेक्नोलॉजी के जरिए ही मेट्रो रोजाना रात को खुद ही डिपो तक पहुंच जाती है और सुबह स्टेशन पर पहुंच जाती है। स्वदेशी तकनीक से भारतीय मेट्रो की दूसरे देेेशों पर निर्भरता कम होगी। सीबीटीसी तकनीक पर अब तक यूरोपीय देशों और जापान का नियंत्रण रहा है। मेक इन इंडिया के तहत सीबीटीसी तकनीक के स्वदेशीकरण की दिशा में पहल की गई है।

विस्तार

मेट्रो परिचालन के 20वें वर्ष की शुरुआत पर रेड लाइन (शहीद स्थल-रिठाला) पर देश में विकसित पहले स्वचालित ट्रेन पर्यवेक्षण (आई-एटीएस) और सिग्नलिंग तकनीक का ट्रायल शुक्रवार को शुरू किया गया। केंद्रीय आवासन, शहरी कार्य मंत्रालय के सचिव एवं डीएमआरसी के चेयरमैन दुर्गा शंकर मिश्रा ने वीडियो के जरिए इसका उद्घाटन किया। 

इस मौके पर कश्मीरी गेट में मेट्रो के अब तक के सफर की तस्वीरों को जीवंत रूप में पेश किया गया। दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (डीएमआरसी) के प्रबंध निदेशक डॉ. मंगू सिंह, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) के सीएमडी आनंदी रामलिंगम सहित वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद रहे।

मेक इन इंडिया के तहत कम्युनिकेशन बेस्ड ट्रेन कंट्रोल (सीबीटीसी) और सिग्नलिंग तकनीक की दिशा में यह पहल की गई। इससे मेट्रो परिचालन को नया आयाम मिला है। इस तकनीक की बदौलत ही मेट्रो को ड्राइवरलेस करना संभव हुआ। परिचालन की शुरुआत से अब तक होने वाले बदलाव के तहत पूर्ण तौर पर स्वदेशी तकनीक को बढ़ाया दिया गया। आत्मनिर्भर भारत के लिहाज से भी डीएमआरसी और बीईएल की संयुक्त पहल को अहम माना जा रहा है। फेज-4 के सभी कॉरिडोर पर नई तकनीक का इस्तेमाल होगा। इससे ड्राइवरलेस संचालन और यात्रा में सुरक्षा के साथ मेट्रो को नई रफ्तार भी दी जा रही है। 

आई-एटीएस, सीबीटीसी आधारित सिग्नलिंग सिस्टम का एक हिस्सा है। इस कंप्यूटरीकृत प्रणाली के जरिए ट्रेनों के परिचालन की निगरानी कंट्रोल एंड कमांड सेंटर से संभव हुई है।    

फेज-4 के सभी कॉरिडोर पर मिलेगा फायदा : आई-एटीएस प्रणाली का उपयोग फेज-4 के सभी कॉरिडोर पर किया जाएगा। इससे ट्रेनों का परिचालन ड्राइवरलेस करने सहित नई तकनीक पर आधारित दूसरी सेवाएं भी यात्रियों की सहूलियत के लिए मुहैया की जाएंगी।

तकनीक के मामले में बढ़ेगी आत्मनिर्भरता

आई-एटीएस तकनीक के माध्यम से मेट्रो परिचालन को नियंत्रित किया जाता है। हर मिनट की गतिविधियों की निगरानी स्वचालित होती है। इससे मेट्रो भी ड्राइवरलेस हुई है। नई टेक्नोलॉजी के जरिए ही मेट्रो रोजाना रात को खुद ही डिपो तक पहुंच जाती है और सुबह स्टेशन पर पहुंच जाती है। स्वदेशी तकनीक से भारतीय मेट्रो की दूसरे देेेशों पर निर्भरता कम होगी। सीबीटीसी तकनीक पर अब तक यूरोपीय देशों और जापान का नियंत्रण रहा है। मेक इन इंडिया के तहत सीबीटीसी तकनीक के स्वदेशीकरण की दिशा में पहल की गई है।

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