गाजियाबाद44 मिनट पहलेलेखक: सचिन गुप्ता
यूपी-दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर पर अब किसान अपने टेंट हटाने लगे हैं।
टिकैत, राजेवाल, कक्का, चढूनी…ये नाम ऐसे हैं जो किसान आंदोलन में देशभर में जाने गए। 380 दिन दिल्ली के बॉर्डरों पर यह आंदोलन चला। 11 दिसंबर से किसान घर वापसी शुरू कर देंगे। किसान यहां सिर्फ 3 कृषि कानून रद्द कराने के लिए आए थे और फिर उनकी मांगें बढ़कर 6 हो गईं। आखिरकार सरकार को बैकफुट पर आकर सारी मांगें माननी पड़ीं।
इस किसान आंदोलन में कुछ चेहरे गुमनाम रहे। इन्होंने मंच के पीछे से अपने काम किए और आंदोलन को सफलता की सीढ़ियों तक पहुंचवाया। ‘दैनिक भास्कर’ आपको ऐसे ही कुछ गुमनाम चेहरों से रूबरू करा रहा है।
एक साल से मंच से नीचे नहीं उतरे बाबा सुरेश चंद्र
फिरोजाबाद में सुमेरपुर गांव निवासी 60 वर्षीय सुरेश चंद्र को टीवी के जरिए पता चला कि दिल्ली के बॉर्डरों पर आंदोलन चल रहा है। 1 दिसंबर को ट्रक में बैठकर गजीपुर बॉर्डर आ गए और मंच किनारे बैठ गए। सर्दी, गर्मी, धूप, बारिश आई लेकिन सुरेश चंद्र ने मंच नहीं छोड़ा। उन्होंने मंच पर एक गद्दा डाला और उसी को अपना आशियाना बना लिया। अब वह मंच पर ही 24 घंटे बिताते हैं। एक साल से मंच से नीचे नहीं उतरे। दो जोड़ी कपड़े से एक साल गुजारने वाले सुरेश चंद्र तब भी नहीं हटे, जब भारी बारिश में मंच पर पानी भर गया था। आंदोलनों में कई बार किसानों की संख्या नगण्य रही, ऐसे में तमाम बार खुद सुरेश चंद्र ने मंच की अध्यक्षता भी की।
पहले देश की सीमा, फिर गाजीपुर बॉर्डर की सुरक्षा संभाली
चंदौली जिले में धरहरा गांव के मनिदेव चतुर्वेदी BSF से 2 मार्च 2019 को रिटायर हुए। टीवी चैनल पर देखते थे कि किसानों को माओवादी, खालिस्तानी बताया जाता था। उनसे नहीं रहा गया और 16 दिसंबर को वह ट्रेन से 700 किलोमीटर दूर गाजीपुर बॉर्डर पर आ गए। मनिदेव को सुरक्षा का अच्छा खासा अनुभव था। उनका यह अनुभव बॉर्डर पर काम आया। वह गाजीपुर बॉर्डर के चारों गेटों समेत पूरे आंदोलन स्थल की सुरक्षा करने लगे। कौन आ रहा, कौन जा रहा, कुछ गलत तो नहीं हो रहा…इस पर मनिदेव की पैनी नजर रहती है। आज उनके पास करीब 30 वॉलंटियर्स की टीम है। कड़ी सुरक्षा की बदौलत अभी तक गाजीपुर बॉर्डर पर कोई गलत हरकत नहीं हुई।
सचिन जैसे युवाओं ने आंदोलन को गांव-गांव पहुंचाया
मेरठ जिले में ग्राम भगवानपुर बांगर के युवा किसान सचिन मलिक आंदोलन से तब जुड़े, जब यह आंदोलन दबाने की कोशिश अनेक स्तरों पर की जा रही थी। आंदोलन को गांव-गांव तक कैसे पहुंचाया जाए, इसके लिए उन्होंने यू ट्यूब पेज और ट्विटर हैंडल बनाया। गाजीपुर बॉर्डर की हर गतिविधि को मोबाइल के जरिए गांव-गांव तक पहुंचाया। सचिन की देखा देखी गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों ने अपने ही 50 से ज्यादा फेसबुक और यू ट्यूब पेज बनाए और अपनी बात को उसी प्लेटफार्म के जरिये गांव-गांव तक पहुंचाना शुरू किया। मोबाइल के बारे में जरा भी नहीं जानने वाले किसान आज सोशल मीडिया के एक्सपर्ट बन चुके हैं।
सरकार-किसानों का सेतु बनकर डटे रहे युद्धवीर सिंह
भारतीय किसान यूनियन के वरिष्ठ नेता युद्धवीर सिंह शायद ही बहुत ज्यादा आंदोलन के मंच पर दिखाई दिए हों। वह संयुक्त किसान मोर्चा की कोर कमेटी के मेम्बर हैं। उनके पास इस आंदोलन में मांगों के ड्राफ्ट बनाने, सरकार को भेजने, सरकार से जवाब लेने की जिम्मेदारी थी। एक तरह से वह SKM और केंद्र सरकार के बीच सेतु का कार्य कर रहे थे। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जिस किसान नेता से आंदोलन वापसी के लिए फोन पर बात की, वह युद्धवीर सिंह ही थे। आंदोलन को मुकाम तक पहुंचाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।