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Politics Caught The Pace To Capture Gurdwara Prabandhak Committee – सत्ता के समीकरण : गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी पर कब्जे के लिए सियासत से पकड़ी रफ्तार

सार

सिरसा के इस्तीफे से प्रबंधन कमेटी के समक्ष सांविधानिक संकट। प्रबंधक कमेटी की नई कार्यकारिणी के गठन को लेकर भी उलझन है।

प्रेसवार्ता के दौरान दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के महासचिव हरमीत सिंह व अन्य…
– फोटो : अमर उजाला

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अकाली नेता व प्रबंधक कमेटी के निवर्तमान अध्यक्ष मनजिंदर सिंह सिरसा के भाजपा में शामिल होने से सिख राजनीति का पूरा समीकरण बदल गया है।
दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की जिम्मेदारी किसे सौंपी जाए, इसे लेकर पेच फंसा है। साथ ही प्रबंधक कमेटी की नई कार्यकारिणी के गठन को लेकर भी उलझन है। सांविधानिक संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई है। वजह यह कि जब तक प्रबंधक कमेटी की पुरानी जनरल बॉडी की बैठक नहीं होती और इस्तीफा नहीं मंजूर होता तब तक सिरसा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष बने रहेंगे। 

इस्तीफे के बाद भी सिरसा प्रधान 
गुरुद्वारा एक्ट के अनुसार सिरसा के इस्तीफा देने से दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के निवर्तमान अध्यक्ष का पद समाप्त नहीं हो जाता। यह तभी समाप्त होगा जब प्रबंधक कमेटी की 2017 में चुनी गई जनरल बॉडी की मीटिंग बुलाई जाती है। इसी कमेटी को अधिकार है कि सिरसा की अध्यक्षता को रद्द करें। लेकिन इसमें पेच यह है कि 2017 की जनरल बॉडी मीटिंग बुलाई ही नहीं जा सकती क्योंकि नई कमेटी के लिए चुनाव संपन्न हो चुका है और सिरसा समेत कई सदस्यों का मामला अदालत में विचाराधीन है। कई कानूनी अड़चनें इस राह में हैं। 

ऐसे में गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के कामकाज चलाने को लेकर भी उलझन बढ़ी हुई है। क्योंकि अध्यक्ष व महासचिव का संयुक्त हस्ताक्षर अगर नहीं होता है तो कोई काम संभव नहीं है। किसी भी तरह के प्रस्ताव को पास कराने के लिए अध्यक्ष की सहमति जरूरी है। 

महासचिव व उपप्रधान में खींचतान
सिरसा के इस्तीफे के बाद नये कार्यकारी बोर्ड के गठन होने तक कामकाज के लिए कार्यकारी प्रधान को लेकर भी खींचतान शुरू होगा। सिरसा के बाद जहां प्रबंधक कमेटी के महासचिव हरमीत सिंह कालका सक्रिय हो गए हैं वहीं, गुरुद्वारा मामलों के जानकार इंदर मोहन सिंह का कहना है कि नये कार्यकारी बोर्ड के गठन होने तक कार्यकारी प्रधान के तौर पर उपप्रधान कुलवंत सिंह बाठ देखेंगे क्योंकि पूर्व सीनियर उपप्रधान रणजीत कौर की मूल सदस्यता जिला अदालत के आदेश से रद्द की जा चुकी है। बीबी कौर ने उच्च न्यायालय में दायर की गई अपील को भी वापस ले लिया है। 

मौजूदा हालात में कमेटी का कामकाज चलाना कठिन
मौजूदा हालातों में मामला पेचीदा है। क्योंकि, प्रबंधक कमेटी के महासचिव के अकेले हस्ताक्षर से कमेटी का कोई कामकाज नही किया जा सकता है। यह भी है कि सिरसा का बादल धड़े को अलविदा कहने के बाद अब त्यागपत्र वापस भी नही ले सकते हैं। गुरुद्वारा मामलों के जानकार का कहना है कि सिरसा के त्यागपत्र देने के बाद अब शिरोमणि प्रबंधक कमेटी के प्रतिनिधि के तौर पर दिल्ली कमेटी में नामजद होने का दावा छोड़ना होगा। साथ ही 9 दिसंबर को अदालत में मुकदमा उन्हें वापस लेना होगा ताकि नई कमेटी के गठन का रास्ता साफ हो। शिरोमणि कमेटी द्वारा भेजे गए नये प्रतिनिधि के अतिरिक्त दिल्ली के सिंह सभा गुरुद्वारों मेें लॉटरी द्वारा एक अन्य प्रधान को नामजद करने के बाद दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के नये कार्यकारी बोर्ड का गठन इसी महीने के अंतिम सप्ताह तक होने की संभावना है। 

दिल्ली गुरुद्वारा चुनाव निदेशालय ले सकता है निर्णय
बदली राजनीतिक परिस्थिति में एक बार फिर दिल्ली गुरुद्वारा चुनाव निदेशालय पर सिख नेताओं की निगाहें टिकी हुई हैं। नई कार्यकारिणी के गठन पर अब चुनाव निदेशालय अपना कोई निर्णय दे सकता। हालांकि कई मामले अदालत में लंबित है, लिहाजा चुनाव निदेशालय वर्तमान परिस्थितियों के बारे में अदालत को अवगत कर नई पहल कर सकता है।

गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ले रही है कानूनी राय
दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के महासचिव व शिरोमणि अकाली दल दिल्ली इकाई के अध्यक्ष हरमीत सिंह कालका ने कहा कि कमेटी कानूनी राय ले रही है। कालका ने कहा कि उत्पन्न हुई स्थिति में ना केवल दिल्ली सरकार बल्कि केंद्र सरकार भी जिम्मेदार है। कालका ने कहा कि उत्पन्न हुई स्थिति के संबंध में कानूनी राय के साथ अदालत भी जाएंगे। नवनिर्वाचित सदस्यों का जनरल हाउस जल्द बुलाई जाएगी। नई कार्यकारिणी के लिए चुनाव कराया जाएगा। 

शिअद की स्थिति मजबूत
दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी चुनाव में शिरोमणि अकाली दल ने 27 वार्ड में जीत दर्ज की थी। साथ ही एक अन्य सदस्य ने भी अकाली दल को समर्थन दिया है। कोऑप्शन के माध्यम से चुने गए सदस्यों की बदौलत अब 30 सदस्य शिरोमणि अकाली दल के हैं। 

विस्तार

अकाली नेता व प्रबंधक कमेटी के निवर्तमान अध्यक्ष मनजिंदर सिंह सिरसा के भाजपा में शामिल होने से सिख राजनीति का पूरा समीकरण बदल गया है।

दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की जिम्मेदारी किसे सौंपी जाए, इसे लेकर पेच फंसा है। साथ ही प्रबंधक कमेटी की नई कार्यकारिणी के गठन को लेकर भी उलझन है। सांविधानिक संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई है। वजह यह कि जब तक प्रबंधक कमेटी की पुरानी जनरल बॉडी की बैठक नहीं होती और इस्तीफा नहीं मंजूर होता तब तक सिरसा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष बने रहेंगे। 

इस्तीफे के बाद भी सिरसा प्रधान 

गुरुद्वारा एक्ट के अनुसार सिरसा के इस्तीफा देने से दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के निवर्तमान अध्यक्ष का पद समाप्त नहीं हो जाता। यह तभी समाप्त होगा जब प्रबंधक कमेटी की 2017 में चुनी गई जनरल बॉडी की मीटिंग बुलाई जाती है। इसी कमेटी को अधिकार है कि सिरसा की अध्यक्षता को रद्द करें। लेकिन इसमें पेच यह है कि 2017 की जनरल बॉडी मीटिंग बुलाई ही नहीं जा सकती क्योंकि नई कमेटी के लिए चुनाव संपन्न हो चुका है और सिरसा समेत कई सदस्यों का मामला अदालत में विचाराधीन है। कई कानूनी अड़चनें इस राह में हैं। 

ऐसे में गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के कामकाज चलाने को लेकर भी उलझन बढ़ी हुई है। क्योंकि अध्यक्ष व महासचिव का संयुक्त हस्ताक्षर अगर नहीं होता है तो कोई काम संभव नहीं है। किसी भी तरह के प्रस्ताव को पास कराने के लिए अध्यक्ष की सहमति जरूरी है। 

महासचिव व उपप्रधान में खींचतान

सिरसा के इस्तीफे के बाद नये कार्यकारी बोर्ड के गठन होने तक कामकाज के लिए कार्यकारी प्रधान को लेकर भी खींचतान शुरू होगा। सिरसा के बाद जहां प्रबंधक कमेटी के महासचिव हरमीत सिंह कालका सक्रिय हो गए हैं वहीं, गुरुद्वारा मामलों के जानकार इंदर मोहन सिंह का कहना है कि नये कार्यकारी बोर्ड के गठन होने तक कार्यकारी प्रधान के तौर पर उपप्रधान कुलवंत सिंह बाठ देखेंगे क्योंकि पूर्व सीनियर उपप्रधान रणजीत कौर की मूल सदस्यता जिला अदालत के आदेश से रद्द की जा चुकी है। बीबी कौर ने उच्च न्यायालय में दायर की गई अपील को भी वापस ले लिया है। 

मौजूदा हालात में कमेटी का कामकाज चलाना कठिन

मौजूदा हालातों में मामला पेचीदा है। क्योंकि, प्रबंधक कमेटी के महासचिव के अकेले हस्ताक्षर से कमेटी का कोई कामकाज नही किया जा सकता है। यह भी है कि सिरसा का बादल धड़े को अलविदा कहने के बाद अब त्यागपत्र वापस भी नही ले सकते हैं। गुरुद्वारा मामलों के जानकार का कहना है कि सिरसा के त्यागपत्र देने के बाद अब शिरोमणि प्रबंधक कमेटी के प्रतिनिधि के तौर पर दिल्ली कमेटी में नामजद होने का दावा छोड़ना होगा। साथ ही 9 दिसंबर को अदालत में मुकदमा उन्हें वापस लेना होगा ताकि नई कमेटी के गठन का रास्ता साफ हो। शिरोमणि कमेटी द्वारा भेजे गए नये प्रतिनिधि के अतिरिक्त दिल्ली के सिंह सभा गुरुद्वारों मेें लॉटरी द्वारा एक अन्य प्रधान को नामजद करने के बाद दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के नये कार्यकारी बोर्ड का गठन इसी महीने के अंतिम सप्ताह तक होने की संभावना है। 

दिल्ली गुरुद्वारा चुनाव निदेशालय ले सकता है निर्णय

बदली राजनीतिक परिस्थिति में एक बार फिर दिल्ली गुरुद्वारा चुनाव निदेशालय पर सिख नेताओं की निगाहें टिकी हुई हैं। नई कार्यकारिणी के गठन पर अब चुनाव निदेशालय अपना कोई निर्णय दे सकता। हालांकि कई मामले अदालत में लंबित है, लिहाजा चुनाव निदेशालय वर्तमान परिस्थितियों के बारे में अदालत को अवगत कर नई पहल कर सकता है।

गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ले रही है कानूनी राय

दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के महासचिव व शिरोमणि अकाली दल दिल्ली इकाई के अध्यक्ष हरमीत सिंह कालका ने कहा कि कमेटी कानूनी राय ले रही है। कालका ने कहा कि उत्पन्न हुई स्थिति में ना केवल दिल्ली सरकार बल्कि केंद्र सरकार भी जिम्मेदार है। कालका ने कहा कि उत्पन्न हुई स्थिति के संबंध में कानूनी राय के साथ अदालत भी जाएंगे। नवनिर्वाचित सदस्यों का जनरल हाउस जल्द बुलाई जाएगी। नई कार्यकारिणी के लिए चुनाव कराया जाएगा। 

शिअद की स्थिति मजबूत

दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी चुनाव में शिरोमणि अकाली दल ने 27 वार्ड में जीत दर्ज की थी। साथ ही एक अन्य सदस्य ने भी अकाली दल को समर्थन दिया है। कोऑप्शन के माध्यम से चुने गए सदस्यों की बदौलत अब 30 सदस्य शिरोमणि अकाली दल के हैं। 

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