Noida MP News : नोएडा में शुगरक्रीट से बने ईको-फ्रेंडली क्लासरूम का उद्घाटन, सांसद डॉ. महेश शर्मा ने बताया पर्यावरण हितैषी पहल, गन्ने के कचरे से बने टिकाऊ निर्माण सामग्री से बने क्लासरूम का अनावरण

नोएडा, रफ्तार टुडे। गौतमबुद्ध नगर के सांसद एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. महेश शर्मा ने मंगलवार को सेक्टर-91 स्थित पंचशील बालक इंटर कॉलेज में ‘शुगरक्रीट’ तकनीक से बने ईको-फ्रेंडली क्लासरूम का उद्घाटन किया। यह अनूठी तकनीक गन्ने के कचरे से बनी टिकाऊ निर्माण सामग्री का उपयोग करके विकसित की गई है, जिससे पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचता है।
यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट लंदन और केमिकल सिस्टम टेक्नोलॉजी की अनूठी पहल
शुगरक्रीट निर्माण तकनीक को भारत में केमिकल सिस्टम टेक्नोलॉजी द्वारा यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट लंदन (UEL) के सस्टेनेबिलिटी रिसर्च इंस्टीट्यूट के सहयोग से लाया गया है। इस परियोजना का उद्देश्य लो-कार्बन निर्माण तकनीक को बढ़ावा देना और सतत विकास के लक्ष्यों को साकार करना है।
शुगरक्रीट के सह-निर्माता और UEL के सस्टेनेबिलिटी रिसर्च इंस्टीट्यूट के एसोसिएट एलेन चांडलर ने कहा,
“यह पहल दिखाती है कि शुगरक्रीट कैसे समुदायों को टिकाऊ निर्माण विधियों की ओर ले जाने में मदद कर सकता है। हालांकि, आवश्यक सामग्रियों और कौशल की उपलब्धता सुनिश्चित करना एक चुनौती बनी हुई है, लेकिन हमारी साझेदारी एक लो-कार्बन भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर रही है।”
सांसद डॉ. महेश शर्मा ने पर्यावरण अनुकूलता पर दिया जोर
इस अवसर पर सांसद डॉ. महेश शर्मा ने कहा,
“जब मैं पर्यावरण मंत्री था, तब से ही सतत विकास और स्वच्छ पर्यावरण को लेकर प्रतिबद्ध रहा हूं। यह पहल प्रदूषण को कम करने और पर्यावरण संतुलन बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।”

उन्होंने आगे कहा कि,
“पारंपरिक मिट्टी की ईंटों के निर्माण में जीवाश्म ईंधन जलाने की आवश्यकता होती है, जिससे भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित होती है। इसके अलावा, ईंट भट्ठियों से निकलने वाला वायु प्रदूषण स्थानीय और शहरी समुदायों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित होता है। शुगरक्रीट का उपयोग करके हम न केवल कार्बन उत्सर्जन को कम कर सकते हैं, बल्कि प्राकृतिक संसाधनों का भी संरक्षण कर सकते हैं।”
शुगरक्रीट: टिकाऊ निर्माण का भविष्य
शुगरक्रीट ब्लॉक्स गन्ने से प्राप्त बगास (खोई) और प्राकृतिक खनिज बाइंडर्स से बनाए जाते हैं। ये ब्लॉक्स पारंपरिक ईंटों की तुलना में कई मायनों में अधिक टिकाऊ हैं:
✔ कम कार्बन फुटप्रिंट – निर्माण प्रक्रिया में कार्बन उत्सर्जन लगभग शून्य।
✔ किफायती और हल्का – पारंपरिक ईंटों की तुलना में सस्ता और वजन में हल्का।
✔ बेहतर इंसुलेशन – गर्मी और ठंड दोनों में प्रभावी।
✔ पर्यावरण व समाज पर सकारात्मक प्रभाव – रोजगार सृजन और उपजाऊ मिट्टी के कटाव को रोकने में सहायक।
भारत हर साल 400 मिलियन टन से अधिक गन्ने का उत्पादन करता है, जिससे यह दुनिया के सबसे बड़े बायोमास उत्पादक देशों में से एक बन जाता है। इस तकनीक का उपयोग कर भारत सामाजिक और पर्यावरणीय बदलाव की दिशा में बड़ी छलांग लगा सकता है।

कार्यक्रम में शामिल गणमान्य अतिथि
इस कार्यक्रम में कई प्रतिष्ठित हस्तियां मौजूद रहीं, जिनमें प्रमुख रूप से शामिल थे:
✅ श्री केशव वर्मा – चेयरमैन, हाईपावर कमेटी
✅ श्री सुनील सिंघल – अध्यक्ष, केमिकल सिस्टम टेक्नोलॉजी
✅ श्री आर. मोर – प्रोजेक्ट डायरेक्टर, यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट लंदन
✅ श्री विभूति झा – डिवीजन हेड, बायोएनर्जी
✅ श्री मनोज अवस्थी – शिक्षाविद
✅ श्री मनोज टंडन – प्रधानाचार्य, पंचशील बालक इंटर कॉलेज
✅ सांसद प्रतिनिधि संजय बाली, रोहित कुमार, सहित अन्य गणमान्य अतिथि एवं यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट लंदन के आर्किटेक्चर स्टूडेंट्स
इस पहल को लेकर छात्रों और शिक्षकों में खासा उत्साह देखा गया। ईको-फ्रेंडली क्लासरूम का निर्माण पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
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