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Kisan News : टी-सीरीज के दावे पर किसानों का पलटवार, ‘हमारी जमीन, हमारा हक’, डीएम के दरबार में दस्तक, हाईकोर्ट में भी जारी जंग, टी-सीरीज के दावे के 24 घंटे में किसानों का बड़ा पलटवार


ग्रेटर नोएडा, रफ्तार टुडे।
ग्रेटर नोएडा के नामौली गांव में स्थित 360 एकड़ जमीन को लेकर छिड़ा विवाद अब नया मोड़ ले चुका है। शुक्रवार को जहां मशहूर म्यूजिक कंपनी टी-सीरीज (T-Series) ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण पर सहयोग नहीं करने का आरोप लगाया था, वहीं शनिवार को किसानों ने भी प्रेस वार्ता कर अपना दावा ठोक दिया। किसानों ने साफ कहा — “यह जमीन हमारी है, और इसका असली हकदार भी हम ही हैं।”

टी-सीरीज के दावे के 24 घंटे में किसानों का बड़ा पलटवार
टी-सीरीज ने अपनी प्रेस वार्ता में एलजी गोलचक्कर से शारदा विश्वविद्यालय के बीच बन रही सड़क के लिए प्राधिकरण पर सही ढंग से सहयोग न करने और जमीन अधिग्रहण में असहमति जताई थी। लेकिन किसानों ने इस दावे को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि इस जमीन की असल मालिकियत उनके पूर्वजों की है, और मामला अब भी इलाहाबाद हाईकोर्ट में विचाराधीन है।

किसानों का जोरदार आरोप: फर्जी तरीके से कब्जा
प्रेस वार्ता में किसानों ने दावा किया कि वर्ष 1945 में उनके पूर्वजों — जोध सिंह, मुंशी, लाल सिंह, मंगत, दुलीचंद, प्रेमचंद, गिरवर, नवल और होराम — ने नामौली गांव की 360 एकड़ भूमि लाला सुंदरलाल से खरीदी थी।

किसानों का आरोप है कि 1984 से 1987 के बीच सिकंदराबाद तहसील में चकबंदी के दौरान साजिश के तहत उनके नाम हटाकर जमीन दूसरे लोगों के नाम कर दी गई। फिर इस भूमि का एक बड़ा हिस्सा म्यूजिक कंपनी टी-सीरीज और अन्य कंपनियों को बेच दिया गया।

किसानों ने गंभीर आरोप लगाए कि जिन पूर्वजों की मृत्यु 1970-71 में हो चुकी थी, उनके नाम से फर्जी बैनामे कराए गए। जबकि चकबंदी प्रक्रिया के दौरान जमीन की खरीद-फरोख्त प्रतिबंधित थी। बावजूद इसके कंपनियों के नाम पर बैनामे कर दिए गए।

रेलवे से उठाए गए मुआवजे पर भी सवाल
किसानों ने यह भी दावा किया कि कई हिस्सों का मुआवजा रेलवे से भी उठा लिया गया है। इस मामले में भी अनियमितता के आरोप लगाए गए हैं।

न्याय की जंग: जिलाधिकारी से हाईकोर्ट तक की लड़ाई
किसानों ने जिलाधिकारी न्यायालय में याचिका दाखिल कर अपने नाम दोबारा दर्ज कराए थे, जिसमें उनके पक्ष में निर्णय आया। हालांकि टी-सीरीज ने इस फैसले को मेरठ मंडलायुक्त के समक्ष चुनौती दी, जहां किसानों का वाद अदब पैरवी में खारिज कर दिया गया।

इसके बाद किसानों ने वर्ष 2017 में इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया और आज भी मामला अदालत में लंबित है। किसानों का आरोप है कि कोर्ट में मामला विचाराधीन होने के बावजूद टी-सीरीज और अन्य पक्ष जमीन के टुकड़े बेचते रहे हैं।

डीएम के समक्ष किसानों का ज्ञापन
शनिवार को आशीष कसाना, किशन चंद, धर्मेंद्र प्रधान, शेखर पहलवान, वेदवती देवी, ललिता देवी समेत बड़ी संख्या में किसानों ने जिलाधिकारी और मुख्यमंत्री को संबोधित ज्ञापन सौंपा।

किसानों की प्रमुख मांगें:

  • भूमि की खरीद-फरोख्त पर तुरंत रोक लगे।
  • मुआवजा उठाने पर भी रोक लगाई जाए।
  • पूरे प्रकरण की जांच के लिए एसआईटी (विशेष जांच दल) का गठन हो।
  • हाईकोर्ट के अंतिम निर्णय तक भूमि पर कोई भी कार्यवाही न की जाए।

किसानों ने चेतावनी दी कि यदि उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो वे व्यापक आंदोलन के लिए मजबूर होंगे।

टी-सीरीज का पक्ष: सड़क के बदले एसईजेड की मांग
टी-सीरीज ने अपनी प्रेस वार्ता में कहा था कि प्राधिकरण उनके साथ समुचित सहयोग नहीं कर रहा। कंपनी ने शर्त रखी कि जब तक बाकी बची उनकी जमीन को स्पेशल इकोनॉमिक जोन (SEZ) घोषित नहीं किया जाता या उसके बदले समुचित विकास परियोजनाएं नहीं दी जातीं, तब तक सड़क निर्माण के लिए शेष जमीन प्राधिकरण को नहीं सौंपी जाएगी।

ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की प्रतिक्रिया
ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने इस पूरे विवाद पर अब तक कोई स्पष्ट स्थिति नहीं अपनाई है। प्राधिकरण के जीएम प्लानिंग लीलू सहगल ने कहा कि कंपनी के साथ किसी भी स्तर पर कोई औपचारिक वार्ता नहीं हुई है।

उनका कहना है कि सड़क निर्माण के लिए आवश्यक भूमि का अधिग्रहण बोर्ड में प्रस्तावित है और शासन के निर्णय के बाद ही कोई कार्रवाई होगी। सूत्रों के मुताबिक प्राधिकरण मास्टर प्लान के तहत सड़क निर्माण के लिए स्वतंत्र है और जल्द ही शासन से अनुमति लेकर कार्यवाही करेगा।

क्यों है यह मामला इतना पेचीदा?
यह भूमि विवाद इसलिए भी जटिल हो गया है क्योंकि इसमें निजी कंपनियों, किसानों और सरकारी प्राधिकरण के बीच एक त्रिकोणीय टकराव बन गया है। एक ओर किसानों का दावा है कि जमीन पर उनकी पुश्तैनी मालिकियत है, तो दूसरी ओर टी-सीरीज अपना कानूनी स्वामित्व पेश कर रही है। तीसरी ओर प्राधिकरण सार्वजनिक विकास कार्यों के लिए जमीन चाहता है।

अगर जल्द कोई ठोस हल नहीं निकला तो यह विवाद और बढ़ सकता है और ग्रेटर नोएडा की महत्वपूर्ण सड़क परियोजना भी अटक सकती है।

आगे क्या होगा?
अब सबकी नजरें इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की आगामी कार्यवाही पर टिकी हैं। किसानों का दावा है कि वे अंतिम सांस तक अपनी जमीन के लिए संघर्ष करते रहेंगे। वहीं टी-सीरीज भी अपनी कारोबारी योजना के लिए जमीन का सुरक्षित उपयोग चाहती है।

इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं कि किस तरह विकास कार्यों की आड़ में जमीन विवादों को जन्म दिया जाता है और कैसे वर्षों पुराने मालिकाना दावे आज भी अनसुलझे हैं।


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