अपराध शाखा के पुलिस उपायुक्त राजेश देव ने बताया कि पकड़ी गई महिलाओं की पहचान गगन विहार (साहिबाबाद) निवासी प्रिया जैन (26), मंगोलपुरी दिल्ली निवासी प्रिया, वेस्ट पटेल नगर निवासी काजल, शाहदरा निवासी रेखा उर्फ अंजलि, विश्वास नगर निवासी शिवानी (38) गांव डूंडाहेड़ा, गुरुग्राम निवासी प्रेमवती के रूप में हुई है।
17 दिसंबर को अपराध शाखा की टीम को सूचना मिली थी कि नवजात बच्चों की तस्करी करने वाला एक गैंग गांधी नगर पुश्ता रोड, श्मशान घाट के पास आने वाला है। इसके बाद टीम ने करीब 3.30 बजे वहां से प्रिया जैन, प्रिया और काजल को पकड़ लिया। इनके पास से सात-आठ दिन का नवजात शिशु बरामद हुआ।
जांच के दौरान पता चला कि तीनों महिलाएं नवजात को बेचने के लिए गांधी नगर पहुंची थीं। इस बच्चे का इंतजाम गैंग सरगना प्रियंका ने किया था। प्रियंका मंगोलपुरी निवासी प्रिया की बहन है। तीनों की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने अगले दिन तीन अन्य महिलाओं को एक नवजात के साथ पकड़ लिया।
तीनों एक दलाल के जरिये बच्चे का सौदा करने वाली थीं। पुलिस की पूछताछ में इन महिलाओं ने अपना अपराध कबूल कर लिया। इन लोगों ने बताया कि प्रियंका और काजल इनकी गैंग लीडर है। फिलहाल प्रियंका फरार है।
ऐसे बनी तस्कर
पुलिस पूछताछ में आरोपी महिलाओं ने बताया कि सभी बेहद गरीब परिवार से संबंध रखती हैं। कुछ समय पूर्व उन्हें पता चला था कि आईवीएफ सेंटर पर गर्भ धारण के लिए अंडे (एग्स) बेचे जाते थे। जिन महिलाओं को सामान्य तरीके बच्चे नहीं होते हैं उन्हें आईवीएफ की मदद से प्रजनन कराया जाता है। ऐसी कुछ जरूरतमंद महिलाओं को यह महिलाएं अपने अंडे बेचती हैं।
इसके बदले उन्हें 20 से 25 हजार रुपये मिलते हैं। काजल आईवीएफ सेंटर पर गरीब महिलाओं को ले जाकर कमीशन पर अंडे बिकवाती थी। यहां इसकी मुलाकात कुछ ऐसे लोगों से हुई, जिन्हें बच्चे नहीं हो सकते थे। ऐसे लोगों को बच्चे गोद लेने होते थे, लेकिन लंबी कानूनी प्रक्रिया के कारण वह नहीं ले पा रहे थे। काजल व प्रियंका ऐसे दंपती को बच्चा दिलवाकर उसमें भी मोटा कमीशन लेती थीं।
गरीब गर्भवती महिलाओं की रहती थी तलाश
जेजे कलस्टर व गरीब बस्तियों में काजल व प्रियंका पता लगा लेती थी कि यहां कौन-कौन महिलाएं गर्भवती हैं। ऐसी महिलाओं और उनके पति को बहला-फुसलाकर उन्हें बच्चा बेचने के लिए तैयार किया जाता था। बदले में एक से डेढ़ लाख दिलवाने का वादा किया जाता था। बाद में या तो खुद या दलाल के जरिए नवजात को दो से तीन लाख रुपये में बेच दिया जाता था। शुरुआती जांच में पता चला है कि यह 50 से अधिक बच्चे बेच चुके हैं।