Greater Noida News: “सांस्कृतिक जुड़ाव से ही संभव होगा अखंड भारत, जीएल बजाज में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचार गोष्ठी”
वेदपाल जी ने इस संदर्भ में महाश्वेता देवी के शब्दों को उद्धृत करते हुए कहा, "अप्राप्त को प्राप्त करना सरल है, प्राप्त जो लुप्त हुआ, उसे प्राप्त करना दुष्कर है।" उन्होंने महर्षि अरविंद के विचारों का समर्थन करते हुए कहा कि हमें सांस्कृतिक रूप से विखंडित भारत के टुकड़ों को जोड़कर अखंड भारत का संकल्प साकार करना ही होगा।
ग्रेटर नोएडा, रफ्तार टुडे: अखंड भारत के विचार को साकार करने के लिए सांस्कृतिक जुड़ाव की आवश्यकता पर बल देते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस), गौतम बुद्ध नगर के संपर्क विभाग द्वारा जीएल बजाज प्रौद्योगिकी संस्थान के सभागार में एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर प्रमुख वक्ता के रूप में श्रीमान वेदपाल जी, सह संपर्क प्रमुख, आरएसएस, मेरठ प्रांत उपस्थित रहे। साथ ही, विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. राकेश कुमार खांडल, पूर्व कुलपति, उत्तर प्रदेश प्राविधिक विश्वविद्यालय, और डॉ. आलोक कुमार मिश्रा, संयुक्त सचिव, भारतीय विश्वविद्यालय संघ, भी शामिल हुए। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. नितिन अग्रवाल, प्रणेता ब्लिस आयुर्वेद, ने की।
कार्यक्रम की शुरुआत: दीप प्रज्वलन और प्रेरक संदेश
कार्यक्रम का शुभारंभ भारत माता के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्वलन से हुआ। इसके पश्चात् डॉ. राकेश खांडल ने अपने संबोधन में भारत की सांस्कृतिक गहराई और ऋषि मुनियों की संतान के रूप में हमारे संस्कारों के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि इसी कारण से भारत के रूस, यूक्रेन, इसराइल और फिलिस्तीन जैसे राष्ट्रों के साथ मित्रतापूर्ण संबंध हैं।
वेदपाल जी का उद्बोधन: विभाजन और अखंड भारत का संकल्प
मुख्य वक्ता वेदपाल जी ने 1947 में हुए भारत के विभाजन और उसके बाद हुए वीभत्स नरसंहार को याद करते हुए कहा कि यह स्वतंत्रता के साथ-साथ एक विषाद का भी कारण बना। उन्होंने कहा कि मां भारती के तीन सुपुत्रों के बीच कटुता के बीज बो दिए गए, जिससे भारत का भूभाग 83 लाख वर्ग किलोमीटर से सिकुड़कर 32 लाख वर्ग किलोमीटर रह गया।
वेदपाल जी ने इस संदर्भ में महाश्वेता देवी के शब्दों को उद्धृत करते हुए कहा, “अप्राप्त को प्राप्त करना सरल है, प्राप्त जो लुप्त हुआ, उसे प्राप्त करना दुष्कर है।” उन्होंने महर्षि अरविंद के विचारों का समर्थन करते हुए कहा कि हमें सांस्कृतिक रूप से विखंडित भारत के टुकड़ों को जोड़कर अखंड भारत का संकल्प साकार करना ही होगा।
सांस्कृतिक एकता की ओर बढ़ते कदम
इस गोष्ठी में समाज के विभिन्न वर्गों और कार्यक्षेत्रों से विद्वानों की भागीदारी रही, जिन्होंने अखंड भारत की अवधारणा को साकार करने के लिए सांस्कृतिक जुड़ाव की अनिवार्यता पर अपने विचार साझा किए।
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