Haldwani Road News : सड़क पर भरे पानी की समस्या पर ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की कार्रवाई सवालों के घेरे में, छोटे कर्मचारियों पर गिरी गाज, बड़े अधिकारी बने मूक दर्शक
ग्रेटर नोएडा, रफ़्तार टुडे। औद्योगिक विकास के लिए प्रसिद्ध ग्रेटर नोएडा में बुनियादी सुविधाओं के अभाव का मामला सुर्खियों में है। कुलेसरा-हल्दौनी मार्ग की सड़क, जो लंबे समय से पानी में डूबी हुई है, एक तालाब का रूप ले चुकी है। यहां पर दो साल से अधिक समय से पानी भरने की समस्या बनी हुई है, जिस पर ध्यान देने के बजाय ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों ने जिम्मेदारी से आंख मूंद ली है।
इस मुद्दे पर जब स्थानीय सुपरवाइजरों द्वारा उच्च अधिकारियों को लगातार स्थिति से अवगत कराया गया, तब भी उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई। इसके विपरीत, अब प्राधिकरण की एसीईओ श्रीलक्ष्मी ने टेक्निकल सुपरवाइजर को सेवा समाप्त करने के लिए संबंधित एजेंसी को पत्र लिख दिया है। जबकि असल में गलती प्राधिकरण के डिवीजन-3 के अधिकारियों की बताई जा रही है, जो इस गंभीर स्थिति को नजरअंदाज करते आए हैं।
गरीब सुपरवाइजरों पर गिरी गाज, बड़े अधिकारी बने मूक दर्शक
ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के इस कदम से स्थानीय निवासियों और प्राधिकरण के अंदर ही आक्रोश की लहर दौड़ गई है। बड़े अधिकारियों द्वारा अपनी गलती को ढकने के लिए छोटे अधिकारियों को बलि का बकरा बना दिया गया है। वे सुपरवाइजर, जिन्होंने बार-बार सड़कों पर पानी की समस्या की सूचना दी थी, अब खुद ही कार्रवाई का सामना कर रहे हैं। प्राधिकरण के अधिकारियों की इस स्थिति पर आलोचना की जा रही है, क्योंकि इन गरीब सुपरवाइजरों की कोई गलती नहीं थी।
कुलेसरा-हल्दौनी रोड: पानी से लबालब भरी सड़क पर प्राधिकरण की अनदेखी
उत्तर प्रदेश सरकार के औद्योगिक विकास के सराहनीय प्रयासों के बावजूद, ग्रेटर नोएडा जैसे औद्योगिक क्षेत्रों में इस तरह की समस्याएं स्थिति को और गंभीर बनाती हैं। कुलेसरा-हल्दौनी रोड पर बना यह पानी का तालाब न केवल यहां के निवासियों के लिए असुविधाजनक है, बल्कि यहां से गुजरने वाले वाहनों और पैदल चलने वालों के लिए भी खतरा बना हुआ है। लोगों का कहना है कि प्राधिकरण को चाहिए कि वह इस समस्या का स्थायी समाधान निकाले, न कि अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिए छोटे कर्मचारियों पर कार्यवाही करे।
सवालों के घेरे में प्राधिकरण की भूमिका
ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की यह कार्रवाई प्रदेश में सरकारी व्यवस्थाओं पर सवाल खड़े करती है। कई लोग इसे बड़े अधिकारियों द्वारा अपनी जान बचाने के लिए छोटे कर्मचारियों पर दोष मढ़ने की कोशिश के रूप में देख रहे हैं। क्षेत्र में यह मुद्दा अब चर्चा का विषय बन गया है और लोगों का मानना है कि इस तरह की कार्यवाही से न तो समस्या का समाधान हो सकेगा और न ही प्राधिकरण की कार्यप्रणाली में सुधार आएगा।
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