सार
अदालत ने कहा कि दुष्कर्म के आरोप में आरोपी पर मुकदमा चलाते समय न्यायालयों को मामले को अत्यंत संवेदनशीलता के साथ देखना चाहिए।
कोर्ट (प्रतीकात्मक तस्वीर।)
– फोटो : iStock
हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि दुष्कर्म के मामले में अभियोजन की जिम्मेदारी है कि वह अपराध के प्रत्येक घटक को सकारात्मक रूप से साबित करे और इस तरह की जिम्मेदारी कभी नहीं बदलती।
अदालत ने कहा बचाव पक्ष का यह कर्तव्य नहीं है कि वह यह बताए कि कैसे और क्यों दुष्कर्म के मामले में पीड़िता और अन्य गवाहों ने आरोपी को झूठा फंसाया है। अदालत ने यह टिप्पणी करते हुए अपनी पुत्री से दुष्कर्म के मामले में सजा पाए दोषी की सजा रद्द करते हुए रिहा करने का निर्देश दिया है।
न्यायमूर्ति चंद्र धारी सिंह ने याची को 15 वर्ष पहले दुष्कर्म के मामले में सुनाई 8 वर्ष की सजा को रद्द करते हुए कहा दुष्कर्म के आरोप में एक आरोपी पर मुकदमा चलाते समय न्यायालयों को मामले को अत्यंत संवेदनशीलता के साथ देखना चाहिए। मामले की व्यापक संभावनाओं की जांच करनी चाहिए और गवाहों के साक्ष्य में मामूली विरोधाभासों या महत्वहीन विसंगतियों से प्रभावित नहीं होना चाहिए, जो कि पर्याप्त नहीं हैं। अभियोजन पक्ष को अपने पैरों पर खड़ा होना पड़ता है और बचाव पक्ष के मामले की कमजोरी का फायदा नहीं उठा सकता।
अदालत ने कहा यह स्थापित कानून है कि जब तक आरोपी का अपराध कानूनी साक्ष्य और रिकॉर्ड की सामग्री के आधार पर उचित संदेह से परे स्थापित नहीं किया जाता है, उसे अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता। आरोपी के बेगुनाह होने का प्रारंभिक अनुमान है और अभियोजन पक्ष को विश्वसनीय सबूतों द्वारा आरोपी के खिलाफ अपराध को साबित करना होगा। आरोपी हर उचित संदेह का लाभ पाने का हकदार है।
उन्होंने कहा कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कानून को तय किया कि अभियोजन पक्ष को अपने मामले को उचित संदेह से परे साबित करना होगा और बचाव के मामले की कमजोरी से समर्थन नहीं ले सकता। आरोपी को दोषी ठहराने के लिए रिकॉर्ड पर उचित कानूनी सबूत और सामग्री होनी चाहिए।
दोषसिद्धि अभियोक्ता की एकमात्र गवाही पर आधारित हो सकती है बशर्ते यह उसकी गवाही का आश्वासन देती हो। हालांकि अगर अदालत के पास अभियोजन पक्ष के बयान को उसके अंकित मूल्य पर स्वीकार नहीं करने का कारण है तो वह पुष्टि की तलाश कर सकता है।
निचली अदालत ने आरोपी को जुलाई 2006 को दोषी ठहराते हुए आठ वर्ष कैद व एक हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी। दोषी ने फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
याची के अधिवक्ता ने अदालत को बताया कि लड़की के बयान में कई विरोधाभास हैं। अदालत को बताया गया कि निचली अदालत ने लड़की की मां, उसके सौतेले भाई और जांच अधिकारी (आईओ) सहित कई गवाहों से पूछताछ तक नहीं की। इसलिए उनके बयान की पुष्टि नहीं हो पाई।
उन्होंने एक ही कमरे के मकान में चार लोग रहते थे और यह संभव नहीं है कि लड़की से लगातार दुष्कर्म किया जाए और अन्य लोगों को पता न लगे। उन्होंने कहा पहली घटना 14 जुलाई को हुई जबकि मामला सितंबर में दर्ज करवाया गया। उन्होंने कहा उनके मुवक्किल को मात्र इस कारण झूठे मामले में फंसाया गया कि वह दूसरे धर्म के एक स्थानीय लड़के के साथ उसके रिश्ते के खिलाफ था।
विस्तार
हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि दुष्कर्म के मामले में अभियोजन की जिम्मेदारी है कि वह अपराध के प्रत्येक घटक को सकारात्मक रूप से साबित करे और इस तरह की जिम्मेदारी कभी नहीं बदलती।
अदालत ने कहा बचाव पक्ष का यह कर्तव्य नहीं है कि वह यह बताए कि कैसे और क्यों दुष्कर्म के मामले में पीड़िता और अन्य गवाहों ने आरोपी को झूठा फंसाया है। अदालत ने यह टिप्पणी करते हुए अपनी पुत्री से दुष्कर्म के मामले में सजा पाए दोषी की सजा रद्द करते हुए रिहा करने का निर्देश दिया है।
न्यायमूर्ति चंद्र धारी सिंह ने याची को 15 वर्ष पहले दुष्कर्म के मामले में सुनाई 8 वर्ष की सजा को रद्द करते हुए कहा दुष्कर्म के आरोप में एक आरोपी पर मुकदमा चलाते समय न्यायालयों को मामले को अत्यंत संवेदनशीलता के साथ देखना चाहिए। मामले की व्यापक संभावनाओं की जांच करनी चाहिए और गवाहों के साक्ष्य में मामूली विरोधाभासों या महत्वहीन विसंगतियों से प्रभावित नहीं होना चाहिए, जो कि पर्याप्त नहीं हैं। अभियोजन पक्ष को अपने पैरों पर खड़ा होना पड़ता है और बचाव पक्ष के मामले की कमजोरी का फायदा नहीं उठा सकता।
अदालत ने कहा यह स्थापित कानून है कि जब तक आरोपी का अपराध कानूनी साक्ष्य और रिकॉर्ड की सामग्री के आधार पर उचित संदेह से परे स्थापित नहीं किया जाता है, उसे अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता। आरोपी के बेगुनाह होने का प्रारंभिक अनुमान है और अभियोजन पक्ष को विश्वसनीय सबूतों द्वारा आरोपी के खिलाफ अपराध को साबित करना होगा। आरोपी हर उचित संदेह का लाभ पाने का हकदार है।
उन्होंने कहा कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कानून को तय किया कि अभियोजन पक्ष को अपने मामले को उचित संदेह से परे साबित करना होगा और बचाव के मामले की कमजोरी से समर्थन नहीं ले सकता। आरोपी को दोषी ठहराने के लिए रिकॉर्ड पर उचित कानूनी सबूत और सामग्री होनी चाहिए।
दोषसिद्धि अभियोक्ता की एकमात्र गवाही पर आधारित हो सकती है बशर्ते यह उसकी गवाही का आश्वासन देती हो। हालांकि अगर अदालत के पास अभियोजन पक्ष के बयान को उसके अंकित मूल्य पर स्वीकार नहीं करने का कारण है तो वह पुष्टि की तलाश कर सकता है।
निचली अदालत ने आरोपी को जुलाई 2006 को दोषी ठहराते हुए आठ वर्ष कैद व एक हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी। दोषी ने फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
याची के अधिवक्ता ने अदालत को बताया कि लड़की के बयान में कई विरोधाभास हैं। अदालत को बताया गया कि निचली अदालत ने लड़की की मां, उसके सौतेले भाई और जांच अधिकारी (आईओ) सहित कई गवाहों से पूछताछ तक नहीं की। इसलिए उनके बयान की पुष्टि नहीं हो पाई।
उन्होंने एक ही कमरे के मकान में चार लोग रहते थे और यह संभव नहीं है कि लड़की से लगातार दुष्कर्म किया जाए और अन्य लोगों को पता न लगे। उन्होंने कहा पहली घटना 14 जुलाई को हुई जबकि मामला सितंबर में दर्ज करवाया गया। उन्होंने कहा उनके मुवक्किल को मात्र इस कारण झूठे मामले में फंसाया गया कि वह दूसरे धर्म के एक स्थानीय लड़के के साथ उसके रिश्ते के खिलाफ था।
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