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High Court Said Decision Should Be Taken Only After Proper Evaluation Of Facts – हाईकोर्ट ने कहा : तथ्यों के उचित मूल्यांकन के बाद ही किया जाना चाहिए फैसला

सार

कोर्ट ने कहा कि वैवाहिक मामलों का फैसला उचित तथ्यों के उचित मूल्यांकन पर किया जाना चाहिए। इसलिए क्योंकि मुद्दे आम तौर पर बेडरूम और घर तक ही सीमित होते हैं और ज्यादातर मामलों में एक पक्ष द्वारा क्रूरता की स्थिति होती है। 

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उच्च न्यायालय ने कहा कि वैवाहिक मामलों का फैसला तथ्यों का सही तरीके से मूल्यांकन के आधार पर किया जाना चाहिए, क्योंकि मुद्दे आम तौर पर बेडरूम और घर तक ही सीमित होते हैं। अदालत ने कहा ज्यादातर मामलों में एक पक्ष द्वारा क्रूरता की जाती है और दूसरे पक्ष द्वारा विभिन्न परिस्थितियों में महसूस किया जाता है।

न्यायमूर्ति जसमीत सिंह और न्यायमूर्ति विपिन सांघी की खंडपीठ ने कहा कि वैवाहिक विवादों में सबूतों की जांच करते समय यदि विरोधाभास मामूली हैं तो अपीलीय अदालतों को इसे नजरअंदाज कर देना चाहिए। पीठ ने उक्त टिप्पणी पति द्वारा पत्नी को तलाक मंजूर करने संबंधी फैमिली कोर्ट के निर्णय को पति की चुनौती याचिका खारिज करते हुए की। 

पीठ ने कहा कि कई बार इन मामलों में कोई स्वतंत्र, निष्पक्ष गवाह नहीं होता और इसलिए तथ्यों और परिस्थितियों से उभरने वाली समग्र तस्वीर और दस्तावेजी या अन्य सबूतों द्वारा स्थापित पर विचार किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि वैवाहिक मुद्दों के मामलों में साक्ष्य का मूल्यांकन करते समय संभावनाओं की प्रधानता के सिद्धांत को लागू किया जाना चाहिए।

पीठ फैमिली कोर्ट के फैसले के खिलाफ एक पति की अपील पर सुनवाई कर रही है। कोर्ट ने उसकी पत्नी द्वारा विवाह को भंग करने की याचिका स्वीकार की थी। निचली अदालत ने पाया कि पति ने पत्नी से लगातार मारपीट और प्रताड़ित किया था और उस पर चरित्रहीनता का आरोप लगाया था। अदालत ने कहा यह क्रूरता है और तलाक का आधार है।शुरुआत में, उच्च न्यायालय ने कहा कि मध्यस्थ समाधान की संभावना का पता लगाने के लिए पक्षों के साथ बातचीत करने के बाद, यह निष्कर्ष निकला कि यह संभव नहीं था।

अपीलकर्ता ने उच्च न्यायालय के समक्ष कई तर्क रखे जिसमें यह भी शामिल है कि पारिवारिक न्यायालय ने कोई तर्क नहीं दिया था कि बिना किसी दस्तावेजी साक्ष्य को रिकॉर्ड या तीसरे पक्ष की पुष्टि के साबित किए बिना, प्रतिवादी ने अपने मामले को सफलतापूर्वक साबित कर दिया था।

पीठ ने याची के तर्को पर असहमति जताते हुए कहा कि विरोधाभास इतने गंभीर नहीं हैं कि फैमिली कोर्ट के निष्कर्ष को बदल दें। न ही वे इतने गंभीर हैं कि वे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं। पीठ ने सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि क्रूरता को निर्धारित करने के लिए कोई निश्चित पैरामीटर नहीं हो सकता।

उच्च न्यायालय ने कथित यौन उत्पीड़न के एक मामले में दिल्ली पुलिस द्वारा जीरो प्राथमिकी दर्ज करने और फिर जांच को गाजियाबाद स्थानांतरित करने पर नाराजगी जताई है। अदालत ने कहा यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा करने वाली संस्थाएं अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिए तत्पर हैं। इससे आम नागरिकों का विश्वास कम होता है।

न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा कि चूंकि जीटीबी एन्क्लेव थाने के आसपास कथित रूप से जबरन यौन उत्पीड़न की घटना हुई थी। ऐसे में राजधानी में प्राथमिकी दर्ज करने के लिए पर्याप्त आधार है। अदालत ने पुलिस को फटकार लगाते हुए कहा कि गाजियाबाद के इंदिरापुरम थाने से मामले को वापस मंगवाकर उचित जांच की जाए।

पुलिस द्वारा जीरो प्राथमिकी तब दर्ज की जाती है जब कथित अपराध उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं होता है और बाद में इसे उस थाने को भेज दिया जाता है जहां कथित अपराध हुआ है।

संस्थाएं जिम्मेदारी से भाग जाती हैं
अदालत ने कहा यह दुर्भाग्यपूर्ण लगता है कि आम नागरिकों के जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा करने वाली संस्थाएं अपनी जिम्मेदारियों से जल्दी ही भाग जाती हैं। अदालत ने 30 नवंबर को पारित अपने आदेश में कहा कि इस प्रकार का व्यवहार इन जांच एजेंसियों पर आम नागरिकों के भरोसे को हमेशा कमजोर करता है।

अदालत यौन उत्पीड़न पीड़िता द्वारा दायर उस याचिका पर विचार कर रही है जिसमें जीटीबी एन्क्लेव थाने द्वारा उसकी शिकायत की जांच करने और इंदिरापुरम पुलिस स्टेशन से प्राथमिकी वापस लेने का निर्देश देने की मांग की गई है।

याचिकाकर्ता की शिकायत है कि दिल्ली पुलिस ने नियमित प्राथमिकी के बजाय उसकी शिकायत के आधार पर जीरो प्राथमिकी दर्ज की और जांच उत्तर प्रदेश पुलिस को स्थानांतरित कर दी।

पुलिस का तर्क खारिज
पुलिस ने जीरो प्राथमिकी दर्ज करने को उचित ठहराते हुए कहा कि चिकित्सा जांच के दौरान पीड़िता ने बताया था यौन उत्पीड़न कथित तौर पर इंदिरापुरम में हुआ था। याचिकाकर्ता ने जीटीबी एन्क्लेव थाने के क्षेत्र में कोई विशिष्ट पता या किसी स्थान की पहचान नहीं की जहां कथित यौन उत्पीड़न हुआ या कथित घटना की कोई तारीख या समय नहीं बताया।

अदालत ने कहा कि रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री से पता चलता है कि जीटीबी एन्क्लेव इलाके में जबरन यौन उत्पीड़न की घटना हुई थी, तो पुलिस प्राथमिकी दर्ज करने के लिए बाध्य थी। वह यह पता लगाने के लिए बाध्य नहीं है कि याचिकाकर्ता शहर में रहता है या घटना का विशिष्ट समय, तिथि और स्थान क्या था।

पुलिस दायित्व निभाने में विफल
अदालत ने कहा जांच को गाजियाबाद में स्थानांतरित कर जीटीबी एन्क्लेव थाना पुलिस ने अपना दायित्व निभाने में विफलता का प्रदर्शन किया है। प्राथमिकी दर्ज करने में देरी से कीमती समय नष्ट होता है जबकि इसका उपयोग जांच में किया जा सकता है।

अदालत ने कहा यह मायने नहीं रखता कि याचिकाकर्ता दिल्ली की निवासी नहीं है। केवल घटना का खुलासा जीटीबी एन्क्लेव थाने के आसपास होना ही वहां प्राथमिकी दर्ज करने के लिए पर्याप्त है। अदालत ने आदेश दिया कि जीटीबी एन्क्लेव थाना नियमित प्राथमिकी दर्ज कर मामले की जांच करे।

विस्तार

उच्च न्यायालय ने कहा कि वैवाहिक मामलों का फैसला तथ्यों का सही तरीके से मूल्यांकन के आधार पर किया जाना चाहिए, क्योंकि मुद्दे आम तौर पर बेडरूम और घर तक ही सीमित होते हैं। अदालत ने कहा ज्यादातर मामलों में एक पक्ष द्वारा क्रूरता की जाती है और दूसरे पक्ष द्वारा विभिन्न परिस्थितियों में महसूस किया जाता है।

न्यायमूर्ति जसमीत सिंह और न्यायमूर्ति विपिन सांघी की खंडपीठ ने कहा कि वैवाहिक विवादों में सबूतों की जांच करते समय यदि विरोधाभास मामूली हैं तो अपीलीय अदालतों को इसे नजरअंदाज कर देना चाहिए। पीठ ने उक्त टिप्पणी पति द्वारा पत्नी को तलाक मंजूर करने संबंधी फैमिली कोर्ट के निर्णय को पति की चुनौती याचिका खारिज करते हुए की। 

पीठ ने कहा कि कई बार इन मामलों में कोई स्वतंत्र, निष्पक्ष गवाह नहीं होता और इसलिए तथ्यों और परिस्थितियों से उभरने वाली समग्र तस्वीर और दस्तावेजी या अन्य सबूतों द्वारा स्थापित पर विचार किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि वैवाहिक मुद्दों के मामलों में साक्ष्य का मूल्यांकन करते समय संभावनाओं की प्रधानता के सिद्धांत को लागू किया जाना चाहिए।

पीठ फैमिली कोर्ट के फैसले के खिलाफ एक पति की अपील पर सुनवाई कर रही है। कोर्ट ने उसकी पत्नी द्वारा विवाह को भंग करने की याचिका स्वीकार की थी। निचली अदालत ने पाया कि पति ने पत्नी से लगातार मारपीट और प्रताड़ित किया था और उस पर चरित्रहीनता का आरोप लगाया था। अदालत ने कहा यह क्रूरता है और तलाक का आधार है।शुरुआत में, उच्च न्यायालय ने कहा कि मध्यस्थ समाधान की संभावना का पता लगाने के लिए पक्षों के साथ बातचीत करने के बाद, यह निष्कर्ष निकला कि यह संभव नहीं था।

अपीलकर्ता ने उच्च न्यायालय के समक्ष कई तर्क रखे जिसमें यह भी शामिल है कि पारिवारिक न्यायालय ने कोई तर्क नहीं दिया था कि बिना किसी दस्तावेजी साक्ष्य को रिकॉर्ड या तीसरे पक्ष की पुष्टि के साबित किए बिना, प्रतिवादी ने अपने मामले को सफलतापूर्वक साबित कर दिया था।

पीठ ने याची के तर्को पर असहमति जताते हुए कहा कि विरोधाभास इतने गंभीर नहीं हैं कि फैमिली कोर्ट के निष्कर्ष को बदल दें। न ही वे इतने गंभीर हैं कि वे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं। पीठ ने सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि क्रूरता को निर्धारित करने के लिए कोई निश्चित पैरामीटर नहीं हो सकता।

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