Hindon Yamuna High court News: हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, गौतमबुद्ध नगर में यमुना और हिंडन के खादर की कृषि भूमि पर बिक्री प्रतिबंध हटाया, किसानों को मिली राहत
इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला न केवल गौतमबुद्ध नगर के किसानों के लिए राहत लेकर आया है, बल्कि यह निर्णय आपदा प्रबंधन और नागरिक अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी है। इस फैसले से भविष्य में इस तरह के मामलों के लिए एक मिसाल कायम होगी।
ग्रेटर नोएडा, रफ़्तार टुडे। गौतमबुद्ध नगर के किसानों और भूमि मालिकों के लिए बड़ी राहत की खबर है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यमुना और हिंडन के खादर क्षेत्र में कृषि भूमि की बिक्री पर लगाए गए प्रतिबंधों को रद्द कर दिया है। यह फैसला न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने सुनाया, जो पिछले तीन वर्षों से भूमि मालिकों के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा बना हुआ था।
क्या है मामला?
यह विवाद सितंबर 2020 में गौतमबुद्ध नगर जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (DDMA) द्वारा पारित एक प्रस्ताव से शुरू हुआ था, जिसके तहत बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में अनधिकृत निर्माण को रोकने के लिए कृषि भूमि की बिक्री पर रोक लगा दी गई थी। इस आदेश के तहत, भूमि मालिकों को भूमि बेचने से पहले अनापत्ति प्रमाणपत्र (NOC) प्राप्त करना अनिवार्य कर दिया गया था।
कोर्ट का फैसला और तर्क
कोर्ट ने प्रतिबंधों को गैर-कानूनी और दमनकारी करार देते हुए, सरकार के आदेशों को रद्द कर दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भूमि मालिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करना, राज्य के कानूनों के अनुरूप नहीं है। न्यायालय ने कहा कि सरकार का बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में अनधिकृत निर्माण रोकने का इरादा सही हो सकता है, लेकिन इसके लिए गलत तरीके अपनाना ठीक नहीं है।
फैसले का व्यापक प्रभाव
इस फैसले के बाद, नोएडा और ग्रेटर नोएडा में भूमि लेनदेन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है। भूमि मालिक अब बिना NOC के अपनी कृषि भूमि बेच सकेंगे, जिससे रियल एस्टेट बाजार को भी पुनर्जीवित होने का मौका मिलेगा।
क्या करेगी सरकार?
उत्तर प्रदेश सरकार ने अभी तक इस फैसले पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन सूत्रों के अनुसार, सरकार सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ अपील करने पर विचार कर सकती है।
निष्कर्ष
इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला न केवल गौतमबुद्ध नगर के किसानों के लिए राहत लेकर आया है, बल्कि यह निर्णय आपदा प्रबंधन और नागरिक अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी है। इस फैसले से भविष्य में इस तरह के मामलों के लिए एक मिसाल कायम होगी।
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