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New Noida News: नया नोएडा की घोषणा से पहले ही पसर गईं अवैध कॉलोनियाँ, तीन साल में 4 हज़ार हेक्टेयर ज़मीन पर बसा ‘बेक़ानूनी शहर’, अब प्रशासन की बड़ी चुनौती, जनवरी 2021 की हड़बड़ी में हुई घोषणा पर मास्टर-प्लान तो 2024 में बना

लेकिन तब तक 80 गाँवों की खेती-हरित भूमि पर कॉलोनाइज़र और गोदाम-माफ़िया ने खड़ा कर दिया ‘रियल्टी जाल’


न्यू नोएडा, रफ़्तार टुडे। घोषणा जल्दी, प्लानिंग देर से—और बीच के खाली समय में फैल गया अवैध निर्माण

जनवरी 2021 में योगी सरकार ने औद्योगिक विकास की रफ्तार बढ़ाने के इरादे से दादरी-नोएडा-गाज़ियाबाद निवेश क्षेत्र (DNZGIAR) के रूप में नया नोएडा बसाने का ऐलान किया। पर ठोस मास्टर-प्लान तैयार करने में प्राधिकरण को साढ़े तीन साल लग गये—अक्टूबर 2024 तक। इस लंबे ‘रिक्त काल’ का फ़ायदा उठाकर भू-माफ़िया और कॉलोनाइज़रों ने तेज़ी से खेतों को प्लॉटों में तब्दील कर डाला।

  • लगभग 80 गाँवों की 21 हज़ार हेक्टेयर भूमि इस नये शहर के दायरे में आती है।
  • प्रशासनिक आँकड़ों के मुताबिक क़रीब 4 हज़ार हेक्टेयर खेत-खलिहान पर अब तक अवैध कॉलोनियाँ या वेयर-हाउस खड़े हो चुके हैं।
  • सबसे ज्यादा अतिक्रमण पेरिफ़ेरल एक्सप्रेस-वेदादरी बाइपास के किनारे देखा गया, जहाँ लॉजिस्टिक कंपनियों ने बिना नक्शा पास कराये गोदाम बना लिए।

“जनवरी 2021 से दिसंबर 2023 के बीच अवैध निर्माण बेलगाम रहा। मास्टर-प्लान बनने से पहले ही ज़मीन बिक और बस चुकी थी।” — प्राधिकरण के सर्वे दस्तावेज़


‘नया नोएडा’ किसके पास, किस पर जिम्मेदारी?

  1. घोषणा (जनवरी 2021): शासन ने DNZGIAR की अवधारणा स्वीकृत की और नोएडा प्राधिकरण को विकास का जिम्मा दिया।
  2. भूमि व्यवहार की हक़ीक़त: जिन 80 गाँवों की जमीन विकसित होनी थी वे ग्नोएडा प्राधिकरण के अधिसूचित क्षेत्र में आती थीं। नोएडा अथॉरिटी के पास वहाँ “अधिग्रहण” का अधिकार नहीं था।
  3. गतिरोध: अधिकार‐विवाद के चलते नोएडा प्राधिकरण ने हाथ खड़े कर दिये; जुलाई 2022 में फाइल दोबारा ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण (GNIDA) को सौंप दी गई।
  4. वित्तीय बाधा: GNIDA पहले ही ~₹6,000 करोड़ के क़र्ज़ में था, इसलिए भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया ठप रही और नियमन-अभियान शुरू ही नहीं हुआ।
  5. मास्टर-प्लान (18 अक्टूबर 2024): अंततः नोएडा प्राधिकरण ने ड्राफ्ट MP-2041 स्वीकृत कराया, पर तब तक अवैध बसावट पक्की हो चुकी थी।

किस-किस इलाके में उगीं अनधिकृत बस्तियाँ?

प्रमुख मार्गगाँव / सेक्टरप्रमुख अवैध निर्माणटिप्पणी
पेरिफ़ेरल एक्सप्रेस-वेधूम मानिकपुर, बायंपास क्षेत्रवेयर-हाउस की कतारेंलॉजिस्टिक कंपनियों की रुचि
दादरी बाइपासधूम मानिकपुर, चिठेहरा, जारचा, नई बस्तीप्लॉट-कॉलोनी, गोदामट्रक रूट की निकटता
वील अकबरपुर बेल्टऊँचा अमीरपुर, प्यावली, गुलावठी, गालंदरिसॉर्ट-टाइप फार्महाउससस्ते प्लॉट के पोस्टर
यमुना किनाराबलैना, मसूरी मार्गछोटी-छोटी कॉलोनियाँखेती छोड़ प्लॉटिंग

नोडल अधिकारियों की टीम ने पाया कि सिर्फ दादरी बाइपास की पट्टी पर 500 से अधिक वेयर-हाउस बिना नक्शा पास कराये तैयार हो चुके हैं।

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न्यू नोएडा की घोषणा से पहले ही पसर गईं अवैध कॉलोनियाँ, तीन साल में 4 हज़ार हेक्टेयर ज़मीन पर बसा ‘बेक़ानूनी शहर’, अब प्रशासन की बड़ी चुनौती

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‘अतिक्रमण हटाओ दस्ते’ का गठन अब तक लटकता क्यों रहा?

  • प्राधिकरण–पुलिस समन्वय का अभाव: बुलडोज़र-कार्यवाही के लिये संयुक्त बल चाहिए; कोतवाल-थानेदारों के तबादले व स्टाफ‐कमी से टीम नहीं बन पाई।
  • स्थानीय राजनैतिक दबाव: कई कॉलोनाइज़र “ग्रामीण सहकारी समिति” या “आवास विकास समिति” के नाम पर प्लॉट काट रहे हैं।
  • राजस्व लेखाजोखा अधूरा: खेतों की खतौनी-आधारित दरें तय नहीं; मुआवज़े की आशंका से किसान विरोध कर सकते हैं।

“अवैध निर्माण को सख़्ती से रोका जाएगा। 15 दिन के भीतर स्वयं हटाने का अवसर देकर फिर कार्रवाई करेंगे, खर्च कॉलोनाइज़र से वसूला जायेगा।” — नोएडा प्राधिकरण


आगे की राह: प्रशासन की रणनीति

  1. तीन-स्तरीय टैस्क-फ़ोर्स:
    • इंटेलिजेंस विंग – ड्रोन व सैटेलाइट इमेज से नयी कॉलोनी चिन्हित करना।
    • अतिक्रमण हटाओ दस्ता – पुलिस, प्राधिकरण इंजीनियर, राजस्व अमला।
    • वसूली प्रकोष्ठ – बुलडोज़र खर्च व जुर्माना वसूलना।
  2. प्लॉट-खरीदारों को चेतावनी बोर्ड: “यह भूमि विकास प्राधिकरण की अधिसूचित/ग़ैर अधिकृत है – खरीद-फरोख्त दंडनीय अपराध।”
  3. ऑनलाइन शिकायत पोर्टल: किसी भी नये निर्माण को नागरिक फोटो-लोकेशन सहित अपलोड कर सकेंगे; 48 घंटे में जांच।
  4. भूमि अधिग्रहण की तेज़ प्रक्रिया: 21 हज़ार हेक्टेयर में से पहले चरण के 5 हज़ार हेक्टेयर पर औद्योगिक क्लस्टर, आवासीय सेक्टर व ग्रीन बेल्ट विकसित करने की टाइमलाइन 2026 तक तय।

प्रभावित किसान व प्लॉट-खरीदार क्या करें?

  • री-सर्वे का इंतज़ार: प्राधिकरण भूमि-स्वामित्व का नया नक्शा जारी करेगा; असली मालिकाना स्पष्ट होगा।
  • रीगुलराइज़ेशन की गुंजाइश कम: MP-2041 में केवल ‘अप्रूव्ड ले-आउट’ वाली कॉलोनियों को ही पानी-बिजली मिलेगी।
  • क़ानूनी सलाह लें: फर्जी रजिस्ट्री व पंचायत नामांतरण की जाँच तेज़ होगी; निवेशक हाईकोर्ट/रेरा में दावा कर सकते हैं।

निष्कर्ष: नियोजन की देरी ने जन्म दिए ‘कंक्रीट के कंकाल’, अब बुलडोज़र बनाम रिहाइश की चुनौती

‘नया नोएडा’ उत्तर प्रदेश की औद्योगिक उड़ान का अगला रनवे बन सकता है, पर शुरुआती अनिर्णय और सौंपा-सौंपी के कारण हज़ारों परिवारों ने जमा-पूंजी अवैध प्लॉटिंग में लगा दी। अब प्राधिकरण दोहरी राह पर है—एक तरफ निवेश आमंत्रित करने वाला भविष्य का स्मार्ट-सिटी विज़न, दूसरी तरफ खेती-भू-रिहाइश से उपजी वास्तविक ज़मीनी उलझनें

यदि अतिक्रमण-हटाओ मुहिम समय-बद्ध नहीं चली, तो मास्टर-प्लान की चौड़ी सड़कों और औद्योगिक गलियारों का सपना कागज़ पर ही रह जाएगा। वहीं बुलडोज़र की सख़्ती बिना पुनर्वास‐योजना के आमजन का आक्रोश भी बढ़ा सकती है।

आख़िरकार, शहर बसाना सिर्फ़ नक्शा और विज्ञप्ति नहीं—समन्वित नियोजन, पारदर्शिता और समयबद्ध क्रियान्वयन का दीर्घकालिक इम्तिहान है, जिसे नयी नोएडा अथॉरिटी को अब बिना देरी पास करना होगा।


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