फिरोजपुर झिरका44 मिनट पहले
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परंपरागत चूल्हे पर खाना बनाती महिलाएं।
- गैस से टूटने लगा नाता, उज्जवला का उजाला खत्म, गांवों में फिर हो रहा धुंआ-धुंआ
गरीब का गैस से नाता फिर टूटता जा रहा है। गैस का सिलेंडर गरीबों की पहुंच से बाहर 900 रुपए के आसपास पहुंच गया है। इससे उज्जवला योजना के लाभार्थियों में निराशा है। योजना के फ्लॉप होने से जहां गांव में फिर से परंपरागत चूल्हे जलने लगे हैं। वहीं सरकार को भी करोड़ों रुपए का चूना लग रहा है।
नूंह जिले में इस योजना के दोनों चरणों में 66 हजार कनेक्शन जारी किए गए थे, जिनमें से 75 फ़ीसदी लोगों ने सिलेंडर महंगा होने की वजह से रिफिल कराना बंद कर दिया है।
गैस एजेंसियों के आंकड़े के अनुसार इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन और भारत पेट्रोलियम ने मिलकर 66 हजार लोगों को चूल्हा और सिलेंडर उपलब्ध करवाया। इनमें गांव के ज्यादातर कनेक्शन बंद हो गए।
केंद्र सरकार ने जैसे ही सब्सिडी बंद की लोगों ने रिफिल लेनी ही बंद कर दी, जिसका नतीजा यह हुआ कि सरकार ने जो चूल्हा और रेगुलेटर लोन पर दिया था उसकी कीमत भी नहीं निकाल सकी। सिलेंडर महंगा होने की वजह से ज्यादातर लाभार्थियों ने लकड़ी जलाने में ही भलाई समझी। शहरी क्षेत्रों में तो फिर भी कुछ रिफिल की जा रही है, लेकिन ग्रामीण इलाकों मैं तो शायद ही कोई घर हो जो अब योजना का लाभ उठा रहा हो।
यह थी योजना
उज्जवला योजना के तहत चूल्हा रेगुलेटर और पाइप के करीब 17 सौ रुपए लिए जाने थे। यह पैसा उपभोक्ता से नहीं लेकर उन्हें लोन दिया गया। बाद में सिलेंडर पर मिलने वाली सब्सिडी से इस रकम की भरपाई होनी थी। उस समय तो सिलेंडर 600 रुपए और सब्सिडी 250 रुपए जमा हो रही थी। यह अनुदान उपभोक्ता को नहीं मिल कर चूल्हे की कीमत में समायोजित होना था।
क्या कहती हैं साकरस गांव की सोमवती
खंड के साकरस गांव में रहने वाली सोमवती का कहना है कि पहले सिलेंडर सस्ता मिलता था। अब तो रिफिल कराना बूते से बाहर है। इतने पैसे कहां से लाएं, जब कनेक्शन लिया था तब पता नहीं था कि सिलेंडर इतना महंगा हो जाएगा।
क्या कहती हैं काला खेड़ा गांव की लक्ष्मी
काला खेड़ा गांव की रहने वाली लक्ष्मी का कहना है कि उज्जवला योजना के तहत कनेक्शन मिला था। वह चूल्हा फूंकने को मजबूर है चार-पांच बच्चे हैं। पति मजदूरी करता है 5000 हजार की आए से सिलेंडर पर खर्च नहीं कर सकते। एक सिलेंडर की कीमत से पूरे महीने का राशन आता है।