Samajwadi Party News : समाजवादी पार्टी में फिर उभरी आंतरिक कलह!, बिलासपुर की पीडीए जन पंचायत बनी सियासी शक्ति प्रदर्शन तो कहीं ‘समानांतर धड़ा’ के बहिष्कार की मिसाल!, पीडीए पंचायत बना अखिलेश के एजेंडे का हिस्सा, लेकिन दिखी संगठन में फूट

📍 बिलासपुर, ग्रेटर नोएडा | रफ्तार टुडे।।
उत्तर प्रदेश में 2027 विधानसभा चुनाव की रणनीति को धार देने में जुटी समाजवादी पार्टी को अभी से घर की कलह झेलनी पड़ रही है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव जहां मंच से एकता का पाठ पढ़ा रहे हैं, वहीं जमीनी हकीकत कुछ और बयां कर रही है। इसकी बानगी रविवार को बिलासपुर में आयोजित पीडीए जन पंचायत में सामने आई, जहां एक ओर कार्यक्रम में भारी भीड़ जुटाकर शक्ति प्रदर्शन किया गया, वहीं दूसरी ओर पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने इससे दूरी बना ली, जिससे सपा में दो फाड़ की तस्वीर एक बार फिर उभर आई है।
पीडीए पंचायत बना अखिलेश के एजेंडे का हिस्सा, लेकिन दिखी संगठन में फूट
जन पंचायत का आयोजन सपा नेता और जिला पंचायत सदस्य सुनील भाटी देवटा के संयोजन में हुआ था। इसमें बतौर मुख्य अतिथि पूर्व मंत्री मौलाना जावेद आब्दी ने शिरकत की। कार्यक्रम को संगठन की ताकत दिखाने के रूप में प्रचारित किया गया, लेकिन जिस तरह से पार्टी के कुछ प्रभावशाली नेताओं और पूर्व विधायकों ने दूरी बनाई, उससे साफ हो गया कि भीतर ही भीतर सपा गुटबाजी से ग्रस्त है।
भीड़ के जरिये शक्ति प्रदर्शन, लेकिन ‘एकता’ के बिना अधूरी कहानी!
कार्यक्रम में भारी संख्या में सपा समर्थकों ने भाग लिया। मंच पर मौजूद नेताओं ने भाजपा पर तीखे हमले किए और जनता को भरोसा दिलाया कि आने वाला वक्त समाजवादियों का होगा। मौलाना जावेद आब्दी ने बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी को लेकर केंद्र और प्रदेश सरकार को आड़े हाथों लिया।
उनका कहना था:
“शिक्षित युवा रोजगार के लिए दर-दर भटक रहे हैं, भाजपा सिर्फ जुमलेबाजी में व्यस्त है। ऐसी सरकार को हटाने के लिए जनता तैयार बैठी है।”
सपा की लोहिया वाहिनी ने भी दिखाया तेवर
समाजवादी लोहिया वाहिनी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अभिषेक यादव ने कहा:
“भाजपा के शासन में अराजकता चरम पर है, किसान परेशान हैं, युवा निराश हैं और लोकतंत्र खतरे में है। सपा ही एकमात्र विकल्प है जो सबको साथ लेकर चल सकती है।”
जिलाध्यक्ष ने कहा – सपा से जुड़ रही है जनता
जिलाध्यक्ष सुधीर भाटी ने दावा किया कि:
“प्रदेश की जनता अखिलेश यादव की साफ-सुथरी राजनीति से प्रभावित होकर पार्टी की ओर लौट रही है। हर जाति, वर्ग और समुदाय में समाजवादी सोच का प्रचार-प्रसार हो रहा है।”
लेकिन सवाल बड़ा: कहां थे सपा के वरिष्ठ चेहरे?
जहां एक ओर मंच पर जावेद आब्दी, अभिषेक यादव, सुधीर भाटी और सुनील भाटी जैसे चेहरे मौजूद थे, वहीं दूसरी ओर कई पुराने नेता, पूर्व विधायक और जिलास्तरीय संगठन के चेहरे नदारद रहे। जानकारों के मुताबिक, यह सपा के अंदरूनी टकराव का संकेत है।
सूत्रों का कहना है कि कार्यक्रम से दूरी बनाने वाले धड़े को आयोजन की प्रक्रिया और संयोजन में पारदर्शिता नहीं दिखाई दी, जिससे उनका असंतोष खुलकर बाहर आ गया।
मंच पर मौजूद प्रमुख चेहरे:
- मौलाना जावेद आब्दी (पूर्व मंत्री)
- अभिषेक यादव (राष्ट्रीय अध्यक्ष, लोहिया वाहिनी)
- सुधीर भाटी (जिलाध्यक्ष)
- सुनील भाटी देवटा (आयोजक व जिला पंचायत सदस्य)
- पूर्व एमएलसी जितेन्द्र यादव
- पूर्व विधायक रवि वर्मा
- मुखिया गुर्जर, संतोष जाटव, मौ. फैज, सुनील चौधरी
- गजराज नागर, इंदर प्रधान (पूर्व जिलाध्यक्ष), भारत सिंह
- रामसरन नागर, मेहंदी हसन, सुनीता यादव, शशि यादव
- कृशान्त भाटी, लाल सिंह गौतम, दीपक देवटा
- हैप्पी पंडित, कुंवर नादिर, दीपक नागर, मोहित यादव
- अनिल पाल, अनिल प्रजापति, जुगती सिंह आदि।
क्या अखिलेश यादव के “पीडीए” (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) गठजोड़ पर पड़ सकता है असर?
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के 2024 लोकसभा चुनाव से लेकर 2027 विधानसभा तक के मिशन का मूल मंत्र है – “पीडीए” यानी पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक का एकजुट वोट बैंक।
लेकिन यदि इसी एजेंडे को लेकर आयोजित जन पंचायत में पार्टी के चेहरे ही एकजुट नहीं दिखे तो इस रणनीति को जमीनी धार देना मुश्किल हो जाएगा।
विधानसभा चुनाव की तैयारी तभी सार्थक होगी जब संगठन के भीतर के मतभेदों को समय रहते सुलझा लिया जाए।
जमीनी कार्यकर्ताओं की भी चिंता – हम किसका साथ दें?
कार्यक्रम में आए कई जमीनी कार्यकर्ताओं ने रफ्तार टुडे से बातचीत में कहा कि:
“हमें ऊपर से कहा जाता है कि एकजुट रहो, लेकिन नेता ही आपस में भिड़े हुए हैं। हमें नहीं पता किस धड़े का समर्थन करें और किसका नहीं।”
🔚 निष्कर्ष: एक मंच पर जुटी भीड़ तो बनी ताकत का प्रतीक, लेकिन संगठन में दिखी दरार ने बढ़ाई चिंता
बिलासपुर की यह जन पंचायत समाजवादी पार्टी के लिए दो तरह की तस्वीर लेकर आई:
- भीड़ जुटाकर सपा कार्यकर्ताओं ने यह जताया कि पार्टी में अब भी जनसरोकार है।
- लेकिन वरिष्ठ नेताओं के अलग-अलग खेमों में बंटे रहने से एकता की कमी उजागर हो गई।
अखिलेश यादव के लिए यह समय संगठन को एकजुट करने का है, नहीं तो 2027 की रणनीति कमजोर पड़ सकती है।
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