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नई दिल्ली। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में पीएचडी दाखिले का रिजल्ट जारी होते ही इस पर विवाद भी शुरू हो गया है। जेएनयू छात्रसंघ ने दावा किया है कि कमजोर और पिछड़े वर्ग से आने वाले छात्रों को मौखिक परीक्षा में कम अंक दिए गए हैं। इंटरव्यू पैनल मनमाने ढंग से बनाए गए थे और रिसर्च रिपोर्ट देने के बाद उन्हें कम अंक दिए गए। इससे उनके नंबर कटऑफ से कम हुए हैं।
उधर, जेएनयू प्रशासन ने बयान जारी कर छात्रसंघ समेत उन सभी आरोपों को खारिज कर दिया जिनमें पीएचडी उम्मीदवारों के साथ मौखिक परीक्षा के दौरान भेदभाव करने की बात कही गई थी। विवि प्रशासन का कहना है कि वह ‘न्याययुक्त, पारदर्शी और समावेशी प्रवेश नीति’ का अनुपालन करता है।
जेएनयू छात्रसंघ (जेएनयूएसयू) की अध्यक्ष आइशी घोष ने आरोप लगाया है कि पीएचडी पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए मौखिक परीक्षा में शामिल हुए कई उम्मीदवारों को सांविधानिक रूप से अनिवार्य आरक्षण नीति का उल्लंघन करते हुए कम अंक दिए गए। छात्रसंघ अध्यक्ष का दावा है कि यह भेदभाव उन छात्रों से किया गया है, जो हाशिये पर रहने वाले वर्गों से आते हैं।
वहीं, अर्थशास्त्र में पीएचडी के लिए आवेदन करने वाले जूनियर रिसर्च फेलो (जेआरएफ) उमेश यादव का कहना है कि जेआरएफ वालों को लिखित परीक्षा से छूट है। वे पूरी तरह इंटरव्यू पैनल से मिलने वाले अंकों पर छोड़ दिए गए हैं। इन पैनलों का गठन मनमाने ढंग से किया गया और अधिकांश संकाय सदस्यों को इस प्रक्रिया में दरकिनार कर दिया गया।
उधर, जेएनयू शिक्षक संघ की सचिव प्रो. मौसमी बसु का कहना है कि साक्षात्कार के लिए बुलाए गए छात्रों का अनुपात इस वर्ष बहुत अधिक था। कई मामलों में सात सीटों के लिए प्रत्येक दिन 100 से अधिक छात्रों को मौखिक परीक्षा के लिए बुलाया गया था। यह देखते हुए कि यह ऑनलाइन हो रहा था, तकनीकी मुद्दे भी थे। इतने कम समय में किसी व्यक्ति को आंकना कैसे संभव है। कुछ छात्रों ने शिकायत की थी कि वे असहज थे। साक्षात्कार के लिए समय पहले की तुलना में काफी कम था।
प्रो. बसु ने कहा, कुछ मामलों में यह भी देखा गया कि छात्रों ने केंद्रों के प्रोफाइल को ठीक से नहीं देखा था। उनके शोध प्रस्ताव पेश किए जा रहे प्रस्तावों से मेल नहीं खाते थे।
चयन समिति को छात्रों की श्रेणी की जानकारी नहीं होती: जेएनयू प्रशासन
जेएनयू प्रशासन का कहना है कि छात्रसंघ और आइसा के ऐसे आरोपों से छात्र परेशान हो रहे हैं। यह सिर्फ कैंपस का माहौल खराब करने की साजिश है। ऐसे आरोपों में कोई सचाई नहीं है।
पीएचडी चयन समिति को छात्रों की श्रेणी की जानकारी नहीं दी जाती है। ऐसा इसलिए होता है, ताकि प्रक्रिया में कोई भेदभाव न हो। पीएचडी मौखिक परीक्षा पूरी तरह नियमों के तहत,
पारदर्शी तरीके से आयोजित की गई है। महिला उम्मीदवारों और आरक्षित श्रेणियों के उम्मीदवारों की सभी सीटें आरक्षित वर्ग के लोगों से ही भरी जाएंगी तो भेदभाव कहां है।
नई दिल्ली। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में पीएचडी दाखिले का रिजल्ट जारी होते ही इस पर विवाद भी शुरू हो गया है। जेएनयू छात्रसंघ ने दावा किया है कि कमजोर और पिछड़े वर्ग से आने वाले छात्रों को मौखिक परीक्षा में कम अंक दिए गए हैं। इंटरव्यू पैनल मनमाने ढंग से बनाए गए थे और रिसर्च रिपोर्ट देने के बाद उन्हें कम अंक दिए गए। इससे उनके नंबर कटऑफ से कम हुए हैं।
उधर, जेएनयू प्रशासन ने बयान जारी कर छात्रसंघ समेत उन सभी आरोपों को खारिज कर दिया जिनमें पीएचडी उम्मीदवारों के साथ मौखिक परीक्षा के दौरान भेदभाव करने की बात कही गई थी। विवि प्रशासन का कहना है कि वह ‘न्याययुक्त, पारदर्शी और समावेशी प्रवेश नीति’ का अनुपालन करता है।
जेएनयू छात्रसंघ (जेएनयूएसयू) की अध्यक्ष आइशी घोष ने आरोप लगाया है कि पीएचडी पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए मौखिक परीक्षा में शामिल हुए कई उम्मीदवारों को सांविधानिक रूप से अनिवार्य आरक्षण नीति का उल्लंघन करते हुए कम अंक दिए गए। छात्रसंघ अध्यक्ष का दावा है कि यह भेदभाव उन छात्रों से किया गया है, जो हाशिये पर रहने वाले वर्गों से आते हैं।
वहीं, अर्थशास्त्र में पीएचडी के लिए आवेदन करने वाले जूनियर रिसर्च फेलो (जेआरएफ) उमेश यादव का कहना है कि जेआरएफ वालों को लिखित परीक्षा से छूट है। वे पूरी तरह इंटरव्यू पैनल से मिलने वाले अंकों पर छोड़ दिए गए हैं। इन पैनलों का गठन मनमाने ढंग से किया गया और अधिकांश संकाय सदस्यों को इस प्रक्रिया में दरकिनार कर दिया गया।
उधर, जेएनयू शिक्षक संघ की सचिव प्रो. मौसमी बसु का कहना है कि साक्षात्कार के लिए बुलाए गए छात्रों का अनुपात इस वर्ष बहुत अधिक था। कई मामलों में सात सीटों के लिए प्रत्येक दिन 100 से अधिक छात्रों को मौखिक परीक्षा के लिए बुलाया गया था। यह देखते हुए कि यह ऑनलाइन हो रहा था, तकनीकी मुद्दे भी थे। इतने कम समय में किसी व्यक्ति को आंकना कैसे संभव है। कुछ छात्रों ने शिकायत की थी कि वे असहज थे। साक्षात्कार के लिए समय पहले की तुलना में काफी कम था।
प्रो. बसु ने कहा, कुछ मामलों में यह भी देखा गया कि छात्रों ने केंद्रों के प्रोफाइल को ठीक से नहीं देखा था। उनके शोध प्रस्ताव पेश किए जा रहे प्रस्तावों से मेल नहीं खाते थे।
चयन समिति को छात्रों की श्रेणी की जानकारी नहीं होती: जेएनयू प्रशासन
जेएनयू प्रशासन का कहना है कि छात्रसंघ और आइसा के ऐसे आरोपों से छात्र परेशान हो रहे हैं। यह सिर्फ कैंपस का माहौल खराब करने की साजिश है। ऐसे आरोपों में कोई सचाई नहीं है।
पीएचडी चयन समिति को छात्रों की श्रेणी की जानकारी नहीं दी जाती है। ऐसा इसलिए होता है, ताकि प्रक्रिया में कोई भेदभाव न हो। पीएचडी मौखिक परीक्षा पूरी तरह नियमों के तहत,
पारदर्शी तरीके से आयोजित की गई है। महिला उम्मीदवारों और आरक्षित श्रेणियों के उम्मीदवारों की सभी सीटें आरक्षित वर्ग के लोगों से ही भरी जाएंगी तो भेदभाव कहां है।