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मुकाबला लाल सिंह चड्ढा और दूध पिलाने वालों में

ग्रेटर नोएडा, रफ्तार टुडे। टॉम हैंक्स अभिनीत मशहूर अंग्रेजी फिल्म फॉरेस्ट गंप मुझे बहुत अच्छी लगती है। अब तक कम से कम आधा दर्जन बार तो उसे देख ही चुका होऊंगा । तमाम दुश्वारियों के बावजूद यदि आगे बढ़ने की इच्छा हो तो कुदरत भी रास्ता नहीं रोक सकती, फिल्म का यह संदेश न जाने कितने लोगों के जीवन को रौशन कर गया होगा । फिल्म की अपार सफलता भी यह दर्शाती है कि उसने दुनिया भर के करोड़ों लोगों के दिलों को छुआ है। शायद यही वजह भी रही होगी मात्र 55 मिलियन डॉलर की लागत वाली इस फिल्म ने रिकॉर्ड तोड़ 683 मिलियन डॉलर कमाए और इतने अवॉर्ड जीते कि पूरी दुनिया में इस फिल्म का हल्ला मच गया । मुझे जब से पता चला हुई कि इसी फिल्म की रीमेक हिन्दी में लाल सिंह चड्ढा के नाम से बनी है, मन उसे देखने को बेताब है। यह देखना वाकई सुखद हो सकता है कि भारतीय पृष्ठभूमि में इस लाजवाब कहानी का फिल्मांकन कैसे किया गया होगा। हालांकि #boycottlaalsinghchaddha जैसे मैसेज मुझे भी रोज मिल रहे हैं मगर मुझे पता है कि यह शोर शराबा भी कुछ ऐसा ही है जैसे गधे से गिरने पर कोई गुस्सा कुम्हार पर उतारे।

इसमें तो कोई शक नहीं कि मिस्टर परफेक्शनिस्ट के नाम से मशहूर आमिर खान ने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को समृद्ध करने में महती योगदान दिया है। उनके खाते में सरफरोश, लगान, रंग दे बसंती, तारे जमीन पर, थ्री ईडियट्स, पीके और दंगल जैसी बेहतरीन फिल्में हैं जो आम जन मानस में देशभक्ति की भावना को प्रबल करने के साथ साथ अनेक सामाजिक संदेश भी देती हैं। उसके टीवी कार्यक्रम सत्यमेव जयते ने भी देश के असली नायकों से लोगों का परिचय कराया था । हालांकि उनकी फ़िल्म लाल सिंह चड्ढा अभी रिलीज नहीं हुई मगर ट्रेलर देख कर तो लोगबाग यही अनुमान लगा रहे हैं कि यह फिल्म भी उम्दा होगी और तारे जमीन पर फिल्म की तरह उन माता पिता के लिए प्रेरणादायक होगी जिनके बच्चे किसी न किसी शारीरिक अथवा मानसिक कमजोरी के साथ इस दुनिया में आए हैं। अपनी क्षमताओं को कम कर के आंकने वाले भी इस तरह की फिल्मों से सकारात्मता से यकीनन ओतप्रोत होते हैं।

जहां तक फिल्म पीके में उन दृश्यों का सवाल है जिन्हें हिन्दू विरोधी ठहराया जा रहा है, कम से कम मुझे तो उसमें ऐसा कुछ नज़र नहीं आता । यह फिल्म तो पाखंड के खिलाफ गहरा संदेश देती है और पाखंड को ही धर्म समझने वाले यदि इससे खफा हैं तो कोई क्या कह सकता है। सच बताऊं तो लाल सिंह चड्ढा फिल्म का बॉयकॉट करने का शगूफा पूरी तरह राजनीतिक लगता है। एक के बाद एक बड़ी सरकारी विफलताओं से जनता का ध्यान हटाने को हर महीने जो एक शगूफा छोड़ा जाता है , यह उसकी ही नई कड़ी भर है। इस फ़िल्म की मुखालफत इस वजह से भी की जा रही है कि आमिर खान मुसलमान है और अनेक बार खरी खरी बातें भी कर देता है जो पाखंडियों को सहन नहीं होतीं। अब यह फिल्म चलेगी अथवा नहीं यह किसी को नहीं पता । आमिर खान का नाम होने का मतलब फिल्म के अच्छा होने की गारंटी यूं भी नहीं है। अपनी आख़िरी फिल्म ठग्स ऑफ हिंदुस्तान में उन्होंने लोगों को बेहद निराश किया था । अब इस फिल्म के साथ क्या होगा यह तो ग्यारह अगस्त के बाद पता चलेगा ही मगर साथ ही साथ यह भी पता चलेगा कि गणेश जी को दूध पिलाने वालों की तलवार की धार वक्त के साथ कुछ कुंद हुई है या पहले से भी अधिक पैनी।

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