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BJP News : “वोटों का महाकुंभ, विकास का फलक, ग्लोब की नजर में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का आयोजन, भाजपा नेताओं ने रखा पंचवर्षीय विकास का केंद्र”, बीजेपी जिला अध्यक्ष अभिषेक शर्मा का संदेश ‘विकास के पहिये को नहीं रोकेंगे चुनावी अवरोध’

ग्रेटर नोएडा, रफ़्तार टुडे।
लोकतंत्र में लगातार हो रहे चुनावी चक्र ने जहाँ करोड़ों रुपए खर्च किए, वहीं राजनीतिक स्थिरता पर सवालिया निशान भी खड़े किए हैं। इसी अभूतपूर्व विषय को लेकर गलगोटिया विश्वविद्यालय में 19 अप्रैल 2025 को आयोजित ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ संगोष्ठी ने राजनीतिक विमर्श के नए आयाम खोले। जेवर विधायक धीरेन्द्र सिंह, भाजपा जिलाध्यक्ष अभिषेक शर्मा, अल्पसंख्यक सेल के हबीब हैदर, पूर्व एमएलसी सतीश शर्मा और विश्वविद्यालय के सीईओ डॉ. ध्रुव गलगोटिया समेत अनेक गणमान्य वक्ताओं ने इस महत्त्वपूर्ण विषय पर अपने विचार रखे और आवश्यकता बताई कि कैसे एक साथ होने वाले चुनाव भारत को विकास की ऊँचाइयों पर ले जा सकते हैं।


स्वतंत्रता के बाद लोकतंत्र का चक्र—वक़्त की मांग बना ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’

स्वतंत्रता के तुरंत बाद भारत ने लोकतांत्रिक प्रणाली को अपनाया, लेकिन औपनिवेशिक प्रशासनिक विभाजन और संसदीय-राज्य विधानसभाओं की अलग-अलग कार्यकाल व्यवस्था ने बार-बार चुनावी प्रक्रिया को लंबा खींच दिया।
विधायकों, सांसदों और स्थानीय निकायों के चुनावों के अलग-अलग तारीखों के कारण हर साल देशभर में औसतन 70-80 हजार करोड़ रुपये खर्च होते रहे। अब ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ की वकालत इसलिए की जा रही है कि एक ही तिथि पर लोकसभा, सभी विधानसभा और स्थानीय निकायों के चुनाव हों, जिससे संसाधन बचेगा, प्रशासनिक कार्यों में बाधा कम होगी और सरकारें लगातार विकास पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगी।


गलगोटिया विश्वविद्यालय का मंच—AI और डेटा साइंस भवन में उद्घाटन संगोष्ठी

यह संगोष्ठी ग्लगोटिया विश्वविद्यालय के नवनिर्मित आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डेटा साइंस भवन में आयोजित की गई, जहां विद्यार्थियों और शिक्षकों ने सक्रिय भागीदारी दिखाई। विश्वविद्यालय ने आधुनिक शिक्षा और तकनीकी पर जोर दिए जाने के बीच इस आयोजन का मकसद छात्रों को लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में खनिजण (अनुभवात्मक) शिक्षा से जोड़ना था। सीईओ डॉ. ध्रुव गलगोटिया ने उद्घाटन का आरंभ करते हुए कहा,

“ऐसे विचार-आयोजन युवा विधि और मीडिया अध्ययन के छात्रों के लिए मूल्यवान हैं; ये न केवल उन्हें चुनावी इतिहास से परिचित कराएंगे, बल्कि लोकतांत्रिक बदलाव लाने की प्रेरणा भी देंगे।”


मुख्य अतिथि धीरेन्द्र सिंह का वक्तव्य—‘एक चुनाव, विकास का पहिया लगेगा गति पर’

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जीवन संघर्ष से उत्पन्न विधायक धीरेन्द्र सिंह ने कहा,

“वन नेशन, वन इलेक्शन आज की आवश्यकता है। इस एकाम्ब कम से कम पांच चुनाव चक्रों की विधि-व्यवस्था को एक साथ लाने का प्रयास लोकतांत्रिक ताकत को मजबूत करेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में हम पहले ही भारत को 20वीं अर्थव्यवस्था से 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने में सफल रहे हैं। आने वाले वर्षों में तीसरे स्थान की ओर बढ़ेंगे। यदि हम पांच वर्षों में केवल विकास पर ध्यान केंद्रित करें, तो देश की गुणवत्ता जीवन-शैली में सुधार आएगा।”

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गलगोटिया कॉलेज में मीडिया से रबरू होते बीजेपी नेता

धीरेन्द्र सिंह ने बताया कि वर्तमान समय की देरी से नीति-निर्माण और चुनावी व्यस्तताओं ने विकास कार्यों को प्रभावित किया है।

“एक समय पर संपन्न होने वाले चुनावों से प्रशासनिक निरंतरता बनी रहेगी और चुनावी खर्च का भार सीधे स्वास्थ्य, शिक्षा व आधारभूत संरचना पर लगाया जा सकेगा।”


अभिषेक शर्मा का संदेश—‘विकास के पहिये को नहीं रोकेंगे चुनावी अवरोध’

भाजपा जिलाध्यक्ष अभिषेक शर्मा ने कहा,

“30 से अधिक वर्षों तक चुनाव चक्र के कारण एक-एक राज्य में काम अधर में लटके रहे। एक साथ चुनावों पर केंद्रित संसाधन से गांव-शहर में आशिया-बुनियादी जरूरतों का जगदीशनीकरण होगा।”
उन्होंने जोर देकर कहा कि शिक्षक, किसान, उद्योगपति—हर वर्ग इस आंदोलन में सहयोग करेगा, क्योंकि जनता जानती है कि स्थिरता में ही समृद्धि है।


हबीब हैदर का दृष्टिकोण—‘सफल लागू होने पर बनाएंगे आकर्षण का नया भारत’

भाजपा अल्पसंख्यक सेल के हबीब हैदर ने अपने उद्गार साझा किए:

“वन नेशन, वन इलेक्शन के सफल कार्यान्वयन से भारत एक ऐसा विकसित देश बन सकता है, जहाँ लोग विदेश जाने की बजाय नौकरी-शिक्षा के लिए यहाँ आने की इच्छा रखेंगे। वैश्विक निवेश और विश्वास बढ़ेगा।”


पूर्व एमएलसी सतीश शर्मा का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य—‘औपनिवेशिक विरासत की बाधा, आज तोड़नी है’

पूर्व एमएलसी सतीश शर्मा ने कहा कि भारत अभी भी कई व्यवस्थागत रूप से औपनिवेशिक ढांचे पर चल रहा है, जिससे नीतियों का क्रियान्वयन धीमा हुआ।

“एक साथ चुनाव होने से सरकार को पांच वर्षों तक केवल विकास पर ध्यान देना होगा, बार-बार चुनाव रणनीति की राजनीति से वंचित होकर योजनाओं का स्थाई क्रियान्वयन हो सकेगा।”


चुनाव सुधार की चुनौतियाँ—संवैधानिक संशोधन और क्रियान्वयन के कदम

वन नेशन, वन इलेक्शन को लागू करने के लिए संवैधानिक धारा 82 (विधानसभा की अवधि) और धारा 83 (संसद की अवधि) में संशोधन करना पड़ेगा। इसके साथ ही कई राज्यों के विधानसभाओं को एक ही तिथि पर चुनावी कैलेंडर में समायोजित करना होगा।
विदित हो कि कई बार राज्यों ने अपने स्थानीय चुनाव के लिए अलग-अलग समय तय कर रखा था, जो इन संशोधनों के पहले अवरोध थे। अब केंद्र और राज्यों को मिलकर इसकी रूपरेखा तैयार करनी है।


छात्र सहभागिता और प्रश्नोत्तरी सत्र से नई उमंग

कार्यक्रम में विधि और मीडिया अध्ययन के छात्र-छात्राओं ने भी दिलचस्प सवाल पूछे। किसी ने पूछा कि “क्या कई दल विरुद्ध क्षेत्रीय मुद्दों को लेकर एक साथ चुनावों में भागीदारी से बाहर हो जाएंगे?”
वक्ताओं ने स्पष्ट किया कि यह लोकतंत्र का विस्तार है, जहां सभी दलों को एक समान मौका मिलेगा और मीडिया-कम्पेन का खर्च भी घटेगा।


डॉ. ध्रुव गलगोटिया का समापन सन्देश—‘शोध, संवाद और विस्तृत विमर्श’

समापन करते हुए डॉ. ध्रुव गलगोटिया ने कहा,

“ऐसा आयोजन हमें शोध, संवाद और विस्तृत विमर्श के नए अवसर देता है। छात्रों में जागरूकता पैदा होती है, वे चुनावी प्रक्रिया को समझते हैं और भविष्य में सकारात्मक भूमिका निभाने को प्रेरित होते हैं।”

उन्होंने विश्वविद्यालय की प्रतिबद्धता जताई कि ऐसे कार्यक्रम आगे भी होते रहेंगे, जिससे नागरिकों में लोकतांत्रिक ज्ञान और भागीदारी की भावना विकसित हो।


अभिषेक शर्मा का निर्णायक आह्वान—‘1 निर्वाचन तिथि, 1 लक्ष्य, 1 भारत’

कार्यक्रम का समापन भाजपा जिलाध्यक्ष अभिषेक शर्मा के उक्तिओं के साथ हुआ:

“यदि हम एक निर्वाचन तिथि पर अपनी पूरी ऊर्जा खर्च करें, तो विकास, सामाजिक समरसता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में हम अव्वल हो जाएंगे। वन नेशन, वन इलेक्शन—यह सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि भारत की अगली विकासधुरी है।”


निष्कर्ष—लोकतंत्र की नई दिशा

गलगोटिया विश्वविद्यालय में आयोजित इस संगोष्ठी ने साबित किया कि वन नेशन, वन इलेक्शन केवल राजनीतिक अधिनियम नहीं, बल्कि देश के विकास, स्थिरता और आर्थिक समृद्धि का मार्गदर्शक सिद्ध हो सकता है। अब जिम्मेदारी केंद्र और राज्य सरकारों की है कि इसे संवैधानिक, प्रशासकीय और तकनीकी दृष्टि से शीघ्रता से लागू करें, ताकि भारत अगले दशक में दुनिया की पहली तीन अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो सके।


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