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Sharma Hospital Greater Noida : भारत में मेडिकल चमत्कार, 6 साल की मासूम की बची किडनी, डॉक्टरों ने की पहली 'ऑटो-ट्रांसप्लांट सर्जरी', मेडिकल साइंस में रचा इतिहास!, अब दिल्ली के साथ-साथ शर्मा हॉस्पिटल ग्रेटर नोएडा डेल्टा 2 में भी...

अब दिल्ली के साथ-साथ शर्मा हॉस्पिटल ग्रेटर नोएडा डेल्टा 2 में भी डॉ पारस जैन मिल सकेंगे, शर्मा हॉस्पिटल के MD सार्थक शर्मा ने बताया कि कोई भी यूरो से रिलेटिड बीमारियों या बीमारी की जानकारी लेनी हो तो वह शर्मा हॉस्पिटल में पारस जैन मिल से मिल सकता है, फोर्टिस दिल्ली ने दुर्लभ 'बिलैटरल विल्म्स ट्यूमर' से पीड़ित बच्ची को दी नई जिंदगी, दोनों किडनियों में कैंसर होने के बावजूद सफल इलाज कर दिखाया कमाल

अब दिल्ली के साथ-साथ शर्मा हॉस्पिटल ग्रेटर नोएडा डेल्टा 2 में भी डॉ पारस जैन मिल सकेंगे, शर्मा हॉस्पिटल के MD सार्थक शर्मा ने बताया कि कोई भी यूरो से रिलेटिड बीमारियों या बीमारी की जानकारी लेनी हो तो वह शर्मा हॉस्पिटल में परेश जैन मिल से मिल सकते है और अपनी समस्या का समाधान पेशेंट करा सकते है। डॉ सार्थक शर्मा ने बताया कि वह दिल्ली फोर्टिस के साथ साथ यहां ग्रेटर नोएडा शर्मा हॉस्पिटल डेल्टा 2 भी मिल सकेंगे


नई दिल्ली, Raftar Today।
देश की राजधानी दिल्ली में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में एक ऐसा चमत्कार हुआ है, जिसने भारत को मेडिकल इनोवेशन की वैश्विक पंक्ति में एक नई ऊंचाई दी है। फोर्टिस एक्स्टेंशन हॉस्पिटल, ओखला के डॉक्टरों ने एक 6 वर्षीय उज्बेक बच्ची की जान बचाने के लिए ऐसा दुर्लभ ऑपरेशन किया, जो भारत में अब तक कभी नहीं हुआ था। बच्ची दोनों किडनियों में कैंसर से पीड़ित थी और इलाज का एकमात्र रास्ता यही था कि किडनी को शरीर से निकालकर उसका इलाज किया जाए और फिर वापस शरीर में प्रत्यारोपित किया जाए। यही प्रक्रिया कहलाती है ऑटो-ट्रांसप्लांट सर्जरी

अब दिल्ली के साथ-साथ शर्मा हॉस्पिटल ग्रेटर नोएडा डेल्टा 2 में भी डॉ पारस जैन मिल सकेंगे, शर्मा हॉस्पिटल के MD सार्थक शर्मा ने बताया कि कोई भी यूरो से रिलेटिड बीमारियों या बीमारी की जानकारी लेनी हो तो वह शर्मा हॉस्पिटल में परेश जैन मिल से मिल सकते है


👩‍⚕️ एक मासूम बच्ची और दो कैंसरग्रस्त किडनियां – जीवन और मौत के बीच की रेखा

उज्बेकिस्तान की रहने वाली 6 साल की इस बच्ची को जब भारत लाया गया, तब वह बेहद गंभीर स्थिति में थी। डॉक्टरों ने पाया कि बच्ची को बिलैटरल विल्म्स ट्यूमर (नेफ्रोब्लास्टोमा) है, जो एक प्रकार का किडनी कैंसर है और दोनों किडनियों को प्रभावित कर चुका था। यह स्थिति बेहद जटिल होती है क्योंकि यदि दोनों किडनियां निकाल दी जातीं, तो बच्ची को जीवनभर डायलिसिस पर रहना पड़ता या फिर किसी डोनर की जरूरत पड़ती, जो कि बच्चों में मिलना मुश्किल होता है।


⚕️ डॉक्टरों की टीम ने दिखाया साहस, किया भारत का पहला ऑटो-ट्रांसप्लांट

डॉ. परेश जैन की अगुवाई में फोर्टिस हॉस्पिटल की विशेषज्ञ टीम ने बच्ची की एक किडनी को निकालकर उस पर कैंसर का इलाज किया और फिर उसे पुनः प्रत्यारोपित कर दिया। इसी प्रक्रिया को ऑटो-ट्रांसप्लांटेशन कहा जाता है। यह भारत में इस तकनीक का पहला सफल मामला है।

डॉ. जैन के अनुसार, “अगर हम किडनी को निकाल देते, तो बच्ची को जीवनभर कृत्रिम सहारे की आवश्यकता होती। लेकिन हमने जोखिम उठाया और उस किडनी को ट्यूमर हटाने के बाद दोबारा प्रत्यारोपित किया। यह अत्यंत जटिल प्रक्रिया थी लेकिन सफल रही।”


🧬 पहले कीमोथेरेपी, फिर सर्जरी – जानिए पूरा इलाज

इस अनोखे ऑपरेशन से पहले बच्ची को कई हफ्तों तक कीमोथेरेपी दी गई ताकि कैंसर का आकार घटाया जा सके। फिर ऑपरेशन के दौरान एक किडनी को शरीर से बाहर निकाला गया, उस पर ट्यूमर हटाया गया, और नाजुक नसों को दोबारा जोड़ा गया। सर्जरी के दौरान नेफ्रॉन सेविंग टेक्निक अपनाई गई ताकि किडनी की कार्यक्षमता बनी रहे।


👨‍👩‍👧 माता-पिता की आंखों में खुशी के आंसू

बच्ची के माता-पिता ने कहा, “हमने रूस और तुर्की जैसे देशों में इलाज कराने की कोशिश की, लेकिन हर जगह यही कहा गया कि दोनों किडनियां निकालनी होंगी। हमें लगा हम अपनी बेटी को खो देंगे। लेकिन भारत आने के बाद हमें उम्मीद की किरण दिखी। फोर्टिस के डॉक्टरों ने जो किया, वह चमत्कार से कम नहीं था।”


🌍 क्या है ‘बिलैटरल विल्म्स ट्यूमर’? कितनी जटिल होती है ये बीमारी?

यह कैंसर आमतौर पर 3 से 4 साल की उम्र के बच्चों में होता है। जब यह दोनों किडनियों में फैल जाए तो इसे ‘बिलैटरल’ कहा जाता है। इस स्थिति में अगर दोनों किडनियां निकाल दी जाएं तो रोगी को कृत्रिम जीवन सहारा देना पड़ता है। ऐसे मामलों में अंग प्रत्यारोपण या डायलिसिस ही एकमात्र विकल्प रह जाता है।


🚨 ऑटो-ट्रांसप्लांट क्यों है एक बड़ा कदम?

  • मरीज की अपनी ही किडनी को दोबारा प्रत्यारोपित किया गया
  • बाहरी डोनर की जरूरत नहीं पड़ी
  • प्रतिरोधक दवाओं (इम्यूनोसप्रेसेंट्स) की आवश्यकता नहीं
  • जीवन भर की डायलिसिस से मिली राहत
  • पहली बार भारत में इतनी जटिल प्रक्रिया सफल हुई

🏥 फोर्टिस ने गढ़ा नया इतिहास, भारत को दिलाई गर्व की अनुभूति

इस ऑपरेशन के बाद भारत न केवल पेडियाट्रिक कैंसर सर्जरी बल्कि किडनी ट्रांसप्लांट तकनीक में भी एक नई मिसाल बन गया है। यह केस भारत की मेडिकल क्षमताओं को वैश्विक मानकों पर एक नई ऊंचाई देता है।

डॉ. परेश जैन ने कहा कि अब हम इस तकनीक को और अधिक बच्चों के लिए उपयोग में लाने की दिशा में कार्य कर रहे हैं। भविष्य में इसी तकनीक के माध्यम से ऐसे कई बच्चों को नई जिंदगी दी जा सकेगी।


📍 निष्कर्ष: जब विज्ञान और संवेदना मिलें, तो चमत्कार होता है

इस सर्जरी ने न केवल एक बच्ची की जान बचाई, बल्कि यह साबित कर दिया कि भारत में मेडिकल साइंस कितनी तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। डॉक्टरों की विशेषज्ञता, तकनीक में निपुणता और मानवीय भावना ने एक असंभव को संभव कर दिखाया।


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