ग्रेटर नोएडा, रफ़्तार टुडे। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में भ्रष्टाचार का एक और मामला सामने आया है, जिसमें भूमि विभाग के एक भू-परामर्शदाता पर रिश्वत मांगने के गंभीर आरोप लगाए गए हैं। हबीबपुर गांव में 10 प्रतिशत प्लॉट आवंटन के नाम पर याचिकाकर्ताओं से 1500 रुपये प्रति वर्ग मीटर रिश्वत मांगने का आरोप है। इस मामले को सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट दोनों में उठाया गया, जहां न्यायालय ने न केवल भू-परामर्शदाता के खिलाफ जांच के आदेश दिए बल्कि सुप्रीम कोर्ट के पहले के फैसले को भी बरकरार रखा।
पूरा मामला: क्या है आरोप और कोर्ट का आदेश?
पृष्ठभूमि: सुप्रीम कोर्ट का आदेश और अनुपालन की अनदेखी
2014 में सुप्रीम कोर्ट ने हबीबपुर गांव के याचिकाकर्ताओं के पक्ष में फैसला सुनाते हुए सोसायटी की जमीन के बदले 10 प्रतिशत प्लॉट आवंटित करने के आदेश दिए थे। आरोप है कि ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के भूमि विभाग में इस आदेश का पालन नहीं किया गया।
इसके बाद, भू-परामर्शदाता ने याचिकाकर्ताओं से 1500 रुपये प्रति वर्ग मीटर रिश्वत मांगने की कोशिश की।
कोर्ट की कार्रवाई और निर्देश
याचिकाकर्ताओं ने इस मामले को फिर से कोर्ट में उठाया।हाईकोर्ट ने मामले को गंभीर मानते हुए जांच के आदेश दिए और प्राधिकरण के सीईओ को हलफनामा दाखिल करने को कहा। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि आरोप सही साबित होते हैं, तो यह एक गंभीर भ्रष्टाचार का मामला होगा।
भू-परामर्शदाता की समय अवधि में वृद्धि की तैयारी पर विवाद
मामले की जांच अभी चल ही रही है कि भू-परामर्शदाता की सेवाओं को बढ़ाने की तैयारी की जा रही है। भू-परामर्शदाता की वर्तमान समयावधि समाप्त हो चुकी है।
लेकिन, विवाद और आरोपों के बावजूद, प्राधिकरण द्वारा उनकी अवधि बढ़ाने की चर्चा ने नैतिकता और पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। कोर्ट के आदेश के बाद, क्या ऐसे अधिकारी को दोबारा सेवाएं देने का फैसला प्राधिकरण के हित में होगा?
भ्रष्टाचार के खिलाफ न्यायालय की सख्ती
इस मामले में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट दोनों का रुख सख्त है। सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही आदेश दिया था कि 10 प्रतिशत प्लॉट का आवंटन जल्द किया जाए। हाईकोर्ट ने यह सुनिश्चित करने के लिए जांच और जवाबदेही की प्रक्रिया को मजबूत करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या जांच में किसी प्रकार की ढिलाई बरती गई है।
क्या कहती है न्यायिक प्रणाली और प्रशासनिक नैतिकता?
भ्रष्टाचार से जुड़ा अधिकारी:
जिन पर रिश्वत मांगने के गंभीर आरोप लगे हैं, उनकी सेवाओं को जारी रखना प्रशासनिक नैतिकता पर सवाल उठाता है।
जांच की पारदर्शिता:
सीईओ को हलफनामा दाखिल कर स्पष्ट करना होगा कि इस मामले में जांच के आदेश का पालन हुआ या नहीं।
प्राधिकरण की जवाबदेही:
क्या ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ऐसे अधिकारियों को बढ़ावा देकर अपनी छवि को धूमिल कर रहा है?
निष्कर्ष और आगे की राह
यह मामला भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रशासनिक पारदर्शिता की परीक्षा है। जहां एक ओर, कोर्ट ने भ्रष्टाचार को गंभीर मानते हुए जांच और कार्रवाई का निर्देश दिया है। वहीं, दूसरी ओर, भू-परामर्शदाता की समय अवधि में वृद्धि की तैयारी से प्राधिकरण की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं।
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