Sharda University News : अब भारत सिर्फ एक देश नहीं, एक गर्व है, शारदा यूनिवर्सिटी में किरेन रिजिजू का उद्बोधन बना राष्ट्रभक्ति की नई परिभाषा“हम भारतीय हैं और हमें इस पर गर्व है” – विदेशों में गूंज रही भारतीयता की यह गूंज अब सिर्फ नारा नहीं, बल्कि नई सोच है

शारदा यूनिवर्सिटी, नॉलेज पार्क, ग्रेटर नोएडा
तारीख: 30-31 मई 2025
रिपोर्ट: रफ़्तार टुडे ब्यूरो
विदेशों में रह रहे भारतीयों का बढ़ा आत्मविश्वास: अब गर्व से बोलते हैं – “हम भारतीय हैं!”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत की वैश्विक छवि में बड़ा बदलाव आया है। विदेशों में रहने वाले भारतीय अब गर्व और आत्मसम्मान के साथ कहते हैं – “Yes, I’m Indian!”
यह विचार सामने आया शारदा विश्वविद्यालय में आयोजित ‘स्वदेशी पुनरुत्थान की दिशा में औपनिवेशिक ढांचे के उन्मूलन’ पर आधारित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में, जहाँ केंद्रीय संसदीय कार्य व अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू मुख्य वक्ता के तौर पर शामिल हुए।
उन्होंने अपने प्रेरणादायक संबोधन में कहा:
“पहले विदेशों में भारतीय हिंदी बोलने से कतराते थे, अब वे अपनी भाषा और संस्कृति को गर्व से अपनाते हैं। यही आत्मनिर्भर भारत की असली पहचान है।”
सम्मेलन का थीम – स्वदेशी सोच को पुनर्जीवित करने का संकल्प
इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन शारदा विश्वविद्यालय के भारतीय संस्कृति वैश्विक केंद्र, ह्यूमैनिटीज़ एंड सोशल साइंसेज संकाय, और अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक अध्ययन केंद्र (ICCS) द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था।
सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य था –
🔹 औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति
🔹 भारतीयता और मातृभाषा को बढ़ावा
🔹 विश्व स्तर पर भारत की सांस्कृतिक विरासत का प्रचार
🔹 युवाओं में राष्ट्रीय चेतना और जड़ों से जुड़ाव
“गांव का नाम याद नहीं, लेकिन विदेशों के शहर याद हैं” – रिजिजू ने युवाओं को किया आत्ममंथन के लिए प्रेरित
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि आज की युवा पीढ़ी अपने गांव का नाम, पारिवारिक परंपराएं और लोक संस्कृति भूलती जा रही है, जबकि विदेशी संस्कृति और शहरों की जानकारी उन्हें बखूबी होती है।
“ये मानसिक गुलामी का लक्षण है। अगर हम अपने देश, संस्कृति और मातृभाषा को नहीं पहचानेंगे तो आत्मसम्मान कहां से आएगा?”
उन्होंने यह भी कहा कि भारत को अगर “विश्व गुरु” बनना है, तो सबसे पहले हमें अपने भीतर की भारतीयता को जगाना होगा।
शारदा यूनिवर्सिटी बनी ‘भारत दर्शन’ की प्रयोगशाला
सम्मेलन के दौरान केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने शारदा यूनिवर्सिटी के कैंपस, शैक्षणिक वातावरण और भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों की विशेष सराहना की।
“यह मेरा इस विश्वविद्यालय में दूसरा दौरा है। यह परिसर सिर्फ सुंदर ही नहीं, बल्कि सोच और संस्कार से भी संपन्न है। मैं चांसलर पीके गुप्ता जी की सराहना करता हूं, जिन्होंने विश्वविद्यालय को भारतीय संस्कृति की प्रयोगशाला बना दिया है।”
चांसलर पीके गुप्ता बोले – “संस्कृति ही असली पूंजी है”
शारदा यूनिवर्सिटी के चांसलर डॉ. पीके गुप्ता ने अपने संबोधन में कहा कि आज जरूरत है संस्कृति आधारित शिक्षा की। उन्होंने कहा:
“हमारे बच्चे अगर अपनी जड़ों से जुड़ेंगे, तभी आत्मविश्वास विकसित होगा। हमें अपने छात्रों को उनके प्रदेश, भाषा, परंपराएं और लोक ज्ञान से जोड़ना होगा।”
उन्होंने यह भी कहा कि लड़कियों की शिक्षा, सुरक्षा और उन्हें रोजगार में आरक्षण देकर हम आने वाले भारत की बुनियाद को मजबूत बना सकते हैं।
छात्रों और प्रोफेसरों ने साझा किया शोध और विचार
सम्मेलन में भारत के अलावा अन्य देशों से भी स्कॉलर्स, शिक्षाविद् और शोधकर्ताओं ने भाग लिया। उनके विचार इस बात को रेखांकित करते हैं कि आज दुनिया भर के स्वदेशी समुदाय अपनी जड़ों की ओर लौटने की कोशिश कर रहे हैं।
इस मौके पर मौजूद रहे:
- डॉ. धनंजय सिंह – सदस्य सचिव, भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR)
- डॉ. सिबाराम खारा – कुलपति, शारदा यूनिवर्सिटी
- डॉ. अन्विति गुप्ता – डीन, ह्यूमैनिटीज एंड सोशल साइंसेज
- डॉ. प्रशांत अर्वे – सम्मेलन सह संयोजक
- डॉ. शशि बाला – इंडोलॉजिस्ट, अध्यक्ष, ICCS भारत
- डॉ. भुवनेश कुमार – विभिन्न विभागों के डीन और एचओडी
सम्मेलन के प्रमुख बिंदु:
🔸 भारतीयता को फिर से परिभाषित करने का आह्वान
🔸 संस्कृति आधारित शिक्षा की वकालत
🔸 मातृभाषा को प्राथमिकता देने की मांग
🔸 स्वदेशी सोच को पुनर्जीवित करने की अपील
🔸 महिलाओं के लिए शिक्षा और रोजगार में अवसर बढ़ाने की सिफारिश
निष्कर्ष – संस्कृति नहीं भूलेगा तो भारत नहीं झुकेगा
इस सम्मेलन ने यह स्पष्ट किया कि भारत को अगर विश्व मंच पर आत्मनिर्भर, सम्मानित और नेतृत्वकारी राष्ट्र बनाना है, तो सबसे पहले भारत को भारत से जोड़ना होगा।
भारतीय संस्कृति, भाषा और सोच को केवल ‘विषय’ नहीं बल्कि जीवनशैली बनाना होगा।
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