
नोएडा, रफ्तार टुडे।
“एक क्रांति जो कभी खत्म नहीं होगी…”
रविवार, 23 मार्च 2025 को नोएडा के सेक्टर-56 स्थित कम्युनिटी सेंटर में पंजाबी विकास मंच द्वारा अमर शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के 94वें शहीदी दिवस पर एक भव्य श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। इस सभा में नोएडा और आसपास के क्षेत्र से बड़ी संख्या में गणमान्य नागरिकों, समाजसेवियों और पंजाबी समुदाय के लोगों ने भाग लिया।
दीप प्रज्वलन के साथ हुआ कार्यक्रम का शुभारंभ
सभा की शुरुआत पंजाबी विकास मंच के चेयरमैन श्री दीपक विग द्वारा दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुई। इसके बाद उपस्थित लोगों ने शहीदों के चित्र पर पुष्प अर्पित कर नमन किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता मंच के अध्यक्ष श्री गुरिंदर बंसल ने की, जबकि संचालन मंच के डिप्टी चेयरमैन श्री संजीव पुरी ने किया।
“शहीदों की कुर्बानियों को कभी नहीं भूल सकता भारत” – दीपक विग
सभा को संबोधित करते हुए चेयरमैन श्री दीपक विग ने कहा,
“शहीद भगत सिंह का जीवन मात्र 23 वर्षों का था, लेकिन इन वर्षों में उन्होंने जो किया, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए मिसाल बन गया। उनकी क्रांतिकारी सोच, स्वतंत्रता के प्रति उनका समर्पण और समाजवाद की उनकी अवधारणा आज भी प्रासंगिक है। हमें उनके आदर्शों को अपनाने की जरूरत है।”
“भगत सिंह ने 100 साल पहले जो कहा, आज भी उतना ही महत्वपूर्ण” – गुरिंदर बंसल
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे श्री गुरिंदर बंसल ने कहा,
“भगत सिंह ने 1924 में कहा था कि पंजाबी भाषा को देवनागरी लिपि में लिखने से इसका प्रचार-प्रसार अधिक होगा। उनकी सोच कितनी दूरदर्शी थी, यह इसी बात से जाहिर होता है कि आज भाषा संरक्षण एक बड़ा मुद्दा बन चुका है।”
कैसे बने भगत सिंह एक क्रांतिकारी?
भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर 1907 को ब्रिटिश भारत के लायलपुर (अब पाकिस्तान) के बंगा गांव में हुआ था। उनके परिवार में स्वतंत्रता संग्राम की गहरी जड़ें थीं। जालियांवाला बाग हत्याकांड ने उनके बाल मन पर गहरा प्रभाव डाला और उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ने की ठान ली।

वह लाहौर के नेशनल कॉलेज में पढ़ाई के दौरान क्रांतिकारियों के संपर्क में आए और हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़े। बाद में, चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) की स्थापना की।
सांडर्स हत्याकांड: “लाला लाजपत राय की शहादत का बदला”
1928 में साइमन कमीशन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान ब्रिटिश अधिकारी जेपी सांडर्स ने लाला लाजपत राय पर लाठीचार्ज किया, जिससे उनकी मृत्यु हो गई। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने सांडर्स की हत्या कर इसका बदला लिया।
इसके बाद भगत सिंह ने 8 अप्रैल 1929 को बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर ब्रिटिश असेंबली में बम फेंका। उनका मकसद किसी को मारना नहीं था, बल्कि ब्रिटिश सरकार को चेतावनी देना था। बम फेंकने के बाद उन्होंने नारा लगाया –
“इंकलाब जिंदाबाद! अंग्रेजी साम्राज्यवाद का नाश हो!”
कैसे दी गई फांसी?
7 अक्टूबर 1930 को अंग्रेजों ने भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा सुनाई। फांसी का समय 24 मार्च 1931 की सुबह तय था, लेकिन डर के मारे अंग्रेजों ने 23 मार्च को ही शाम 7:33 बजे उन्हें फांसी दे दी। फांसी के बाद उनके शवों को चोरी-छिपे फिरोजपुर के पास सतलुज नदी के किनारे जला दिया गया।
“आज भी जलती है शहीदों की ज्वाला” – संजीव पुरी
डिप्टी चेयरमैन श्री संजीव पुरी ने कहा,
“भगत सिंह और उनके साथियों की लोकप्रियता उस समय महात्मा गांधी से भी अधिक थी। उन्होंने सिर्फ ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह नहीं किया, बल्कि युवाओं को राष्ट्रप्रेम का नया दृष्टिकोण भी दिया।”
2 मिनट का मौन रख दी गई श्रद्धांजलि
कार्यक्रम में मौजूद लोगों ने शहीदों की याद में 2 मिनट का मौन रखा और ‘इंकलाब जिंदाबाद’ के नारे लगाए।
सम्मानित व्यक्तियों की उपस्थिति
इस मौके पर प्रमुख रूप से उपस्थित लोगों में शामिल थे:
- दीपक विग (चेयरमैन, पंजाबी विकास मंच)
- गुरिंदर बंसल (अध्यक्ष, पंजाबी विकास मंच)
- संजीव पुरी (डिप्टी चेयरमैन)
- जे. एम. सेठ
- एस. पी. कालरा
- अमरदीप शाह
- संजय खत्री
- अजय साहनी
- प्रभा जैरथ
- सरोज भाटिया
- अलका सूद
- सुषमा नैब
- अमरजीत कौर
- अचल जैन
- सुनील वर्मा
- सोमदत्त
“शहीदों की कुर्बानी को बनाएंगे प्रेरणा का स्रोत”
सभा के अंत में सभी लोगों ने प्रण लिया कि शहीदों के बलिदान को हमेशा याद रखेंगे और उनके आदर्शों को अपनाने की कोशिश करेंगे।
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