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Reply Sought From Center On Environment Ministry’s Office Memorandum – पर्यावरण मंत्रालय के आफिस मेमोरेंडम पर केंद्र से जवाब तलब

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नई दिल्ली। उच्च न्यायालय ने मंगलवार को केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ और सीसी) द्वारा जारी एक कार्यालय ज्ञापन (आफिस मेमोरेंडम) को चुनौती देने वाली एक याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। आफिस मेमोरेडम में परियोजनाओं को पर्यावरणीय मंजूरी देने की प्रक्रिया निर्धारित की गई है।
मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की खंडपीठ ने केंद्र सरकार को अपना जवाब दाखिल करने के निर्देश देते हुए सुनवाई 29 मार्च 22 तय की है।
अधिवक्ता चिराग जैन के माध्यम से छात्र निष्ठा शुक्ला द्वारा दायर याचिका में तर्क दिया गया कि पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) अधिसूचना 1994 के तहत स्थापित कानून का उल्लंघन करते हुए सात जुलाई 21 को मंत्रालय द्वारा मेमोरेंडम अधिकार क्षेत्र के बिना पारित किया है।
याची ने कहा केंद्र के पास इस कार्यालय ज्ञापन को पारित करने का अधिकार नहीं है क्योंकि यह ईआईए अधिसूचना 2006 के तहत निर्धारित कानून को काफी हद तक बदल देता है, जो एक अधीनस्थ कानून है और किसी भी कार्यालय ज्ञापन द्वारा खारिज नहीं किया जा सकता है। याचिका में आगे कहा गया है कि यह ज्ञापन गंभीर उल्लंघनों को नियमित करने का एक तरीका है जिसका इस देश के पर्यावरण न्याय शास्त्र पर बहुत हानिकारक प्रभाव पड़ेगा।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि 1994 और 2006 की ईआईए अधिसूचना एक परियोजना पर किसी भी काम को शुरू करने से पहले एक अनिवार्य पर्यावरण मंजूरी (ईसी) जारी करने का प्रावधान करती है। मौजूदा परियोजनाओं या गतिविधियों के विस्तार या आधुनिकीकरण से संभावित पर्यावरणीय प्रभाव के आधार पर ये प्रतिबंध देश के पर्यावरण न्याय शास्त्र का आधार हैं।
कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो उल्लंघनकर्ताओं को पहले से शुरू हो चुकी परियोजनाओं के लिए पर्यावरण मंजूरी प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता हो।

नई दिल्ली। उच्च न्यायालय ने मंगलवार को केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ और सीसी) द्वारा जारी एक कार्यालय ज्ञापन (आफिस मेमोरेंडम) को चुनौती देने वाली एक याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। आफिस मेमोरेडम में परियोजनाओं को पर्यावरणीय मंजूरी देने की प्रक्रिया निर्धारित की गई है।

मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की खंडपीठ ने केंद्र सरकार को अपना जवाब दाखिल करने के निर्देश देते हुए सुनवाई 29 मार्च 22 तय की है।

अधिवक्ता चिराग जैन के माध्यम से छात्र निष्ठा शुक्ला द्वारा दायर याचिका में तर्क दिया गया कि पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) अधिसूचना 1994 के तहत स्थापित कानून का उल्लंघन करते हुए सात जुलाई 21 को मंत्रालय द्वारा मेमोरेंडम अधिकार क्षेत्र के बिना पारित किया है।

याची ने कहा केंद्र के पास इस कार्यालय ज्ञापन को पारित करने का अधिकार नहीं है क्योंकि यह ईआईए अधिसूचना 2006 के तहत निर्धारित कानून को काफी हद तक बदल देता है, जो एक अधीनस्थ कानून है और किसी भी कार्यालय ज्ञापन द्वारा खारिज नहीं किया जा सकता है। याचिका में आगे कहा गया है कि यह ज्ञापन गंभीर उल्लंघनों को नियमित करने का एक तरीका है जिसका इस देश के पर्यावरण न्याय शास्त्र पर बहुत हानिकारक प्रभाव पड़ेगा।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि 1994 और 2006 की ईआईए अधिसूचना एक परियोजना पर किसी भी काम को शुरू करने से पहले एक अनिवार्य पर्यावरण मंजूरी (ईसी) जारी करने का प्रावधान करती है। मौजूदा परियोजनाओं या गतिविधियों के विस्तार या आधुनिकीकरण से संभावित पर्यावरणीय प्रभाव के आधार पर ये प्रतिबंध देश के पर्यावरण न्याय शास्त्र का आधार हैं।

कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो उल्लंघनकर्ताओं को पहले से शुरू हो चुकी परियोजनाओं के लिए पर्यावरण मंजूरी प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता हो।

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