सार
फ्लोर एरिया रेश्यो में बढ़ोतरी और टीओडी परियोजनाओं से मिलेगी राहत।
राजधानी दिल्ली की बढ़ती आबादी के लिए रिहायश सिकुड़ती जा रही है। आबादी में सालाना इजाफे और जमीन की सीमित उपलब्धता से दिल्ली में अपने आशियाने का सपना हजारों लोगों के लिए अभी भी अधूरा है।
1483 वर्ग किलोमीटर के दायरे में दिल्ली की बसावट के लिए सीमित जमीन होने से सेक्टरों की तर्ज पर घनी आबादी वाली कॉलोनियों में बिल्डर्स फ्लैट एक विकल्प के तौर पर उभरने लगे हैं। पूरा शहर आसमान की तरफ फैलता जा रहा है।
वहीं, कई लोगों को फुटपाथ व फ्लाईओवर के नीचे रहने को मजबूर होना पड़ रहा है। विशेषज्ञ भी मानते हैं कि दिल्ली की जरूरतें कामचलाऊ तरीके से पूरी नहीं हो सकतीं। इसके लिए बड़े स्तर पर काम करना पड़ेगा।
एफएआर में वृद्धि और टीओडी से रिहायश की समस्या हो सकती है कम
दिल्ली में आबादी में बढ़ोतरी के साथ-साथ रिहायश की जरूरत पूरी करने में फ्लोर एरिया रेश्यो (एफएआर) की अहम भूमिका हो सकती है। मास्टर प्लान में अलग-अलग क्षेत्रों के लिए यह 1-4 के बीच है, जबकि कड़कड़डूमा, छतरपुर सहित कुछ और क्षेत्रों में ट्रांजिट आरिएंटेंड डेवलपमेंट (टीओडी) का विकल्प कारगर हो सकता है।
मगर, बहुमंजिला इमारतों के निर्माण से वहां रहने वालों को पानी, बिजली और वाहनों के बढ़ते बोझ को कम करने के लिए संभावनाएं तलाशने की जरूरत है। वाहनों में जीवाश्म ईंधन की बजाय वैकल्पिक ईंधन का उपयोग करना होगा, जबकि इमारतों के निर्माण में बेतरतीबी रुकने से दिल्ली का संतुलित विकास होगा।
-स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर, दिल्ली के पूर्व फैकल्टी डॉ. पीके सरकार
सात दशक का सफर, 17.44 लाख से 1.75 करोड़ की हुई दिल्ली
- 1951 से अब तक आबादी में हर दशक में 50 फीसदी से अधिक बढ़ोतरी हुई है।
- 2001-2011 के बीच दिल्ली की आबादी में करीब 21.2 फीसदी की बढ़ोतरी।
- 2041 तक आबादी तीन करोड़ के पार होने का अनुमान।
- एक परिवार (पांच सदस्यों) के लिए एक रिहायश की जरूरत को पूरा करना भी आसान नहीं होगा।
- एक वर्ग किमी में दिल्ली में 11,320 लोगों की रिहायश।
- क्षेत्रफल के लिहाज से दिल्ली का करीब 75 हिस्सा शहरीकृत, जहां रहते हैं 97 फीसदी लोग।
दिल्ली की आबादी में 70 वर्ष में हुई बढ़ोतरी
1951 17.44 लाख
1961 26.59 लाख
1971 40.66 लाख
1981 62.20 लाख
1991 94.21 लाख
2001 138.51 लाख
2011 167.86 लाख
2021 करीब 1.90 करोड़ (आकलन)
शाहीन बाग की आबादी करीब दो लाख है, मगर अभी भी न तो पीने के पानी और न ही सीवर की बुनियादी सुविधाएं हैं। 20 साल में आबादी करीब 10 गुना बढ़ गई है। लोगों की रिहायश की जरूरतें पूरी करने के लिए मल्टीस्टोरी बिल्डिंग का निर्माण किया जा रहा है। हैरत की बात यह है कि नियमों को ताक पर रखकर किए जा रहे निर्माण से होने वाले प्रदूषण या दूसरी परेशानियों की तरफ किसी विभाग की नजर नहीं है। भीड़भाड़ और अतिक्रमण के कारण कई पार्किंग एक बड़ी समस्या है। कई बार तो सड़कों पर चलना भी मुश्किल हो जाता है।
स्थानीय निवासियों की राय
1980-90 के दशक में फ्लैटों का निर्माण शुरू हो गया था, मगर लोन की सुविधा न होने की वजह से कीमत चुकाने में सभी लोग सक्षम नहीं हैं। आशियाने के लिए नीतियों को सही तरीके से लागू किया जाना चाहिए। बुनियादी सुविधाएं दिल्ली के अधिकतर इलाकों में अभी भी लोगों के लिए घर का सपना पूरा करने की राह में मुश्किलें हैं। एनसीआर के शहरों में कम कीमत में रिहायश की सुविधा होने से लोग दूसरे शहरों की तरफ रुख कर रहे हैं। मेट्रो के कारण आवागमन की सहूलियतें बढ़ी हैं और आने वाले दिनों में इसका और भी असर दिखेेगा।
-सरफराज अहमद, स्थानीय निवासी शाहीन बाग
रिहायश पर भारी बुनियादी सुविधाओं की कमी
शाहीन बाग निवासी मसूद आलम (पेशे से इंजीनियर) का कहना है कि बुनियादी सुविधाओं की कमी से यहां रिहायश की समस्या बनी हुई है। घरों से बाहर निकलते ही लोगों को अतिक्रमण, पार्किंग और निर्माण से होने वाले प्रदूषण से जूझना पड़ना पड़ रहा है। पिछले 20 वर्ष में आबादी में बढ़ोतरी के बाद भी सुविधाएं काफी कम हैं। बिल्डर्स फ्लैट का धड़ल्ले से निर्माण किया जा रहा है। रिहायश की अगर जरूरत पूरी भी हो तो बुनियादी सुविधाओं की कमी से जीवनशैली भी प्रभावित होने लगी है।
लालकिले की बुनियाद रखने वाले पालम गांव की 2001 में करीब 10 हजार आबादी थी। फिलहाल यह आंकड़ा बीस हजार से ज्यादा है। गांव में छोटा-सा भी भूखंड़ खाली नहीं बचा है। सभी जगहों पर मकान बन गए हैं। गांव में आधे से अधिक भूखंडों पर दो से लेकर चार मंजिल तक मकान बन चुके हैं और अन्य भूखंडों पर भी तीन-चार मंजिला मकान बनाने का कार्य चल रहा है। उधर, गांव की आबादी बढ़ने के मद्देनजर सुविधाओं में इजाफा नहीं हुआ। स्वास्थ्य सेवाएं लचर हो गई हैं। गांव स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में मरीजों को भर्ती करने की सुविधा खत्म हो गई। इस तरह गांव में उच्च शिक्षा के लिए कॉलेज भी नहीं बनाया गया। गांव में स्थित रेलवे स्टेशन पर कुछ ही ट्रेनें रुकती हैं। गांव में कभी इलाके का बस अड्डा होता था, मगर अब गांव की मुख्य सड़क सेे बसें भी नहीं गुजरती है।
स्थानीय निवासियों की राय
राजधानी का ऐतिहासिक गांव होने के बावजूद उसकी ओर देश विदेश के लोगों को आकर्षित करने के लिए कोई पहल नहीं की गई। आज यह एतिहासिक गांव किसी स्लम से कम नहीं है। गांव में एक भी ऐसी सुविधा नहीं है, जिसको लेकर ग्रामीण अपना सीना चौड़ा कर सकें।
– सुरेंद्र सोलंकी, अध्यक्ष, पालम 360 खाप
इस गांव के निवासी अन्य गांवों के निवासियों की तरह समस्याओं से परेशान हैं। गांव में पानी का संकट भी रहता है, बस सेवा के लिए एक से दो किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। ग्रामीण चिकित्सा सुविधाओं के मामले में निजी अस्पतालों पर निर्भर हैं। सड़कों एवं गलियों की स्थिति भी जर्जर है।
– चौ. प्रह्लाद सिंह
विस्तार
राजधानी दिल्ली की बढ़ती आबादी के लिए रिहायश सिकुड़ती जा रही है। आबादी में सालाना इजाफे और जमीन की सीमित उपलब्धता से दिल्ली में अपने आशियाने का सपना हजारों लोगों के लिए अभी भी अधूरा है।
1483 वर्ग किलोमीटर के दायरे में दिल्ली की बसावट के लिए सीमित जमीन होने से सेक्टरों की तर्ज पर घनी आबादी वाली कॉलोनियों में बिल्डर्स फ्लैट एक विकल्प के तौर पर उभरने लगे हैं। पूरा शहर आसमान की तरफ फैलता जा रहा है।
वहीं, कई लोगों को फुटपाथ व फ्लाईओवर के नीचे रहने को मजबूर होना पड़ रहा है। विशेषज्ञ भी मानते हैं कि दिल्ली की जरूरतें कामचलाऊ तरीके से पूरी नहीं हो सकतीं। इसके लिए बड़े स्तर पर काम करना पड़ेगा।
एफएआर में वृद्धि और टीओडी से रिहायश की समस्या हो सकती है कम
दिल्ली में आबादी में बढ़ोतरी के साथ-साथ रिहायश की जरूरत पूरी करने में फ्लोर एरिया रेश्यो (एफएआर) की अहम भूमिका हो सकती है। मास्टर प्लान में अलग-अलग क्षेत्रों के लिए यह 1-4 के बीच है, जबकि कड़कड़डूमा, छतरपुर सहित कुछ और क्षेत्रों में ट्रांजिट आरिएंटेंड डेवलपमेंट (टीओडी) का विकल्प कारगर हो सकता है।
मगर, बहुमंजिला इमारतों के निर्माण से वहां रहने वालों को पानी, बिजली और वाहनों के बढ़ते बोझ को कम करने के लिए संभावनाएं तलाशने की जरूरत है। वाहनों में जीवाश्म ईंधन की बजाय वैकल्पिक ईंधन का उपयोग करना होगा, जबकि इमारतों के निर्माण में बेतरतीबी रुकने से दिल्ली का संतुलित विकास होगा।
-स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर, दिल्ली के पूर्व फैकल्टी डॉ. पीके सरकार
सात दशक का सफर, 17.44 लाख से 1.75 करोड़ की हुई दिल्ली
- 1951 से अब तक आबादी में हर दशक में 50 फीसदी से अधिक बढ़ोतरी हुई है।
- 2001-2011 के बीच दिल्ली की आबादी में करीब 21.2 फीसदी की बढ़ोतरी।
- 2041 तक आबादी तीन करोड़ के पार होने का अनुमान।
- एक परिवार (पांच सदस्यों) के लिए एक रिहायश की जरूरत को पूरा करना भी आसान नहीं होगा।
- एक वर्ग किमी में दिल्ली में 11,320 लोगों की रिहायश।
- क्षेत्रफल के लिहाज से दिल्ली का करीब 75 हिस्सा शहरीकृत, जहां रहते हैं 97 फीसदी लोग।
दिल्ली की आबादी में 70 वर्ष में हुई बढ़ोतरी
1951 17.44 लाख
1961 26.59 लाख
1971 40.66 लाख
1981 62.20 लाख
1991 94.21 लाख
2001 138.51 लाख
2011 167.86 लाख
2021 करीब 1.90 करोड़ (आकलन)
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