न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: Vikas Kumar
Updated Tue, 28 Dec 2021 06:01 AM IST
सार
मशहूर शायर का शेर आज उनकी हवेली की दांस्ता बयां कर रहा है। गालिब की जयंती के बारे में उनकी हवेली के आस-पास के रहने वालों तक को कुछ पता नहीं है।
मिर्जा गालिब की हवेली
– फोटो : amar ujala
‘पूछते हैं वो कि गालिब कौन है, कोई बतलाओ कि हम बतलाएं क्या।’ अपने वक्त में गालिब ने शायद इसे मजाक में कहा होगा, लेकिन आज बल्लीमरान में मौजूद मिर्जा गालिब की हवेली की माकूल हकीकत बयां कर रहा है। ख्याल उनको भी नहीं कि गालिब की सोमवार यौम-ए-पैदाइश थी, जो दूर-दराज से हवेली में घूमने पहुंचे थे और वह भी मशहूर शायर को भुला बैठे हैं, जो हवेली के पड़ोस में ही बैठे हैं। जश्न मनने की जगह वहां हर ओर वीरानगी सी छाई हुई थी। हवेली के अंदर तो उनकी किताबें, गालिब का बुत, कपड़े, शतरंज और चौसा और हुक्का समेत दूसरी दैनिक इस्तेमाल वाली चीजें करीने से सजाकर रखी थी।
हवेली के दरवाजे तो खुले थे, लेकिन कोविड की वजह से गालिब के जन्म दिन पर वहां कोई आयोजन नहीं रखा गया था। अपनी भतीजी के साथ घूमने पहुंचे आमिर हम्जा बताते हैं कि हम यहीं पास में रहते हैं। उनको इल्म तक नहीं कि आज गालिब साहब की पैदाइश है। हम तो बस यूं ही ही घूमते हुए भतीजी को हवेली दिखाने लेकर आये थे।
हवेली के बड़े दरवाजे से एक परिवार हवेली के अंदर पहुंचा जा सकता है। करीने से सारी चीजें अपनी जगह रखी हैं। कुछ इस हालत में, जैसे देर से वहां कोई न आया हो। इसकी देख रेख करने वाले गार्ड बताते है कि आज हवेली बंद रहती है लेकिन ऑफिस से फोन आया कि आज गालिब का जन्मदिन है, इसी वजह से हवेली को खोल दिया जाए। इन्ही सब वजह से गालिब सिर्फ लोगो की कहावत मे ही जिंदा रह गए। आखिर में लोग गालिब को भूल जाते है।
विस्तार
‘पूछते हैं वो कि गालिब कौन है, कोई बतलाओ कि हम बतलाएं क्या।’ अपने वक्त में गालिब ने शायद इसे मजाक में कहा होगा, लेकिन आज बल्लीमरान में मौजूद मिर्जा गालिब की हवेली की माकूल हकीकत बयां कर रहा है। ख्याल उनको भी नहीं कि गालिब की सोमवार यौम-ए-पैदाइश थी, जो दूर-दराज से हवेली में घूमने पहुंचे थे और वह भी मशहूर शायर को भुला बैठे हैं, जो हवेली के पड़ोस में ही बैठे हैं। जश्न मनने की जगह वहां हर ओर वीरानगी सी छाई हुई थी। हवेली के अंदर तो उनकी किताबें, गालिब का बुत, कपड़े, शतरंज और चौसा और हुक्का समेत दूसरी दैनिक इस्तेमाल वाली चीजें करीने से सजाकर रखी थी।
हवेली के दरवाजे तो खुले थे, लेकिन कोविड की वजह से गालिब के जन्म दिन पर वहां कोई आयोजन नहीं रखा गया था। अपनी भतीजी के साथ घूमने पहुंचे आमिर हम्जा बताते हैं कि हम यहीं पास में रहते हैं। उनको इल्म तक नहीं कि आज गालिब साहब की पैदाइश है। हम तो बस यूं ही ही घूमते हुए भतीजी को हवेली दिखाने लेकर आये थे।
हवेली के बड़े दरवाजे से एक परिवार हवेली के अंदर पहुंचा जा सकता है। करीने से सारी चीजें अपनी जगह रखी हैं। कुछ इस हालत में, जैसे देर से वहां कोई न आया हो। इसकी देख रेख करने वाले गार्ड बताते है कि आज हवेली बंद रहती है लेकिन ऑफिस से फोन आया कि आज गालिब का जन्मदिन है, इसी वजह से हवेली को खोल दिया जाए। इन्ही सब वजह से गालिब सिर्फ लोगो की कहावत मे ही जिंदा रह गए। आखिर में लोग गालिब को भूल जाते है।
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