Supeme Court on Tosha Company News : सुप्रीम कोर्ट की ‘सुनवाई नहीं तो जवाब दो’ फटकार से जाग सकता है ग्रेटर नोएडा की अटकी ‘लाइफलाइन सड़क’ का भाग्य, तोशा कंपनी को लगेगा बड़ा झटका, इलाहाबाद हाईकोर्ट को देनी होगी सफाई!

ग्रेटर नोएडा वेस्ट, रफ्तार टुडे ब्यूरो रिपोर्ट
ग्रेटर नोएडा वेस्ट की जनता को सालों से जिस सड़क का इंतज़ार है, वह अब बन सकती है। और इसकी नींव पड़ी है सुप्रीम कोर्ट की उस ऐतिहासिक टिप्पणी से, जिसमें अदालतों द्वारा फैसले सुरक्षित रखकर वर्षों तक सुनवाई न करने की परंपरा को ‘परेशान करने वाली’ बताया गया है। यह टिप्पणी सीधे तौर पर तोशा कंपनी के केस से जुड़ी नहीं है, लेकिन इससे जुड़े परिणाम अब ग्रेटर नोएडा वेस्ट के नागरिकों की उम्मीदें जगा रहे हैं।
तोशा कंपनी की ज़मीन पर रुकी है जनता की ‘लाइफलाइन’
ग्रेटर नोएडा वेस्ट की एक महत्वपूर्ण सड़क जो तिलपता चौक से देवल गांव की ओर जाती है, वर्ष 2015-16 से लगभग 200 मीटर के हिस्से पर अटकी हुई है। यह अवरोध इसलिए है क्योंकि तोशा इंटरनेशनल कंपनी ने दावा किया कि यह ज़मीन उनकी मिल्कियत है, जबकि ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण इसे सार्वजनिक उपयोग यानी सड़क के निर्माण के लिए अधिग्रहित करना चाहता था। लेकिन मामला फंसा और इलाहाबाद हाईकोर्ट में स्टेटस को का आदेश पारित कर दिया गया, जिससे न तो सड़क बन सकी और न ही समाधान निकल पाया।
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश – ‘जवाब दो क्यों नहीं दिया फैसला?’
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ – जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस कोटेश्वर सिंह ने झारखंड हाईकोर्ट के एक मामले में तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि कोई अदालत वर्षों तक फैसला सुरक्षित रखती है और उसे नहीं सुनाती, तो यह न केवल न्याय की प्रक्रिया को बाधित करता है बल्कि जनता को भी गंभीर नुकसान पहुंचाता है।
सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी हाईकोर्ट को आदेश दिया है कि वे 31 जनवरी 2025 तक यह रिपोर्ट दें कि कितने मामलों में फैसला सुरक्षित रखा गया है, और वे कौन-कौन से केस हैं। इसके साथ ही यह स्पष्ट करना भी अनिवार्य किया गया है कि कौन से मामले एकल पीठ के हैं और कौन से खंडपीठ के।

तोशा केस पर कैसे पड़ेगा असर?
तोशा इंटरनेशनल बनाम ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण केस 2016 से इलाहाबाद हाईकोर्ट में रिजर्व पड़ा है। अदालत ने इस पर स्टेटस को जारी रखते हुए कोई स्पष्ट निर्णय नहीं दिया है। अब सुप्रीम कोर्ट की इस सख्ती के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट को इस केस की जानकारी रिपोर्ट में शामिल करनी पड़ेगी और यह बताना होगा कि इतने वर्षों तक फैसला क्यों रोका गया।
यानी अब कोर्ट और प्राधिकरण दोनों को यह सवालों का सामना करना होगा कि सड़क निर्माण में जनता को क्यों रोका गया, जबकि मामला दीर्घकाल से लटका हुआ है?
प्राधिकरण की निष्क्रियता भी सवालों के घेरे में
2016 से 2025 तक इस प्रकरण में ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की चुप्पी और निष्क्रियता भी अब प्रश्नों के घेरे में है।
- क्यों प्राधिकरण ने जनहित के इस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने के लिए कोर्ट में स्पष्ट अर्जी नहीं डाली?
- क्यों ‘कंपलसरी एक्विजिशन’ के अधिकारों का उपयोग नहीं किया, जो सरकार को रेलवे, सड़क, या अन्य सार्वजनिक कार्यों के लिए मिलता है?
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर प्राधिकरण समय रहते सक्रिय होता, तो यह सड़क कई वर्षों पहले बन चुकी होती, और लाखों लोगों को राहत मिलती।
तोशा कंपनी क्या चाहती है?
तोशा इंटरनेशनल कंपनी की ज़मीन उनकी निजी संपत्ति है और प्राधिकरण ने उचित प्रक्रिया के बिना अधिग्रहण करने की कोशिश की। हालांकि दस्तावेज़ बताते हैं कि कोर्ट ने दोनों पक्षों को सेटलमेंट की कोशिश करने को कहा था, लेकिन कोई ठोस प्रयास नहीं हुआ।
अब जब सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी सुनवाई में देरी को अनुचित ठहराया है, तो यह माना जा रहा है कि इस केस में भी हाईकोर्ट को अपनी चुप्पी तोड़नी पड़ेगी।
क्या बरसात से पहले बन सकती है सड़क?
अब उम्मीद जताई जा रही है कि प्राधिकरण कम से कम एक अस्थाई सड़क निर्माण की ओर कदम बढ़ा सकता है।
या फिर सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश की रोशनी में इलाहाबाद हाईकोर्ट में स्टेटस को हटवाने की अर्जी भी दायर की जा सकती है, जिससे अदालत को मजबूरीवश अब निर्णय सुनाना पड़े।

ग्रेटर नोएडा वेस्ट के लाखों निवासियों के लिए राहत की खबर
इस सड़क के बनते ही सेक्टर 1, 2, 3, 16B, 12, टेकज़ोन जैसे इलाकों को तिलपता, देवल, यमुना एक्सप्रेसवे और परी चौक से सीधा और कम दूरी वाला संपर्क मिलेगा। अभी लोग कई किलोमीटर लंबा रास्ता तय कर रहे हैं, जिसका सीधा असर ट्रैफिक, समय और ईंधन पर पड़ता है।
यह सड़क न केवल जन सुविधा से जुड़ी है बल्कि क्षेत्र के आर्थिक और रियल एस्टेट विकास से भी गहराई से जुड़ी है।
निष्कर्ष: न्याय में देरी, न्याय से इनकार के बराबर?
सुप्रीम कोर्ट की यह पहल देश की न्यायिक व्यवस्था के उस पक्ष को उजागर करती है, जिसमें ‘फैसले सुरक्षित’ के नाम पर वर्षों तक लोगों को अटकाकर रखा जाता है। ग्रेटर नोएडा वेस्ट की यह ‘लाइफलाइन सड़क’ अब देश की सर्वोच्च अदालत के एक सख्त रुख की वजह से बन सकेगी, यही आशा स्थानीय जनता में फिर से जगी है।
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