
नोएडा, रफ़्तार टुडे।
नोएडा के भंगेल-सलारपुर क्षेत्र की एक बहुचर्चित ज़मीन अब एक बार फिर सुर्खियों में है — लेकिन इस बार कारण है रिकॉर्ड गायब होना, शासनादेश की अनदेखी और बहुमंजिला इमारतों का ‘अवैध’ उदय। 20 हेक्टेयर से अधिक भूमि, जो महर्षि आश्रम ट्रस्ट से जुड़ी बताई जाती है, उस पर अब जमीन का स्वामित्व, वैधता और इस्तेमाल जैसे सवालों ने पूरे प्रशासनिक ढांचे को हिला कर रख दिया है।
ज़मीन कौन सी, विवाद किसका?
यह ज़मीन सालों पहले महर्षि महेश योगी के आश्रम और उससे जुड़ी संस्थाओं को साधना केंद्र स्थापित करने के लिए आवंटित की गई थी। सलारपुर और भंगेल गांवों के बीच स्थित यह भूमि करीब 21.5 हेक्टेयर में फैली हुई है। लेकिन वक्त के साथ यहां मामला ‘आस्था’ से ‘व्यवसाय’ तक पहुंच गया।
आरोप हैं कि भूमाफियाओं ने फर्जी दस्तावेज तैयार कर इस ज़मीन को बेचने की कोशिश की, कुछ हिस्सों पर अवैध कॉलोनियां भी बसा दी गईं। और अब तो यह भी सामने आ चुका है कि नोएडा अथॉरिटी ने इस भूमि का 7 हेक्टेयर हिस्सा निजी बिल्डरों को बेच दिया, जिन पर आज बहुमंजिला इमारतें खड़ी हैं!
न दस्तावेज़, न मंजूरी – फिर कैसे हुआ ट्रांसफर?
इस पूरे प्रकरण में राजस्व विभाग की भूमिका सबसे रहस्यमयी बनी हुई है। विभाग ने साफ किया है कि उनके पास ऐसा कोई दस्तावेज मौजूद नहीं, जिससे यह सिद्ध किया जा सके कि नोएडा अथॉरिटी ने वैध तरीके से इस भूमि को अधिग्रहित किया था या उसे उद्योग विभाग को हस्तांतरित किया गया था।क्या बिना वैध स्वामित्व के जमीन बेची जा सकती है?
2022 में उत्तर प्रदेश शासन ने एक स्पष्ट आदेश जारी किया था कि यदि कोई संस्था 5.05 हेक्टेयर से अधिक भूमि खरीदती है, तो उसे राजस्व विभाग से अनुमोदन लेना होगा और सर्किल रेट का 10% शुल्क अदा करना होगा।
लेकिन मार्च 2024 में 11 संस्थाओं को बिना शुल्क चुकाए और बिना किसी अधिसूचना के 21.5721 हेक्टेयर भूमि लौटाई गई। अब सवाल यह उठता है कि राजस्व विभाग की सहमति के बिना यह ज़मीन किस आधार पर वापस की गई?
7 हेक्टेयर पर बहुमंजिला इमारतें – कौन है असली मालिक?
स्थानीय सूत्रों के अनुसार, नोएडा अथॉरिटी ने जिस 7 हेक्टेयर भूमि को निजी बिल्डरों को सौंपा, वह अब मल्टीस्टोरी टॉवर में तब्दील हो चुकी है। जब मार्च 2024 में संस्थाओं के पक्ष में जमीन का म्यूटेशन हुआ, तब इस तथ्य का पर्दाफाश हुआ कि उक्त जमीन पहले ही बेच दी गई थी!
अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि —
- अगर जमीन ट्रस्ट की थी तो बिल्डरों को कैसे मिली?
- और अगर अथॉरिटी ने बेची तो किस आधार पर?
- क्या उस समय कोई वैध स्वामित्व प्रमाण पत्र था अथॉरिटी के पास?

कानूनी घेरे में फंसी अथॉरिटी, जल्द देना होगा जवाब
इस पूरे मामले में अब नोएडा अथॉरिटी पर गंभीर प्रशासनिक लापरवाही के आरोप लग रहे हैं। यदि अथॉरिटी जमीन के हस्तांतरण और स्वामित्व से संबंधित वैध दस्तावेज नहीं प्रस्तुत कर पाई, तो यह पूरा हस्तांतरण शून्य और अवैध घोषित किया जा सकता है।
राजस्व विभाग की मानें तो, “यदि कोई वैध अधिग्रहण दस्तावेज अथॉरिटी के पास नहीं है, तो यह जमीन मूल संस्था यानी महर्षि आश्रम से जुड़ी 11 संस्थाओं को वापस दी जा सकती है।”
भूमि विवाद या भ्रष्टाचार का पर्दाफाश?
भूमि अधिग्रहण, म्यूटेशन, ट्रांसफर और निर्माण जैसी तमाम प्रक्रियाओं में एक भी पारदर्शी दस्तावेज का ना होना, पूरे सिस्टम पर सवाल खड़ा करता है। स्थानीय नागरिक और सामाजिक संगठन भी यह जानना चाह रहे हैं कि क्या नोएडा के विकास के नाम पर की जा रही ये ज़मीन सौदेबाज़ी पूरी तरह नियमों के खिलाफ हो रही है?
राजनीतिक और सामाजिक हलकों में बढ़ी बेचैनी
जैसे-जैसे यह मामला तूल पकड़ रहा है, विपक्षी नेता और आरटीआई कार्यकर्ता भी सक्रिय हो गए हैं। बहुत जल्द यह मुद्दा नोएडा अथॉरिटी और जिला प्रशासन के बीच कानूनी और सार्वजनिक संघर्ष में बदल सकता है।
टाउन प्लानिंग, भूमि प्रबंधन और शासनादेश पालन जैसे मामलों में पारदर्शिता की भारी कमी नोएडा जैसे नियोजित शहर की विश्वसनीयता पर गंभीर धब्बा लगा रही है।
निष्कर्ष: एक विवाद, कई प्रश्न, जवाबदेही अनिवार्य
नोएडा में जमीन विवाद कोई नई बात नहीं, लेकिन यह केस प्रक्रियाओं की धज्जियां उड़ाए जाने का जीता-जागता उदाहरण बनता जा रहा है। अगर नोएडा अथॉरिटी दस्तावेज नहीं दे पाती है, तो आने वाले समय में यह विवाद न्यायिक जांच और राजनैतिक उबाल का कारण बन सकता है।
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