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Galgotia University News : भारतीय ज्ञान, ध्यान और चेतना का संगम, गलगोटिया विश्वविद्यालय में आध्यात्मिक गुरू ‘दाजी’ ने किया ‘भारतीय ज्ञान परंपरा केंद्र’ का उद्घाटन, छात्रों को दिया आत्मविकास का मंत्र!

सीईओ ध्रुव गलगोटिया ने कहा कि “दाजी ने समाज को जिस तरह ध्यान और चेतना की राह पर लाने की कोशिश की है, वह अनुकरणीय है। छात्रों को क्रिटिकल थिंकिंग और जीवन मूल्यों के लिए ध्यान को अपनाना चाहिए।”

📍 ग्रेटर नोएडा, रफ्तार टुडे।
आज का युग जब तकनीक और प्रतिस्पर्धा से भरा हुआ है, ऐसे में अंतर्मन की शांति, आत्मचिंतन और भारतीय ज्ञान परंपरा के पुनरुत्थान की जरूरत और भी बढ़ जाती है। इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए गलगोटिया विश्वविद्यालय में ‘भारतीय ज्ञान परंपरा केंद्र’ का भव्य शुभारंभ हुआ।
मुख्य अतिथि के रूप में पधारे विश्वविख्यात आध्यात्मिक गुरु कमलेश डी. पटेल (दाजी) ने न केवल केंद्र का उद्घाटन किया, बल्कि अपनी संवादपूर्ण शैली में भारतीय दर्शन, चेतना, ध्यान और वैज्ञानिक सोच पर गहन विचार प्रस्तुत किए।


वेद-उपनिषद से लेकर न्यूरो-साइंस तक: दाजी का संवाद ज्ञान से सराबोर

गलगोटिया विश्वविद्यालय के एआईडीएस ब्लॉक की लाइब्रेरी में आयोजित इस ऐतिहासिक कार्यक्रम में दाजी ने जैसे ही माइक संभाला, माहौल पूरी तरह ध्यानमय हो गया।
उन्होंने अपने संवाद की शुरुआत वेद, उपनिषद, भगवद्गीता और पुराणों के उदाहरणों से की। विशेषकर भगवद्गीता के अध्याय 2 के श्लोक 10 का उल्लेख करते हुए उन्होंने आत्मा की अमरता और जीवन के चक्र को बालक के उदाहरण से समझाया।


चेतना और अवचेतना की वैज्ञानिक व्याख्या

दाजी ने बताया कि हमारी चेतना और अवचेतना ही हमारे विचारों और निर्णयों को दिशा देती है। अगर हमें अपने जीवन में वास्तविक बदलाव चाहिए, तो पहले चेतना के स्तर को ऊंचा उठाना होगा, जो सिर्फ ध्यान और आध्यात्मिक क्रियाओं से संभव है।
उन्होंने इसे विस्तार से समझाते हुए कहा:

“आपके विचार या तो सृजनात्मक हो सकते हैं या विध्वंसक। निर्णय आप पर है कि आप किस दिशा में जाना चाहते हैं।”


ध्यान और विज्ञान: साथ-साथ चलते रास्ते

दाजी ने आइंस्टाइन, मेंडलेव और बेंजीन की खोजों का उदाहरण देते हुए बताया कि ध्यान और शांत माहौल ने इन वैज्ञानिकों को महान विचारों तक पहुंचाया।
उनका यह तर्क यह साबित करता है कि विज्ञान और अध्यात्म विरोधी नहीं, बल्कि पूरक हैं


गर्भस्थ शिशु पर चेतना का प्रभाव

अपने गहन संवाद के दौरान दाजी ने यह भी बताया कि एक मां की मानसिक स्थिति शिशु के मस्तिष्क विकास पर प्रभाव डालती है। उन्होंने इसे वैज्ञानिक आधार पर सिद्ध बताते हुए कहा कि तनावग्रस्त मां का बच्चा मानसिक रूप से कमजोर हो सकता है
इस संदर्भ में उन्होंने “The Biology of Belief” नामक प्रसिद्ध पुस्तक का उल्लेख किया और छात्रों को इसे पढ़ने की सलाह दी।


छात्रों से सीधा संवाद और 20 मिनट का ध्यान सत्र

कार्यक्रम के अंत में दाजी ने 20 मिनट का ध्यान सत्र करवाया जिसमें छात्र, शिक्षक और अतिथि एक साथ शामिल हुए।
ध्यान के बाद उन्होंने छात्रों के सवालों के जवाब भी दिए जैसे:

  • पश्चिमी दर्शन और भारतीय दर्शन में क्या अंतर है?
  • किस तरह विचार चेतना को प्रभावित करते हैं?

उनका जवाब स्पष्ट था — “विचारों की गुणवत्ता ही जीवन की दिशा तय करती है”।


छात्रों की अनूठी प्रस्तुति: बंद आंखों से दिखा दिया कौशल

कार्यक्रम में हर्टफुल कैंपस ऐप टीम से जुड़े छात्रों ने अपनी स्किल्स का प्रदर्शन किया। कुछ छात्रों ने आंखों पर पट्टी बांधकर सेंसरी स्किल्स को प्रदर्शित किया, जिससे यह सिद्ध हुआ कि सही ध्यान और साधना से इंद्रियां अधिक सक्रिय और सटीक हो सकती हैं।


विश्वविद्यालय प्रशासन ने दिया ध्यान और चेतना को महत्व

कुलाधिपति श्री सुनील गलगोटिया ने अपने स्वागत भाषण में कहा:

“हमें भारतीय संस्कृति और ज्ञान परंपरा को विज्ञान से जोड़ते हुए छात्रों के सर्वांगीण विकास की दिशा में काम करना चाहिए। स्वामी विवेकानंद के विचार आज भी युवाओं को प्रेरित करते हैं।”

वहीं सीईओ डॉ. ध्रुव गलगोटिया ने कहा:

“दाजी ने समाज को जिस तरह ध्यान और चेतना की राह पर लाने की कोशिश की है, वह अनुकरणीय है। छात्रों को क्रिटिकल थिंकिंग और जीवन मूल्यों के लिए ध्यान को अपनाना चाहिए।”


‘भारतीय ज्ञान परंपरा केंद्र’: आत्मविकास और सांस्कृतिक चेतना का नया केंद्र

गलगोटिया विश्वविद्यालय में खोला गया यह केंद्र न केवल प्राचीन भारतीय ग्रंथों, ध्यान विधियों और योगिक परंपराओं के अध्ययन का मंच बनेगा, बल्कि आज के छात्रों को मानसिक मजबूती और संतुलन प्रदान करने का भी कार्य करेगा।


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