Devta News : जिन्होंने विचारों से रचा इतिहास, पंडित सत्यवान शर्मा जी की 22वीं पुण्यतिथि पर क्षेत्र ने झुककर दी श्रद्धांजलि, "स्पष्टता जिनकी पहचान थी, निर्भीकता जिनका आभूषण, आज भी जनमानस के हृदय में अमर हैं देवटा के यशस्वी पुरुष!"

दादरी, देवटा, रफ़्तार टुडे।।
आज जब पूरा क्षेत्र आधुनिकता की अंधी दौड़ में भाग रहा है, तब देवटा गांव की पवित्र माटी से जन्मे एक ऐसे अद्वितीय व्यक्तित्व को याद किया जा रहा है, जिनके जीवन मूल्य, सोच और कर्म आज भी लोगों को राह दिखाते हैं। पंडित सत्यवान शर्मा — एक ऐसा नाम, जो केवल किसी व्यक्ति का नहीं, बल्कि एक युग की पहचान है।
आज उनकी 22वीं पुण्यतिथि पर देवटा गांव से लेकर पूरे दादरी क्षेत्र तक भावनाओं की लहरें उमड़ पड़ी हैं। श्रद्धा, स्मृति और सम्मान से भरे शब्दों के साथ उन्हें याद किया जा रहा है।
पारिवारिक विरासत से राष्ट्र और समाज तक का सफर
पंडित सत्यवान शर्मा जी का जन्म ब्राह्मण परंपरा के प्रख्यात और विद्वान परिवार में हुआ था। वे 1857 की क्रांति के अमर बलिदानी पंडित विष्णु शर्मा के भतीजे थे। यह वही ऐतिहासिक विरासत है जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की पहली चिंगारी में योगदान कर चुकी है।
उनके पिता स्व. गुरु दत्त शर्मा और दादा स्व. गंगा शहाय पटवारी, जिन्हें रियासत काल के ‘पटवारी का बाग’ (दादरी-गाजियाबाद GT रोड) के नाम से जाना जाता था — इनकी छाया में पंडित सत्यवान ने न सिर्फ पारिवारिक संस्कारों को आत्मसात किया, बल्कि उन्हें समाज में क्रियाशीलता के रूप में लागू भी किया।
साफ-साफ बोलने की कला के साथ सामाजिक समीकरणों के ज्ञाता
पंडित सत्यवान शर्मा के बारे में कहा जाता है कि वे बेबाक अंदाज के धनी थे। वे जो कहते थे, खुले मंच से कहते थे — बिना किसी भय, लालच या झिझक के।
उनका अंदाज़ ही उनकी सबसे बड़ी पहचान था:
“सच बोलो, भले लोग नाराज़ हो जाएं, लेकिन वक्त खुद गवाही देगा कि तुम गलत नहीं थे।“
वे समाज के हर वर्ग में सम्मान और लोकप्रियता प्राप्त कर चुके थे — चाहे वह राजनैतिक गलियारे हों या ग्रामीण पंचायतें, युवा संगठन हों या किसान मोर्चे।
राजनीतिक चाणक्य और सामाजिक नेतृत्व के पुरोधा
पंडित सत्यवान शर्मा जी का राजनीतिक दायरा बहुत व्यापक था। वे कई बार स्थानीय निकाय चुनावों, पंचायत, और सामाजिक संघर्षों में निर्णायक भूमिका निभा चुके थे।
उनकी खासियत यह थी कि वे राजनीति को सेवा का माध्यम मानते थे, न कि स्वार्थपूर्ति का साधन।
वे कहते थे –
“राजनीति में अगर चरित्र गिर जाए, तो वो व्यवस्था को घुन की तरह खा जाती है।“
उनकी नीतियां और निर्णय आज भी देवटा से लेकर दादरी तक आदर्श माने जाते हैं।
“यारों के यार”, जिनकी मित्रता थी बिना स्वार्थ के
क्षेत्र में आज भी लोग उन्हें “यारों के यार” के रूप में याद करते हैं। चाहे कोई गरीब किसान हो, बेरोजगार युवक या गांव का बुजुर्ग — हर वर्ग का भरोसा उन्हें हासिल था।
उनकी मित्रता किसी पद, जाति या धर्म की मोहताज नहीं थी।
वे अपने मित्रों के लिए कभी भी और कहीं भी खड़े हो जाते थे — चाहे समय रात का हो या मुद्दा विवादास्पद।
“देवटा की माटी का लाल” — जो गांव को बना गया गर्व का प्रतीक
आज जब देवटा गांव का नाम लिया जाता है, तो वहां के लोग गर्व से कहते हैं — “यह वही गांव है जहाँ पंडित सत्यवान शर्मा जी ने जन्म लिया था।”
उन्होंने अपने गांव को केवल मानचित्र पर नहीं, बल्कि जनमानस में भी पहचान दिलाई।
गांव के विकास, शिक्षा, जल संरक्षण, और पंचायत व्यवस्था के लिए उन्होंने कई निर्णायक पहल की थीं, जो आज भी उदाहरण स्वरूप मानी जाती हैं।
पुण्यतिथि पर भावभीनी श्रद्धांजलि – गांव से लेकर शहर तक की आंखें हुईं नम
उनकी 22वीं पुण्यतिथि के अवसर पर देवटा गांव में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन हुआ, जिसमें क्षेत्र के वरिष्ठ नागरिकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, युवाओं और महिलाओं ने बढ़-चढ़कर भाग लिया।
सभा में वक्ताओं ने उनके जीवन को याद करते हुए कहा –
“उन्होंने नश्वर देह भले ही त्याग दी हो, लेकिन उनके विचार, उनके बोलने का ढंग, उनका मार्गदर्शन आज भी हमें भीतर से आंदोलित करता है।“
नवयुवकों के लिए प्रेरणा – विचारों से चलने वाले एक अद्वितीय पथप्रदर्शक
आज की युवा पीढ़ी जब उन्हें जानती है, तो केवल किस्सों के माध्यम से नहीं, बल्कि उनके विचारों और विरासतों से भी सीखती है।
वे युवाओं से कहते थे:
“विद्रोह करना गलत नहीं, अगर वह समाज के भले के लिए हो। सवाल करना सीखो, लेकिन पहले खुद को जवाब देने लायक बनाओ।“
“यादें कभी नहीं मरतीं” – फोटो फ्रेम में नहीं, दिलों में बसते हैं सत्यवान जी
उनकी एक मुस्कान, एक निर्णय, एक हस्ताक्षर — आज भी लोगों के पास स्मृति चिह्नों की तरह जीवित हैं।
घर के किसी कोने में उनकी तस्वीर, गांव के किसी चौराहे पर उनके विचारों की चर्चा, और किसी सामाजिक विवाद में उनकी मिसाल — ये सब आज भी ज़िंदा हैं।
निष्कर्ष – जिनकी ‘सत्यवाणी’ आज भी है प्रासंगिक
पंडित सत्यवान शर्मा जी केवल बीते कल के नहीं, आज और आने वाले कल के मार्गदर्शक हैं।
उनका जीवन एक खुली किताब है, जो सत्य, स्पष्टता, सेवा और नेतृत्व से भरी हुई है।
उनकी पुण्यतिथि पर केवल फूल चढ़ाना पर्याप्त नहीं — उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि तभी होगी जब हम उनके आदर्शों को अपने जीवन में उतारें।
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