UPSC Result 2022: चूल्हे-चौके से सिविल सेवा के शीर्ष तक, लड़कियां किसी भी मामले में कमतर नहीं
श्रुति शर्मा, अंकिता अग्रवाल और गामिनी सिंगला ने सिविल सेवा परीक्षा में क्रमश: प्रथम, द्वितीय और तृतीय रैंक प्राप्त किया
ग्रेटर नोएडा, रफ्तार टुडे। चूल्हे-चौके से सिविल सेवा के शीर्ष तक, लड़कियां किसी भी मामले में कमतर नहीं है। श्रुति शर्मा, अंकिता अग्रवाल और गामिनी सिंगला ने सिविल सेवा परीक्षा में क्रमश: प्रथम, द्वितीय और तृतीय रैंक प्राप्त किया है।
टाप-10 में प्रथम तीन स्थानों पर नारी शक्ति का बोलबाला रहा। ये तीनों आने वाले समय में हजारों नवयुवतियों के लिए प्रेरणा की स्रोत बनेंगी। उनमें इस बात का विश्वास पैदा करेंगी कि भारत जैसे परंपरागत समाज में भी अपनी प्रतिभा और लगन की बदौलत स्त्रियां नई ऊंचाइयों तक पहुंच सकती हैं।
शिक्षा का परिदृश्य बहुत संतोषजनक नहीं है। हकीकत यह है देश में 52 फीसद लड़कियां स्कूल के स्तर पर ही पढ़ाई छोड़ देती हैं। अनुसूचित जाति और जनजाति की करीब 68 प्रतिशत लड़कियां स्कूल में दाखिला तो लेती हैं, लेकिन पढ़ाई पूरी करने से पहले ही स्कूल छोड़ देती हैं।
ज्यादातर लड़कियों को शिक्षा और दूसरे क्षेत्रों में आगे बढ़ने के उतने मौके नहीं मिलते, जितने कि लड़कों को मिलते हैं। उनमें सामाजिक-आर्थिक और भावनात्मक रूप से उतना निवेश नहीं किया जाता, जितना कि लड़कों पर किया जाता है।
परिणामस्वरूप लड़कियों में आगे बढ़ने का आत्मविश्वास और बंधनों से जूझने की हिम्मत ही विकसित नहीं होती।
किसी बच्चे से अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद की जाती है, तो फिर उसकी आत्मछवि में और सुधार आता है, लेकिन लड़कियों के साथ तो प्राय: उल्टा होता है। स्कूलों या घर में उनके काम की सराहना कम होती है, उन्हें शाबाशी कम मिलती है, जिससे उनकी अस्मिता सिमट कर रह जाती है। इसका उनके प्रदर्शन पर नकारात्मक असर होता है। बिहार और उत्तर प्रदेश में किए गए एक शोध में यह तथ्य सामने आया है कि लड़कियों की पढ़ाई में उनके अभिभावक ही बाधक हैं।
समाज में असुरक्षित माहौल एवं विभिन्न कुरीतियों के कारण आठवीं या उससे बड़ी कक्षा की पढ़ाई के लिए उनके परिवार वाले मना करते हैं। कई लड़कियों को कम उम्र में शादी होने के कारण बीच में ही पढ़ाई छोड़नी पड़ती है। व्यक्ति हो या देश, उसकी सफलता इसमें मानी जाती है कि उसमें निहित संभावनाएं उभर कर आएं और इनका भरपूर उपयोग हो। यदि कार्यबल में महिलाओं के लिए नए द्वार खुलते हैं तो इससे तमाम महिलाओं में निहित संभावनाओं को फलीभूत करने का मार्ग प्रशस्त होगा और हम अपने राष्ट्र की आबादी में मौजूद संभावनाओं का लाभ उठा सकेंगे। इसके लिए सरकार और निजी क्षेत्र, दोनों को नए सिरे से आगे आना होगा।
लड़कियों की यह कामयाबी सरकार के ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ अभियान को भी यकीनन बल देगी। इससे समाज में कमजोर पड़ रही वो सोच और भी बेदम होगा कि लड़कियां सिर्फ चूल्हे-चौके का काम करने के लिए होती हैं। इससे तमाम मां-बाप तक संदेश पहुंचेगा कि लड़कियां किसी भी मामले में कमतर नहीं हैं।