President Election Vipaksh News : विपक्ष ने यशवंत सिन्हा को ही क्यों बनाया राष्ट्रपति का उम्मीदवार? विपक्षी के सारे दल एक हो जाएंगे उनके नाम पर
दिल्ली, रफ्तार टुडे। भाजपा के पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा विपक्ष की ओर से राष्ट्रपति के उम्मीदवार होंगे। विपक्ष की बैठक के बाद कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इसका एलान किया। तमाम उठापठक के बाद विपक्ष ने आखिर यशवंत सिन्हा पर ही क्यों दांव लगाया? चुनाव में क्या होगा? यशवंत के पक्ष में कितनी पार्टियां देंगी वोट?
राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए विपक्ष ने 15 जून को पहली बार बैठक की। टीएमसी प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ये बैठक बुलाई थी। इसमें उन्होंने 22 विपक्षी दलों को न्यौता दिया था, हालांकि केवल 17 राजनीतिक पार्टियों के नेता शामिल हुए। दिल्ली और पंजाब की सत्ता संभाल रही आम आदमी पार्टी, तेलंगाना की टीआरएस, ओडिशा की बीजेडी, आंध्र प्रदेश की वाईएसआर कांग्रेस जैसी पार्टियों ने खुद को इस बैठक से अलग रखा।
तब इस बैठक में शरद पवार, एचडी देवेगौड़ा, फारूक अब्दुल्ला और गोपाल कृष्ण गांधी के नामों पर चर्चा हुई थी। पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा का नाम भी प्रस्तावित किया गया था। हालांकि एक के बाद एक पवार, देवेगौड़ा, अब्दुल्ला और गोपाल कृष्ण गांधी ने उम्मीदवार बनने से इंकार कर दिया। इसके बाद आज शरद पवार के घर पर विपक्ष की दूसरी बैठक हुई। इसमें टीएमसी ने फिर से यशवंत सिन्हा का नाम प्रस्तावित किया। जिसपर सभी दलों ने सहमति जता दी।
राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाए जाने से पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने टीएमसी से इस्तीफा दे दिया। ट्वीट कर उन्होंने कहा, राज्यसभा और फिर विधानपरिषद चुनावों में टीएमसी में जो सम्मान और प्रतिष्ठा दी, उसके लिए मैं ममता बनर्जी का आभारी हूं। अब समय आ गया है जब एक बड़े राष्ट्रीय उद्देश्य के लिए मुझे पार्टी से हटकर अधिक विपक्षी एकता के लिए काम करना चाहिए।
विपक्ष जिन-जन बड़े नामों पर चर्चा कर रहा था, सभी एक-एक करके इंकार करते जा रहे थे। ऐसे में विपक्ष के पास ज्यादा विकल्प नहीं बचे थे। अगर जल्द किसी के नाम पर सहमति नहीं बनती तो विपक्ष में और फूट पड़ने की आशंका थी। सिन्हा पहले से भी तैयार थे। यही कारण है कि अंतिम तौर पर उनके नाम पर मुहर लगा दी गई।
यशवंत सिन्हा बिहार से आते हैं। ऐसे में उनके नाम पर भाजपा की सहयोगी जेडीयू भी विपक्ष का समर्थन दे सकती है। दो बार ऐसा हो भी चुका है, जब नीतीश कुमार ने लीक से हटकर अपना समर्थन दिया। मसलन 2012 में जब प्रणब मुखर्जी यूपीए से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनाए गए तो नीतीश कुमार ने एनडीए का हिस्सा होते हुए भी प्रणब मुखर्जी को समर्थन दिया। वहीं, 2017 में नीतीश ने रामनाथ कोविंद को समर्थन दिया। उस वक्त रामनाथ कोविंद बिहार के राज्यपाल थे और उन्हें एनडीए ने प्रत्याशी बनाया था। खास बात ये है कि चुनाव के दौरान नीतीश यूपीए का हिस्सा थे।
यशवंत सिन्हा पुराने भाजपाई रहे हैं। इन दिनों वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के धुर विरोधी हैं। ऐसे में उनकी कोशिश होगी कि वह एनडीए और भाजपा में सेंध लगा सकें। इसके लिए वह पूरी कोशिश करेंगे। इसके साथ ही वह उन दलों को भी एकजुट करने की कोशिश करेंगे जिन्होंने अब तक विपक्ष से दूरी बनाकर रखी हुई है। इसमें बीजेडी, वाईएसआर कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, टीआरएस शामिल है। इनसे भी उन्हें समर्थन मिलने की उम्मीद है।