भूजल दोहन पर नियंत्रण केवल मीटरिंग से संभव, चालान काटने से नहीं होगा कोई समाधान, सिविल सोसाइटीज़ की मदद से चलाया जाए एक जन आंदोलन
गाजियाबाद, रफ़्तार टुडे। शनिवार को भूजल दोहन पर नियंत्रण के लिए कॉंफडरेशन ऑफ आरडब्लूए उत्तर प्रदेश(कोरवा यूपी) एवं फ्लैट ओनर फेडरेशन गाजियाबाद के शीर्ष अधिकारियों की एक ऑनलाइन बैठक आयोजित की गई। बैठक में भाग लेने वाले सभी लोगों ने भूजल दोहन को रोकने के लिए अपने अपने सुझाव प्रस्तुत किये।
बैठक में फ्लैट ओनर फेडरेशन गाजियाबाद के चैयरमेन कर्नल तेजेन्द्र पाल त्यागी ने कहा कि लगातार हो रहे भूजल दोहन के कारण गाजियाबाद रेड जोन में आ चुका है। औसतन पिछले 7 वर्षों में भूगर्भ में मौजूद जल का स्तर 7 मीटर नीचे चला गया है।
उत्तर प्रदेश ग्राउंड वाटर एक्ट-2019 की धारा 12 के अनुसार औद्योगिक और व्यापारिक इकाइयों को भूजल दोहन का अनापत्ति प्रमाण पत्र नही दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि गाजियाबाद की करीब 30 हजार छोटी-बड़ी फैक्ट्रियों और दो हजार मेरिज होम की मॉनिटरिंग प्रदूषण विभाग के महज तीन अधिकारी नहीं कर सकते। कोरवा-यूपी के अध्यक्ष डॉ पवन कौशिक ने बताया कि गाजियाबाद में करीब 400 बहुमंजिला इमारते, 200 आर डब्लू एस, होटल और अस्पताल हैं। इन सबकी ठीक प्रकार से जल दोहन की मीटरिंग की जाए तो हो इसका दोहन नियंत्रित किया जा सकता है।
कोरवा-यूपी के मुख्य सलाहकार डॉ आर के आर्या ने कहा की कुछ मैरिज होम्स या फैक्ट्रियों को नोटिस दे देना या चालान काट देना पर्याप्त नहीं है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के तीन अधिकारी इन सभी संस्थानों में हो रहे भू-जल दोहन का भौतिक परीक्षण नहीं कर सकते। इसलिए गाजियाबाद की सिविल सोसाइटी के चुनिंदा प्रतिनिधियों को इस जानकारी को जुटाने मे भागीदार बनाया जाए, हम कॉर्डिनेट करने को तैयार है। आई सी जिंदल और एम एल वर्मा ने कहा कि सबसे पहले कौन कितने भू-जल का दोहन कर रहा है यह पता लगाना जरूरी है। फिर उसी आनुपातिक दृष्टि से पता लगाया जा सकता है कि ज्यादा पानी की बर्बाद कौन कर रहा है। जहां भी भू-जल दोहन हो रहा है वहाँ पहले चरण मे मीटरिंग की जाए।
बैठक में डॉ मधु सिंह, एड. अंशु त्यागी, पुनीत गुप्ता, राम अवतार पचौरी और गौरव सेनानी ज्ञान सिंह ने भी बैठक में अपने विचार रखे और कहा कि भू-जल और सतह के जल की बर्बादी को रोकने के लिए जब मीटरिंग की जाएगी तो जागरूकता भी आएगी और सिविल सोसाइटी की भागीदारी से यह कार्यक्रम एक जन आंदोलन बन जाएगा। नल से जल तब ही संभव है जब भू-जल और सतह का जल पर्याप्त मात्रा मे उपलब्ध हो।