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Haladwani News : ग्रेटर नोएडा के हल्द्वानी में बन रहा अवैध निर्माणों का गढ़, क्या शाहबेरी जैसी गलती फिर से दोहराई जा रही है?, प्रशासन पर उठते गंभीर सवाल, प्राधिकरण की निष्क्रियता, संभावित मिलीभगत, क्यों चुप हैं अफसर?

ग्रेटर नोएडा, रफ़्तार टुडे। ग्रेटर नोएडा में हल्द्वानी गांव में बड़े पैमाने पर अवैध निर्माण की खबर ने एक बार फिर से प्रशासन की निष्क्रियता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। लगभग 20 बीघा जमीन पर बिना किसी स्वीकृति के गांव और शॉपिंग कॉम्प्लेक्स तैयार हो गया है। इस निर्माण को लेकर स्थानीय लोगों में भारी आक्रोश है, क्योंकि यह निर्माण प्राधिकरण की निगरानी से बाहर है और बिना नक्शा पास कराए ही खड़ा कर दिया गया है। इस क्षेत्र में नक्शा पास कराने की प्रक्रिया अनिवार्य है, लेकिन इसके बावजूद भी प्राधिकरण की आंखों से इस अवैध निर्माण को कैसे बचाया गया?

20 बीघा पर अवैध इमारतों का खड़ा होना: प्रशासन पर उठते गंभीर सवाल

स्थानीय लोगों ने दावा किया है कि इन इमारतों का नक्शा पास कराया गया है, लेकिन प्राधिकरण के दस्तावेजों में इस तरह का कोई रिकॉर्ड नहीं है। प्राधिकरण का कहना है कि गांवों में नक्शा पास करने का कोई प्रावधान नहीं है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह निर्माण पूरी तरह से अवैध है। यहां सवाल यह उठता है कि आखिर इतनी बड़ी परियोजना कैसे बिना किसी प्रशासनिक हस्तक्षेप के पूरी हो गई? खसरा नंबर 672, 673, और 674 पर हो रहे निर्माण की निगरानी से प्राधिकरण क्यों चूक गया?

प्राधिकरण की निष्क्रियता और संभावित मिलीभगत: क्यों चुप हैं अफसर?

ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों पर गंभीर आरोप लग रहे हैं कि वे इस अवैध निर्माण में या तो सीधे तौर पर शामिल हैं या फिर जानबूझकर अनदेखा कर रहे हैं। प्राधिकरण के कर्मचारी नियमित रूप से इलाके का दौरा करते हैं, लेकिन इस निर्माण पर उनकी नजर नहीं पड़ना संदेहजनक है। दिल्ली के लक्ष्मी नगर के एक व्यक्ति ने इस 20 बीघा जमीन पर इतनी बड़ी परियोजना तैयार कर दी और किसी भी सरकारी अधिकारी को इसकी भनक तक नहीं लगी। यह न केवल प्रशासनिक चूक को उजागर करता है, बल्कि अवैध निर्माण को संरक्षण दिए जाने का भी इशारा करता है।

शाहबेरी जैसा नया गढ़: इतिहास से सबक क्यों नहीं लेता प्रशासन?

यह घटना ग्रेटर नोएडा में शाहबेरी जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति की तरह दिख रही है, जहां अवैध निर्माणों के कारण कई हादसे हुए थे। शाहबेरी में निर्माण को लेकर प्रशासन की निष्क्रियता के कारण विवाद और हादसे बढ़ते चले गए थे, और अब हल्द्वानी गांव में भी उसी तरह की स्थिति पैदा हो रही है। इससे स्थानीय निवासियों में भारी आक्रोश है, और वे अवैध निर्माणों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।

स्थानीय निवासियों का आक्रोश: प्राधिकरण की जवाबदेही की मांग

स्थानीय लोगों का मानना है कि इन अवैध निर्माणों की तुरंत जांच होनी चाहिए और जो अधिकारी इस अवैध गतिविधि को नजरअंदाज कर रहे हैं, उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। अवैध निर्माणों से न केवल सुरक्षा खतरे बढ़ते हैं, बल्कि यह क्षेत्र के इन्फ्रास्ट्रक्चर पर भी अनावश्यक दबाव डालते हैं। इससे पहले भी इसी तरह की घटनाएं सामने आई हैं, लेकिन प्रशासन द्वारा समय पर कार्रवाई न होने के कारण यह सिलसिला जारी है। स्थानीय निवासियों का आरोप है कि अधिकारियों की मिलीभगत के बिना इतने बड़े पैमाने पर निर्माण संभव नहीं है।

अवैध निर्माण के सामाजिक और पर्यावरणीय खतरे

अवैध निर्माण सिर्फ एक कानूनी मुद्दा नहीं है, बल्कि इससे संबंधित सामाजिक और पर्यावरणीय समस्याएं भी उत्पन्न होती हैं। बिना योजना और स्वीकृति के की जा रही निर्माण गतिविधियां पानी, सीवेज और बिजली की आपूर्ति पर अनावश्यक दबाव डालती हैं। इसके अलावा, इन निर्माणों से उत्पन्न कचरा और मलबा पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है। अगर समय रहते इन पर रोक नहीं लगाई गई, तो यह क्षेत्र गंभीर समस्याओं का सामना कर सकता है। हल्द्वानी में हो रहे इस निर्माण से जुड़े लोग न केवल कानूनी दायरे से बाहर काम कर रहे हैं, बल्कि वे इस क्षेत्र के इकोलॉजिकल संतुलन को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं।

क्या होगा हल्द्वानी का भविष्य?

हल्द्वानी गांव में हो रहा यह अवैध निर्माण ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण और प्रशासन के लिए एक बड़ा सवाल है। क्या शाहबेरी जैसी गलती फिर से दोहराई जाएगी? या फिर समय रहते प्रशासन इसे रोकने के लिए कदम उठाएगा? यह मामला सिर्फ कानून की अवहेलना का नहीं है, बल्कि यह प्रशासनिक विफलता और जनता के विश्वास की भी परीक्षा है। अगर समय पर सख्त कार्रवाई नहीं की गई, तो यह अवैध निर्माण न केवल इस क्षेत्र के लिए खतरा बनेगा, बल्कि प्राधिकरण की साख पर भी सवाल उठाएगा।

जिम्मेदार अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग

हल्द्वानी में हो रहे अवैध निर्माण को लेकर स्थानीय लोग और एक्टिविस्ट्स लगातार आवाज उठा रहे हैं और प्राधिकरण से जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि इस तरह के निर्माण को नजरअंदाज करना या इसमें लिप्त होना, न केवल प्रशासनिक विफलता है, बल्कि जनता के साथ धोखा भी है। लोगों का विश्वास प्राधिकरण पर से उठता जा रहा है, और यह जरूरी है कि प्राधिकरण जल्द से जल्द इस मुद्दे का समाधान निकाले और अवैध निर्माणों पर कड़ी कार्रवाई करे।


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