Ghaziabad New Name News : गाजियाबाद का नाम बदलने की तैयारी, गजप्रस्थ बनने की ओर बढ़ता ऐतिहासिक शहर, जानिए नाम के पीछे की कहानी और ऐतिहासिक तथ्य
गाजियाबाद, रफ्तार टुडे। उत्तर प्रदेश में शहरों के नाम बदलने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। अब इसमें देश की राजधानी दिल्ली से सटा हुआ गाजियाबाद भी शामिल हो सकता है। गाजियाबाद का नाम बदलकर ‘गजप्रस्थ’ किए जाने का प्रस्ताव नगर निगम द्वारा तैयार किया गया है। यह प्रस्ताव अब शासन को भेजे जाने की प्रक्रिया में है। यदि इस प्रस्ताव को हरी झंडी मिलती है, तो गाजियाबाद जल्द ही इतिहास के पन्नों में अपने नए नाम गजप्रस्थ से जुड़ जाएगा।
क्या है गजप्रस्थ नाम के पीछे की कहानी?
गाजियाबाद का वर्तमान नाम मुगलकाल की देन है, जब मुगल वजीर गाजीउद्दीन ने इस शहर की स्थापना की थी और इसे गाजीउद्दीन नगर नाम दिया गया। लेकिन नगर निगम के इतिहासकारों और शोधकर्ताओं का मानना है कि इस क्षेत्र का इतिहास इससे कहीं पुराना है। महाभारत काल के इतिहास में इस क्षेत्र का नाम ‘गजप्रस्थ’ के रूप में मिलता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, गजप्रस्थ वह क्षेत्र था जहां हाथियों को रखा जाता था और उनका प्रशिक्षण किया जाता था। इसलिए, इस क्षेत्र का नाम गजप्रस्थ पड़ा था। नगर निगम का मानना है कि इस नाम का पुनर्स्थापन गाजियाबाद की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने का प्रयास है।
नगर निगम की बैठक में हुआ था नाम परिवर्तन का फैसला
गाजियाबाद नगर निगम बोर्ड की एक महत्वपूर्ण बैठक में नाम बदलने को लेकर विचार-विमर्श किया गया। बैठक में नाम बदलने के लिए तीन नाम प्रस्तावित किए गए थे- गजप्रस्थ, दूधेश्वरनगर और हरनंदीपुरम। लंबे विचार-विमर्श के बाद ‘गजप्रस्थ’ नाम पर सहमति बनी। नगर निगम के अनुसार, इस नाम में इतिहास और संस्कृति दोनों का प्रतीकात्मक महत्व है, जो गाजियाबाद की पहचान को और गहराई देगा। अब इस प्रस्ताव को शासन के पास भेजने की तैयारी की जा रही है।
प्रस्ताव के पक्ष में सबूत जुटाने की तैयारी
प्रस्ताव को शासन के पास भेजने से पहले, नगर निगम इस नाम के पक्ष में साक्ष्य जुटाने में लगा हुआ है। अधिकारियों का कहना है कि साक्ष्यों के अभाव में शासन से मंजूरी मिलने में दिक्कत हो सकती है। इसीलिए, ऐतिहासिक दस्तावेज़ों और महाभारत के संदर्भों को एकत्र किया जा रहा है। इस प्रकार गजप्रस्थ नाम का चयन गाजियाबाद के ऐतिहासिक महत्व और सांस्कृतिक धरोहर को पुनर्जीवित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
महाभारत से गजप्रस्थ का गहरा संबंध
महाभारत में पांडवों और कौरवों के बीच संपत्ति और अधिकारों को लेकर हुए संघर्ष की कथा तो सभी जानते हैं। पांडवों के समय में दिल्ली को इंद्रप्रस्थ के नाम से जाना जाता था। महाभारत काल के अनुसार, भगवान कृष्ण ने दुर्योधन से पांडवों के लिए पांच गांव मांगे थे: इंद्रप्रस्थ, व्याघ्रप्रस्थ, स्वर्णप्रस्थ, पांडुप्रस्थ, और तिलप्रस्थ। इसी क्रम में, आज का गाजियाबाद गजप्रस्थ के नाम से जाना जाता था। इसका नाम गजप्रस्थ इसलिए पड़ा क्योंकि यहां पर हाथियों का संरक्षण और पालन-पोषण किया जाता था। नगर निगम का मानना है कि इस प्राचीन नाम को पुनर्जीवित कर गाजियाबाद के गौरवशाली इतिहास को पुनः जीवंत किया जा सकता है।
मुगल काल में गाजीउद्दीन नगर नाम कैसे पड़ा?
इतिहासकारों के अनुसार, गाजियाबाद का वर्तमान नाम मुगल वजीर गाजीउद्दीन के नाम पर पड़ा था, जिन्होंने इस क्षेत्र की स्थापना की थी। उन्होंने इस शहर को गाजीउद्दीन नगर का नाम दिया था, लेकिन अंग्रेजों के शासनकाल में इसे संक्षेप में गाजियाबाद कहा जाने लगा। आजादी के बाद यह मेरठ जिले का हिस्सा रहा और 1976 में इसे अलग जिला घोषित कर दिया गया। समय के साथ यह दिल्ली एनसीआर का एक प्रमुख औद्योगिक और आवासीय केंद्र बन गया, लेकिन इसका पुराना नाम अब केवल इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह गया है।
दुर्गा भाभी के नाम पर भी प्रस्तावित हुआ था नाम
1999 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने स्वतंत्रता संग्राम की क्रांतिकारी दुर्गा भाभी के सम्मान में गाजियाबाद का नाम बदलकर ‘दुर्गा भाभी नगर’ करने का सुझाव दिया था। दुर्गा भाभी ने स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारियों की सहायता के लिए अपना योगदान दिया था और भगत सिंह के साथ कई अहम अभियानों में भाग लिया था। वाजपेयी जी का मानना था कि गाजियाबाद का नाम बदलकर दुर्गा भाभी नगर करने से शहर का नाम एक प्रेरणा स्रोत बनेगा। हालांकि, इस प्रस्ताव को तत्कालीन समय में मंजूरी नहीं मिली थी।
नाम परिवर्तन की प्रक्रिया और चुनौतियां
नाम बदलने की प्रक्रिया इतनी आसान नहीं होती। शासन से मंजूरी मिलने के बाद, इसका कार्यान्वयन कई चरणों में किया जाता है। नए नाम को जन-जन में स्थापित करने के लिए जगह-जगह बोर्ड लगाए जाएंगे और सभी सरकारी दस्तावेजों में परिवर्तन करना होगा। यह एक लंबा और खर्चीला प्रक्रिया है। इसके अलावा, नाम परिवर्तन के लिए स्थानीय जनता का समर्थन और उनके विचार भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
अन्य जिलों के नाम बदलने की मांग भी उठी
उत्तर प्रदेश में कई जिलों के नाम बदलने का चलन जोरों पर है। जहां प्रयागराज (पहले इलाहाबाद) और अयोध्या (पहले फैजाबाद) जैसे नाम बदले जा चुके हैं, वहीं आजमगढ़ का नाम बदलकर ‘आर्यगढ़’, मैनपुरी का ‘मयनपुरी’, संभल का ‘कल्किनगर’, देवबंद का ‘देववृंदपुर’, आगरा का ‘अग्रवन’, और अलीगढ़ का ‘हरिगढ़‘ करने की मांगें भी जोर पकड़ रही हैं। स्थानीय समुदाय और धार्मिक संगठनों द्वारा इन नामों को बदलने की लगातार मांग उठाई जा रही है।
शहर के नाम में बदलाव का असर
शहर का नाम बदलने का न सिर्फ ऐतिहासिक बल्कि आर्थिक और सामाजिक प्रभाव भी होता है। कई लोगों का मानना है कि इससे स्थानीय लोगों में अपने शहर के प्रति गर्व की भावना बढ़ेगी, जबकि कुछ इसे राजनीतिक और सांस्कृतिक पहचान को बदलने का प्रयास मानते हैं। गाजियाबाद के नाम को बदलने का प्रस्ताव भले ही शासन स्तर पर लंबित हो, लेकिन यह शहर के भविष्य पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है।
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