BJP News : "बड़े बआबरो होकर तेरे कूंचे से निकले हम", भाजपा गौतमबुद्ध नगर में ब्राह्मण नेता की पैरवी के बावजूद पैनल में नाम न जाने की कहानी, सर्वेसर्वा से मौकापरस्त तक का सफर, ब्राह्मण नेता की सत्ता में टिके रहने की लालसा
गौतम बुद्ध नगर, रफ़्तार टुडे। भारतीय राजनीति में जातिवाद और गुटबाजी का प्रभाव किसी से छिपा नहीं है। कुछ ऐसा ही दृश्य हाल ही में गौतम बुद्ध नगर भाजपा में देखने को मिला, जहां एक ब्राह्मण भाजपा नेता को न केवल नॉमिनेशन फाइल करने में कठिनाई हुई, बल्कि तमाम प्रयासों और पैरवी के बावजूद उनका नाम पैनल में नहीं जा सका। यह मामला जिले में भाजपा के आंतरिक गुटों और जातिगत समीकरणों पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
नॉमिनेशन किया, पर पैरवी में रह गए पीछे
इस ब्राह्मण भाजपा नेता ने पूरी तैयारी के साथ नॉमिनेशन फाइल किया था। उम्मीद थी कि पार्टी में उनकी वरिष्ठता और मेहनत को पहचान मिलेगी, लेकिन पैनल में नाम शामिल न होने की वजह से उनका सपना अधूरा रह गया।
सुपरडिटी का शिकार:
जिले के कुछ गुटों ने मजबूत पैरवी कर उनके खिलाफ रणनीति बनाई।
विधायक और सांसदों की चापलूसी भी उनके पक्ष में काम नहीं आई। ब्राह्मण समुदाय के नेता होने के बावजूद उन्हें आंतरिक राजनीति का शिकार होना पड़ा।
पैनल से बाहर रहना: ब्राह्मण नेताओं के लिए बड़ा झटका
भाजपा की जिले की तीन सदस्यीय सूची में इस ब्राह्मण नेता का नाम शामिल न होना गौतम बुद्ध नगर भाजपा में जातिगत समीकरणों और गुटीय राजनीति का उदाहरण है।
गुर्जर और अन्य जातियों का प्रभाव:
जिले में गुर्जर नेताओं का प्रभाव इतना मजबूत है कि अन्य जातियों को पीछे धकेल दिया जाता है। यह मामला ब्राह्मण समुदाय के नेताओं के लिए सबसे बड़ा धिक्कार का कारण बन गया है।
चुनाव के लिए जातिगत समीकरण:
भाजपा के आंतरिक समीकरणों में जातिवाद के चलते कई योग्य नेताओं को हाशिये पर धकेल दिया जाता है।
अपने आप को मानते थे सर्वे सर्वा, जिन लोगों ने उसके लिए मेहनत करी उन्हीं को भूल गए बनने की बाद
गौतम बुद्ध नगर की राजनीति में ब्राह्मण समुदाय का हमेशा से एक अहम स्थान रहा है। भाजपा के ब्राह्मण नेता, जो कभी अपने आप को पार्टी के सर्वेसर्वा मानते थे, आज उस स्थिति में पहुंच गए हैं, जहां उनकी राजनीतिक पहचान और प्रभाव धीरे-धीरे कमजोर होता जा रहा है।
मेहनतकश कार्यकर्ताओं, और उनके लिए अंधा समर्थक को भी भुला दिया
भाजपा संगठन में कई ब्राह्मण नेता ऐसे रहे हैं, जिन्होंने पार्टी की मजबूती के लिए दिन-रात मेहनत की। लेकिन जैसे ही ये नेता बड़े पदों पर पहुंचे, उन्होंने उन्हीं लोगों को भुला दिया जिन्होंने उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाने में सहयोग दिया था। यह भूल न केवल उनके सहयोगियों को खलती है, बल्कि उनके राजनीतिक कद को भी कमजोर करती है।
मौकापरस्त, चापलूसी और सुपरडिटी की राजनीति
ऐसे कई नेता अब खुद को केवल नेताओं की चापलूसी तक सीमित कर चुके हैं। बड़े पदों की महत्वाकांक्षा में वे पार्टी के पैनल में अपना नाम तक भेजने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। जो कभी राजनीति में अपनी छवि को मजबूत मानते थे, वे अब केवल नेताओं के दरबार में हाजिरी लगाने और रोटी का इंतजाम करने तक सिमट गए हैं।
उच्च स्तर के नेताओं ने जातिवाद को किया दरकिनार
हालांकि, इस पूरे मामले में एक सकारात्मक पहलू भी सामने आया।
जातिवाद से ऊपर उठने का प्रयास:
पार्टी के कुछ उच्च स्तर के ब्राह्मण नेताओं ने गुर्जर नेताओं को वोट दिया। यह जातिवाद खत्म करने का एक अच्छा उदाहरण है। इसने दिखाया कि राजनीति में जाति से परे भी सोचा जा सकता है।
नेतृत्व की कमी: इन नेताओं में न तो सामूहिक नेतृत्व का दृष्टिकोण बचा और न ही उन्होंने नई पीढ़ी को आगे बढ़ाने की कोशिश की।
सत्ता में टिके रहने की लालसा: पद पर बने रहने की लालसा ने उन्हें जमीनी राजनीति से दूर कर दिया।
सहयोगियों से दूरी पद मिलने की बाद ही: जिन्होंने कभी उनके लिए मेहनत की, उन्हें भूल जाना अब इन नेताओं के पतन का मुख्य कारण बन गया है।
यह स्थिति तब और स्पष्ट हो जाती है जब ऐसे नेता, जो कभी संगठन में अपने प्रभाव के लिए जाने जाते थे, अब पार्टी के किसी पैनल में अपना नाम भेजने में भी असमर्थ हैं। यह केवल उनके राजनीतिक पतन का संकेत नहीं है, बल्कि उनके आत्मविश्वास की कमी को भी उजागर करता है।
ब्राह्मण भाजपा नेता के लिए क्या यह अंत है?
इस घटना ने न केवल ब्राह्मण भाजपा नेता की राजनीति को झटका दिया है, बल्कि यह भी साबित किया है कि गौतम बुद्ध नगर जैसे जिले में भाजपा के आंतरिक समीकरण कितने उलझे हुए हैं।
भविष्य की राह:
यह ब्राह्मण नेता अब पार्टी में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए नए तरीके ढूंढेंगे। सवाल यह है कि क्या भाजपा इस गुटीय राजनीति और जातिवाद से उबर पाएगी?
निष्कर्ष
गौतम बुद्ध नगर भाजपा का यह मामला राजनीतिक गुटबाजी और जातिगत खींचतान का प्रतीक है। एक तरफ जहां ब्राह्मण भाजपा नेता को नॉमिनेशन और पैनल में स्थान नहीं मिला, वहीं दूसरी ओर, कुछ नेताओं ने जातिवाद से ऊपर उठकर एक सकारात्मक संदेश दिया।
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