देशप्रदेश

Said- either they do not appear, if they appear, they are asked to postpone the hearing; Angry CJI said – We summon the Chief Secretary, then things will be fine | कहा- या तो ये पेश नहीं होते, पेश हुए तो सुनवाई टालने को कहते हैं; हम मुख्य सचिव को तलब कर लेते हैं, तभी चीजें ठीक होंगी

  • Hindi News
  • Local
  • Delhi ncr
  • Said Either They Do Not Appear, If They Appear, They Are Asked To Postpone The Hearing; Angry CJI Said We Summon The Chief Secretary, Then Things Will Be Fine

नई दिल्ली6 घंटे पहलेलेखक: पवन कुमार

  • कॉपी लिंक
चीफ जस्टिस रमना की पीठ की कड़ी फटकार के बाद राज्य सरकार की ओर से पेश वकील ने बिना शर्त माफी मांगी। -फाइल फोटो - Dainik Bhaskar

चीफ जस्टिस रमना की पीठ की कड़ी फटकार के बाद राज्य सरकार की ओर से पेश वकील ने बिना शर्त माफी मांगी। -फाइल फोटो

अदालतों में सुनवाई टालने का अनुरोध करना आम बात है। मगर कभी-कभी अति हो जाती है। ऐसे ही एक मामले में मध्यप्रदेश के सरकारी वकीलों पर सुप्रीम कोर्ट ने गहरी नाराजगी जताई है। चीफ जस्टिस एन. वी. रमना की पीठ ने मंगलवार को राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई और मुख्य सचिव को तलब करने की बात कही। इसके बाद राज्य सरकार की ओर से पेश वकील ने बिना शर्त माफी मांगी। पीठ ने कहा, अब मध्य प्रदेश के किसी मामले की सुनवाई तभी होगी, जब एडवोकेट जनरल खुद जिरह करें।

दरअसल, मंगलवार को चीफ जस्टिस रमना की पीठ में मध्य प्रदेश सरकार से जुड़े मामले की सुनवाई थी। प्रक्रिया शुरू होते ही सरकारी वकील ने सुनवाई टालने का आग्रह किया। इससे नाराज चीफ जस्टिस ने कहा, “मध्य प्रदेश राज्य इतना खराब है कि वहां के वकील कभी किसी केस की सुनवाई में कोर्ट की मदद नहीं करते। या तो अदालत आते नहीं और आते हैं तो सुनवाई टालने का आग्रह करते हैं।’

कोर्ट रूम लाइव : पीठ के सवालों का सरकारी वकील के पास जवाब नहीं सीजेआई: एमपी सरकार की ओर से कितने स्टैंडिंग काउंसिल हैं? सरकारी वकील: मुझे नहीं पता। मैं पैनल काउंसलर हूं। सीजेआई: आपको केस कौन असाइन करता है? कोर्ट नोटिस कौन रिसीव करता है? सरकारी वकील: मेरे पास इसकी जानकारी नहीं है। सुप्रीम कोर्ट: हम मुख्य सचिव को तलब करते हैं। वही राज्य सरकार के बचाव में दलीलें देंगे। सरकारी वकील: माई लॉर्ड, समय दीजिए। हम स्टैंडिंग काउंसिल को उपस्थित होने को कहते हैं। सीजेआई: बहुत समय दे चुके। राज्य सरकार के 20-30 वकील होते हैं और कोई पेश न हो, यह आश्चर्यजनक है। वकील: माई लॉर्ड यह जानकारी मेरे पास नहीं है। सीजेआई: इसी केस में नहीं, मध्यप्रदेश के कई केस का यही हाल है। हमें सरकारी वकीलों से मदद नहीं मिलती। हम मुख्य सचिव को बहस करने को कहेंगे। अब यही एक तरीका बचा है। वकील: मैं अपने व्यवहार के लिए बिना शर्त माफी मांगता हूं। सीजेआई: हम आपके स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं हैं। अब एडवोकेट जनरल पेश हों तभी सुनवाई करेंगे।

इधर, SC ने कहा- दुष्कर्म पीड़िता की कम उम्र मृत्युदंड का पर्याप्त कारण नहीं
सुप्रीम काेर्ट ने कहा है कि दुष्कर्म पीड़िता की कम उम्र ही दुष्कर्मी को मृत्यु दंड देने का एकमात्र या पर्याप्त आधार नहीं हो सकता। कर्नाटक में पांच साल की बच्ची से दुष्कर्म व उसकी हत्या के दाेषी की मौत की सजा 30 साल की कैद में बदलते हुए जस्टिस एल नागेश्वर राव की पीठ ने यह टिप्पणी की। दोषी इरप्पा सिदप्पा मुरूगन्नवार ने हाई काेर्ट से मिली फांसी की सजा काे चुनाैती दी थी।

हालांकि शीर्ष कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि 30 साल की सजा के दौरान दोषी को कोई राहत या छूट नहीं दी जाएगी। पीठ में शामिल जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा, ‘हमारा मानना है कि कैदी में सुधार व पुनर्वास की गुंजाइश रहती है। उम्रकैद उसे प्रायश्चित का माैका देगी। अपराधी को उम्रभर कैद में रखने से समाज के लिए गंभीर खतरे को दूर किया जा सकता है। इसलिए सजा उम्रकैद में बदल रहे हैं। इरप्पा ने 28 दिसंबर 2010 को पड़ोसी की पांच साल की बच्ची से दुष्कर्म कर हत्या कर दी थी।

खबरें और भी हैं…

Source link

Related Articles

Back to top button