Sharda University News : लोकतंत्र की पाठशाला बनी शारदा यूनिवर्सिटी!, युवाओं ने युवा संसद में रखे देशहित के मुद्दे, बोले – हम हैं नया भारत!, नेताओं की तरह बोले छात्र, रखा हर मसले पर दमदार पक्ष

ग्रेटर नोएडा, रफ्तार टुडे।
शारदा विश्वविद्यालय एक बार फिर लोकतांत्रिक संवाद और युवा नेतृत्व की जीवंत मिसाल बना, जब विश्वविद्यालय परिसर में भारत सरकार के संसदीय कार्य मंत्रालय के तत्वावधान में 17वीं राष्ट्रीय युवा संसद प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। इस आयोजन का संयोजन विश्वविद्यालय के छात्र कल्याण विभाग और शारदा स्कूल ऑफ लॉ ने मिलकर किया। इस विशेष आयोजन ने न केवल छात्रों के लोकतांत्रिक ज्ञान को समृद्ध किया, बल्कि उनके भीतर देशहित के मुद्दों को लेकर चिंतन और दृष्टिकोण को भी निखारा।
शुरुआत हुई प्रेरणादायक आतिथ्य के साथ
कार्यक्रम की शुरुआत बेहद गरिमामयी रही, जिसमें देश के प्रतिष्ठित विद्वान और गणमान्य अतिथि शामिल हुए। मंच की शोभा बढ़ाने वालों में शामिल थे:
- डॉ. अशोक बाजपेयी, पूर्व राज्यसभा सांसद
- डॉ. नुजहत परवीन खान, प्रोफेसर, जामिया मिलिया इस्लामिया
- डॉ. एसपी सिंह, रजिस्ट्रार, चाणक्य राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, पटना (ग्रुप स्तरीय समन्वयक, युवा संसद प्रतियोगिता)
- पी. के. गुप्ता, कुलाधिपति, शारदा विश्वविद्यालय
सभी अतिथियों का स्वागत डॉ. ऋषिकेश दवे (डीन, स्कूल ऑफ लॉ) और डॉ. शांति नारायणन ने पौधा भेंट करके किया, जो पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक बनकर उपस्थित हुआ। इस आत्मीय स्वागत ने आयोजन की गरिमा को और बढ़ा दिया।
नेताओं की तरह बोले छात्र, रखा हर मसले पर दमदार पक्ष
कार्यक्रम का केंद्रीय विषय था – राष्ट्रीय शिक्षा नीति और त्रिभाषा फार्मूला। इसके साथ ही छात्रों को यह स्वतंत्रता भी दी गई थी कि वे मणिपुर संकट, युवा सशक्तिकरण, शिक्षा में क्षेत्रीय असंतुलन, बेरोजगारी, संवैधानिक अधिकार, डिजिटल इंडिया और महिला सशक्तिकरण जैसे ज्वलंत विषयों पर अपनी राय रखें।
कुल 55 छात्रों ने अपने विचार 50 मिनट की अवधि में सांसदों की तरह वाद-विवाद शैली में प्रस्तुत किए। कभी गर्मजोशी से, कभी ठहराव के साथ और कभी तथ्यात्मक आंकड़ों को रखते हुए, छात्रों ने यह सिद्ध कर दिया कि आज की युवा पीढ़ी केवल दर्शक नहीं, बल्कि बदलाव की वाहक है।

लोकतांत्रिक संस्कारों को सींचता यह आयोजन
यह प्रतियोगिता मात्र एक वाद-विवाद कार्यक्रम नहीं था, बल्कि यह लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने वाला मंच था, जहां छात्रों को नेतृत्व, सार्वजनिक बोलने, विचार-विनिमय और आलोचनात्मक सोच जैसे कौशलों को निखारने का अवसर मिला। यह आयोजन एक ऐसी पाठशाला बन गया जिसमें छात्रों ने सीखा कि संसद क्या होती है, वहां क्या जिम्मेदारियाँ होती हैं और कैसे एक सांसद को देशहित में अपनी भूमिका निभानी होती है।
अतिथियों की सराहना और सुझाव
डॉ. अशोक बाजपेयी ने छात्रों की प्रस्तुति पर प्रसन्नता जताते हुए कहा, “यदि देश का युवा ऐसे विषयों पर बात कर रहा है, तो यकीन मानिए हमारा लोकतंत्र भविष्य में और भी सशक्त होगा।”
वहीं, डॉ. नुजहत परवीन खान ने त्रिभाषा फार्मूले की सामाजिक व शैक्षणिक प्रासंगिकता को बारीकी से समझाया और छात्रों को भाषाई समरसता की दिशा में कार्य करने का आह्वान किया।
समापन में कृतज्ञता के स्वर
कार्यक्रम का समापन डॉ. काव्या चंदेल द्वारा प्रस्तुत धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। उन्होंने सभी अतिथियों, आयोजकों और प्रतिभागियों को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए धन्यवाद दिया और आशा जताई कि ऐसे आयोजन भविष्य में भी लगातार होते रहें।
एक आयोजन, कई संदेश
यह युवा संसद न केवल ज्ञानवर्धक रही, बल्कि उसने यह भी साबित कर दिया कि यदि सही मंच मिले तो युवा न केवल देश के भविष्य को दिशा दे सकते हैं, बल्कि वर्तमान को भी चेतना और ऊर्जा से भर सकते हैं। शारदा विश्वविद्यालय के इस आयोजन ने न केवल छात्रों के विचारों को उड़ान दी, बल्कि लोकतंत्र के बीज को भावी पीढ़ी में रोपने का भी सराहनीय प्रयास किया।
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