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DPS School On High Court Fatkar : स्कूलों को 'पैसा कमाने की मशीन' बनाने वालों को कोर्ट की दो टूक, डीपीएस को हाईकोर्ट की कड़ी फटकार, गौतमबुद्ध नगर के स्कूल भी कर रहे खुलेआम लूट, कहां है जिला प्रशासन?

नई दिल्ली/नोएडा, रफ्तार टुडे।
देश की राजधानी दिल्ली से सटे नोएडा और ग्रेटर नोएडा में शिक्षा के नाम पर जारी लूट का मामला अब अदालत की चौखट तक पहुंच चुका है। दिल्ली हाईकोर्ट ने डीपीएस द्वारका स्कूल को फीस बढ़ोतरी के मामले में जमकर फटकार लगाई है। कोर्ट ने दो टूक कहा कि “स्कूल अब पैसा कमाने की मशीन बन चुके हैं।” जस्टिस सचिन दत्ता ने सुनवाई करते हुए मौजूदा हालात को चिंताजनक और अमानवीय करार दिया है।


डीपीएस द्वारका पर आरोप – फीस न देने वाले बच्चों के साथ भेदभाव और उत्पीड़न

मामला सिर्फ फीस बढ़ाने तक सीमित नहीं रहा। कोर्ट में पेश हुई जांच रिपोर्ट में बताया गया कि जिन अभिभावकों ने बढ़ी हुई फीस देने से इनकार किया, उनके बच्चों को मानसिक प्रताड़ना दी गई। ऐसे छात्रों को लाइब्रेरी में अलग बैठाया गया, कैंटीन में जाने से रोका गया, और साथी छात्रों से बात करने पर भी प्रतिबंध लगाया गया।

इस पर न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि “स्कूल में पढ़ाई होनी चाहिए, उत्पीड़न नहीं।” उन्होंने स्कूल प्रबंधन को चेताया कि अगर इस तरह का व्यवहार दोहराया गया, तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी।


2020 से 2025 तक लगातार फीस बढ़ाता रहा डीपीएस – जांच में खुलासा

कोर्ट के आदेश पर बनाई गई 8 सदस्यीय कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा कि डीपीएस द्वारका ने पिछले पांच वर्षों में हर साल मनमानी तरीके से फीस में बढ़ोतरी की है। किसी भी तरह का पारदर्शी सिस्टम या अभिभावकों से राय लेने की प्रक्रिया नहीं अपनाई गई।

यह भी सामने आया कि फीस बढ़ाने का कोई ठोस औचित्य नहीं था, बल्कि यह केवल मुनाफा कमाने की मंशा से किया गया।


दिल्ली सरकार का सख्त रुख, 10 स्कूलों को कारण बताओ नोटिस

दिल्ली की रेखा सरकार ने निजी स्कूलों पर शिकंजा कसते हुए हाल ही में 10 नामी स्कूलों को कारण बताओ नोटिस जारी किए हैं। इन स्कूलों पर भी फीस में बेवजह बढ़ोतरी और छात्रों के साथ भेदभाव के आरोप लगे हैं।

राज्य सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि अगर स्कूल अपनी मनमानी बंद नहीं करते हैं, तो उनकी मान्यता रद्द की जा सकती है।

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नोएडा-ग्रेटर नोएडा में भी जारी है खुलेआम फीस लूट – कोई रोक नहीं

दिल्ली की तरह ही गौतम बुद्ध नगर जिले में भी कई स्कूल लगातार फीस बढ़ाकर अभिभावकों की जेबों पर डाका डाल रहे हैं। लेकिन यूपी सरकार और स्थानीय जिला प्रशासन इस मुद्दे पर गंभीर नजर नहीं आते। केवल एक मीटिंग करके 5, 6 कॉलेज पर दड लगाकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है

कई स्कूल बिना किसी अनुमति के हर साल फीस बढ़ा रहे हैं, किताबें और यूनिफॉर्म भी अपने कैंपस में ही बिकवाते हैं, जिससे छात्रों के माता-पिता को एक विशेष दुकान या विकल्प की आज़ादी नहीं मिलती।


गौतमबुद्ध नगर की निष्क्रियता पर सवाल

स्थानीय अभिभावकों का आरोप है कि गौतम बुद्ध नगर के इस मामले में निष्क्रिय हैं। ना तो किसी स्कूल पर कार्रवाई होती है, और ना ही कोई निगरानी समिति सक्रिय है। केवल एक मीटिंग करके 5, 6 कॉलेज पर दड लगाकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है

अक्सर शिकायतों के बाद भी कोई जांच नहीं होती, जिससे स्कूलों को और अधिक मनमानी करने का अवसर मिल जाता है।


अभिभावकों में नाराजगी – शिक्षा अब सेवा नहीं, व्यवसाय बन चुकी है

एक अभिभावक का कहना है, “हम हर साल उम्मीद करते हैं कि फीस स्थिर रहेगी, लेकिन हर साल 10-15% की बढ़ोतरी थोप दी जाती है। न स्कूलों की ऑडिट रिपोर्ट मिलती है, न ही उनकी सेवाओं में कोई सुधार।

शिक्षा का अधिकार आज मुनाफे का धंधा बन चुका है, जिसमें मध्यम वर्ग सबसे अधिक पीड़ित है।


अब क्या होगा अगला कदम? – सुप्रीम कोर्ट की निगरानी या केंद्रीय हस्तक्षेप जरूरी

इस पूरे मुद्दे पर अब यह मांग उठ रही है कि फीस नियंत्रण के लिए एक केंद्रीय कानून बनाया जाए जो पूरे देश में लागू हो। दिल्ली हाईकोर्ट की सख्ती के बाद उम्मीद की जा रही है कि अन्य राज्यों में भी अभिभावकों को राहत मिलेगी।

नोएडा में भी जरूरत है एक विशेष शिक्षा निगरानी समिति की, जो हर स्कूल की फीस और अन्य गतिविधियों की नियमित निगरानी करे।


रफ्तार टुडे की अपील – शिक्षा के नाम पर हो रही लूट पर लगे विराम

रफ्तार टुडे अभिभावकों की इस लड़ाई के साथ है। हम प्रशासन से अपील करते हैं कि नोएडा और ग्रेटर नोएडा के स्कूलों की फीस संरचना की सार्वजनिक ऑडिट कराई जाए और फीस निर्धारण के लिए स्पष्ट गाइडलाइन बनाई जाए।


जागरूक रहें – अपने अधिकारों की मांग करें

  • अगर किसी स्कूल में फीस को लेकर मनमानी हो रही है,
  • किताबें या यूनिफॉर्म खरीदने के लिए बाध्य किया जा रहा है,
  • या आपके बच्चे के साथ भेदभाव हो रहा है –

तो जिला विद्यालय निरीक्षक (DIOS) को लिखित शिकायत करें और उसकी एक प्रति शिक्षा विभाग और स्थानीय मीडिया को भी दें।


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