Block UP Police News : "संवेदनशीलता की कसौटी पर खरे उतरे सीओ अनुज चौधरी, इस वाले बयान पर मिली क्लीनचिट, जांच में नहीं मिला कोई दोष", सोशल मीडिया पर उड़ा था बयान का मुद्दा, पुलिस आचरण नियमों के उल्लंघन का आरोप

संभल, रफ्तार टुडे।
उत्तर प्रदेश के संभल जिले में तैनात सर्कल ऑफिसर (सीओ) अनुज चौधरी को लेकर हाल ही में उठे विवाद के बाद पुलिस विभाग ने उन्हें बड़ी राहत दी है। होली और ईद के अवसर पर कथित तौर पर दिए गए एक बयान को लेकर सोशल मीडिया पर मचे बवाल और शिकायतों के बाद पुलिस मुख्यालय ने जांच बैठाई थी। लेकिन अब इस जांच की रिपोर्ट सामने आ चुकी है और सीओ अनुज चौधरी को क्लीनचिट दे दी गई है।
सोशल मीडिया पर उड़ा था बयान का मुद्दा, पुलिस आचरण नियमों के उल्लंघन का आरोप
सीओ अनुज चौधरी के कथित बयान को लेकर सोशल मीडिया पर आरोप लगाए गए थे कि उन्होंने धर्म आधारित त्योहारों को लेकर असंवेदनशील टिप्पणी की, जिससे पुलिस की निष्पक्षता पर सवाल उठ सकता है। मामला तब तूल पकड़ गया जब सामाजिक कार्यकर्ता अमिताभ ठाकुर ने इस मामले में आधिकारिक शिकायत दर्ज कराई और पुलिस आचरण नियमावली के उल्लंघन का आरोप लगाया।
क्या था पूरा विवाद? ‘सेवइयां खिलानी हैं तो गुजिया भी खानी पड़ेगी’ वाले बयान पर हुआ बवाल
अमिताभ ठाकुर की शिकायत के मुताबिक, सीओ अनुज चौधरी ने एक पीस कमेटी मीटिंग में कहा था, “होली साल में एक बार आती है, लेकिन जुमा 52 बार आता है। अगर सेवइयां खिलानी हैं तो गुजिया भी खानी पड़ेगी।”
इस बयान को धार्मिक संतुलन के नजरिए से आपत्तिजनक करार देते हुए आरोप लगाया गया कि यह पुलिस के आचरण की निष्पक्षता पर सवाल खड़ा करता है।
SP कानून-व्यवस्था की निगरानी में हुई जांच, नहीं मिला कोई दोष या पूर्वग्रह
मामले की गंभीरता को देखते हुए उत्तर प्रदेश पुलिस मुख्यालय ने एसपी कानून-व्यवस्था के नेतृत्व में जांच समिति गठित की। जांच में न सिर्फ संबंधित सीओ के बयान की गहराई से जांच की गई, बल्कि पीस कमेटी की बैठक में मौजूद अधिकारियों, सामाजिक प्रतिनिधियों और स्थानीय नागरिकों के बयान भी दर्ज किए गए।

जांच निष्कर्ष:
- सीओ के खिलाफ कोई ठोस साक्ष्य या पूर्वग्रह नहीं पाया गया।
- पुलिस आचरण नियमावली का कोई उल्लंघन नहीं हुआ।
- बयान को संदर्भ से काटकर सोशल मीडिया पर फैलाया गया।
स्थानीय लोगों और अधिकारियों ने भी दिया साथ, बोले – सीओ चौधरी हमेशा रहे संवेदनशील
जांच में यह तथ्य भी सामने आया कि सीओ अनुज चौधरी की कार्यशैली और व्यवहार को लेकर न तो आम जनता और न ही स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों की ओर से कोई नकारात्मक टिप्पणी दर्ज हुई।
बल्कि पीस कमेटी के कई सदस्यों ने उनके समभावपूर्ण रवैये की सराहना की।
साफ-सुथरी छवि के अधिकारी हैं अनुज चौधरी, पहले भी निभा चुके हैं कई संवेदनशील दायित्व
सीओ अनुज चौधरी को एक कड़क, लेकिन संवेदनशील अधिकारी के रूप में जाना जाता है। उनकी प्रभावी पुलिसिंग और समुदाय के साथ संवाद बनाने की क्षमता उन्हें आम लोगों के बीच लोकप्रिय बनाती है।
कई मौकों पर उन्होंने धार्मिक आयोजनों में शांति बनाए रखने में बड़ी भूमिका निभाई है।
क्लीनचिट के बाद बोले अधिकारी – ‘न्याय की जीत हुई, अफवाह फैलाने वालों को मिला जवाब’
पुलिस मुख्यालय की रिपोर्ट के बाद अधिकारी वर्ग में यह संदेश गया है कि बिना प्रमाण आरोप लगाना न सिर्फ कानूनन गलत है, बल्कि समाज को भी बांटने का काम करता है।
क्लीनचिट मिलने के बाद सीओ चौधरी को न केवल प्रशासनिक हलकों में राहत मिली है, बल्कि जनता का विश्वास भी और मज़बूत हुआ है।
क्या सीख देता है ये मामला?—सोशल मीडिया पर संवेदनशील मुद्दों की जिम्मेदार रिपोर्टिंग जरूरी
यह प्रकरण इस बात का सबूत है कि सोशल मीडिया पर संवेदनशील बयानों को संदर्भ से काटकर पेश करने की प्रवृत्ति आम होती जा रही है। ऐसे मामलों में पूरी जांच से पहले धारणाएं बना लेना किसी भी अधिकारी या संस्था के सम्मान को ठेस पहुंचा सकता है।
जांच पूरी, मामला बंद – अब सोशल मीडिया पर झूठ फैलाने वालों पर होगी नजर
अब जबकि इस मामले की पुलिस जांच पूरी हो चुकी है और सीओ को दोषमुक्त करार दिया गया है, प्रशासन उन खातों की निगरानी भी कर सकता है जिन्होंने इस बयान को तोड़-मरोड़ कर फैलाया था।
संभावना है कि भविष्य में फेक न्यूज और अफवाह फैलाने वालों पर आईटी एक्ट और साइबर अपराध की धाराओं में कार्रवाई की जा सकती है।
निष्कर्ष: संतुलन और सजगता से मिली राहत, अफवाहों पर सख्ती जरूरी
सीओ अनुज चौधरी के मामले में आई यह रिपोर्ट यह दर्शाती है कि पुलिस विभाग में न्यायिक जांच की प्रक्रिया निष्पक्ष और पारदर्शी है। सोशल मीडिया के इस दौर में, संवेदनशील पदों पर तैनात अधिकारियों के साथ जिम्मेदारीपूर्वक व्यवहार किया जाना चाहिए।
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