दिल्ली-एनसीआर के भूगोल में फंसते हैं प्रदूषक
दिल्ली चारों ओर से हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश से घिरी है। हवाओं के मामले में इसकी स्थिति कीप जैसी है। पड़ोसी राज्यों की मौसमी हलचल का सीधा असर दिल्ली-एनसीआर में पड़ता है। चारों तरफ से आने वाली हवाएं कीप सरीखे दिल्ली-एनसीआर में फंस जाती हैं। नतीजा गंभीर स्तर के प्रदूषण के तौर पर दिखता है।
सर्दी में मिक्सिंग हाइट व वेंटिलेशन इंडेक्शन में गिरावट
सर्दी में मिक्सिंग हाइट (जमीन की सतह से वह ऊंचाई, जहां तक आबोहवा का विस्तार होता है) कम होती है। गर्मियों के 4 किमी के विपरीत सर्दियों में यह एक किमी से भी कम रहता है। साथ ही वेंटिलेशन इंडेक्स (मिक्सिंग हाइट और हवा की चाल का अनुपात ) भी संकरा हो जाता है। इससे प्रदूषक ऊंचाई के साथ क्षैतिज दिशा में भी दूर-दूर तक नहीं फैल पाते। दिल्ली-एनसीआर का वातावरण कुछ ऐसा हो जाता है, जैसे कंबल से उसे ढंक दिया गया हो।
सर्दी में उत्तर, पश्चिम व उत्तर-पश्चिम से आती हैं हवाएं
गर्मी के उलट सर्दी में दिल्ली पहुंचने वाली हवाएं उत्तर, उत्तर पश्चिम और पश्चिम से दिल्ली-एनसीआर में पहुंचती हैं। कई बार 2500 से 3000 किमी दूर यूरोप से चलने वाली हवाएं राजधानी तक पहुंच जाती हैं। इस दौरान सतह पर चलने वाली हवाओं की चाल दो से तीन मीटर प्रति सेकंड तक पहुंच जाती है। जबकि गर्मी में यह 5-6 मीटर प्रति सेकंड रहती है। जबकि वातावरण के ऊपरी सतह पर चलने वाली ट्रांसपोर्टेशन विंड की चाल ज्यादा होती है। इस वजह से दूर के प्रदूषक तो दिल्ली-एनसीआर पहुंच जाते हैं, लेकिन सतह की हवाओं के सुस्त पड़ने से इनका दूर तक जाना संभव नहीं रहता।
गर्मी में पूर्वी व तेज होती है हवा की रफ्तार
गर्मी के मौसम में हवाओं की दिशा पूर्वी हो जाती है। इस दौरान भी कई बार पश्चिम दिशा से अफगानिस्तान, पाकिस्तान और राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों से गर्मी हवाएं दिल्ली-एनसीआर तक पहुंचती हैं। इससे वातावरण में गर्मी अधिक बढ़ती है। गर्मी के मौसम में भी हवाएं अपने साथ धूल के कण लेकर आती हैं, लेकिन हवा की रफ्तार अधिक होने की वजह से यह दिल्ली-एनसीआर से निकल जाती है।
मौसमी बदलाव से जल्दी आ रहा है स्मॉग का दौर
सर्दी के मौसम में हवाओं के रुख व रफ्तार और तापमान के मिश्रित असर से स्मॉग का दौर भी जल्दी आ रहा है। 1970 से 1993-94 तक नवंबर में दिखने वाली स्मॉग की चादर 1995 के बाद से अक्तूबर से ही दिख रही है। फरवरी तक इसका असर रहता है। सबसे गंभीर हालात नवंबर से लेकर जनवरी तक रहते हैं। स्मॉग की मोटी परत के कारण कई लोगों को सांस संबंधित व स्वास्थ्य से जुड़ी अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कुछ मामलों में लोगों की मौत तक हो जाती है।
अलग-अलग मौसम में हवाओं की दिशा, रफ्तार व पारे का प्रभाव प्रदूषण पर पड़ता है। सर्दी के मौसम में हवाओं की दिशा उत्तर-पश्चिम व उत्तर-पश्चिम की ओर हो जाती है। मिक्सिंग हाइट के कम होने व तापमान के लुढ़के के साथ प्रदूषक का असर दिल्ली-एनसीआर में स्मॉग के रूप में देखने को मिलता है। यह अक्तूबर में शुरू होकर जनवरी तक दिखता है और लोगों को स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
-राजेंद्र जेनामणी, वरिष्ठ वैज्ञानिक, भारतीय मौसम विभाग
बोले जानकार…
सर्दी का मौसम शुष्क होने के कारण मिक्सिंग हाइट कम कम हो जाती है। साथ ही हवा की रफ्तार भी दो से तीन मीटर प्रति सेकेंड रिकॉर्ड होती है। इससे प्रदूषक दिल्ली में ही जमा रह जाते हैं। यदि हवा की रफ्तार अधिक होती है तो प्रदूषक दिल्ली-एनसीआर से निकलकर कम हो जाएंगे। इससे प्रदूषण भी कम होगा। गर्मी के मौसम में वातावरण में अधिक गर्मी होती है और मिक्सिंग हाइट भी अधिक रहती है। हवा की रफ्तार का भी साथ देने की वजह से प्रदूषक दिल्ली-एनसीआर के वातावरण में अधिक मौजूद नहीं होते हैं।
-डॉ. दीपांकर साहा, पूर्व अतिरिक्त निदेशक, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
हवा में गाडिय़ों से निकलने वाले प्रदूषण व मौजूद गैस से भी प्रदूषक को बढ़ने में मदद मिलती है। वाहनों से प्रदूषित तत्व प्राथमिक प्रदूषक व वातावरण में मौजूद गैस से बनने वाले प्रदूषक द्वितीयक प्रदूषक कहलाता है। तापमान के कम होने के कारण हवा का दबाव भी कम हो जाता है और यह प्रदूषक हवा में जमा रहते हैं। इससे दिल्ली-एनसीआर की हवा भी दमघोंटू हो जाती है। पूरे इंडो-गंगेटिक प्लेन में प्रदूषण को लेकर बुरे हालात देखने को मिल जाएंगे।
-अनुमिता रॉय चौधरी, कार्यकारी निदेशक रिसर्च एंड एडवोकेसी, सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरमेंट