Metro News : "दिल्ली की मेट्रो में फंसा था एक पैर., और चल रही थी ज़िंदगी की आख़िरी घड़ियाँ, तभी आईं तीन फरिश्ते बनकर तीन देवियाँ, एक बुज़ुर्ग की ज़िंदगी बचाने की इस सच्ची घटना को पढ़कर आप भी कहेंगे, ‘दिल्ली सिर्फ राजधानी नहीं, इंसानियत की मिसाल है’"

ग्रेटर नोएडा, रफ्तार टुडे।
दिल्ली, जहाँ लाखों लोग रोज़ाना मेट्रो की रफ्तार के साथ अपनी मंज़िलों की ओर दौड़ते हैं। हर कोई अपनी-अपनी ग़मगीन कहानियों और उम्मीदों को लेकर सफर करता है। लेकिन कभी-कभी इस तेज़ रफ्तार में भी इंसानियत की ऐसी झलक देखने को मिलती है जो न केवल रुक कर सोचने पर मजबूर कर देती है बल्कि ज़िंदगी के मायने भी सिखा जाती है।
25 अप्रैल 2025 को कुछ ऐसा ही हुआ, जब दिल्ली मेट्रो के यमुना बैंक स्टेशन पर एक बुज़ुर्ग यात्री की जान पर बन आई। लेकिन उस खौफनाक क्षण में कुछ अनजान महिलाएं फरिश्ते बनकर आईं और एक ऐसे व्यक्ति की जान बचा ली जिसे वो जानती भी नहीं थीं।
मेट्रो की गलती नहीं, पर एक पल की देरी से बन गई थी जानलेवा स्थिति
62 वर्षीय भगवत प्रसाद शर्मा, जो कि पूर्व मीडिया एग्जीक्यूटिव और भारतीय जनता पार्टी (ग्रेटर नोएडा) से जुड़े हुए हैं, शुक्रवार को दिल्ली के बाराखंबा स्टेशन से नोएडा बॉटनिकल गार्डन के लिए मेट्रो से रवाना हुए। लेकिन इंसान हैं, भूल हो ही जाती है। गलती से वह वैशाली की ओर जाने वाली मेट्रो में चढ़ गए और जब गलती का अहसास हुआ, तब उन्होंने यमुना बैंक स्टेशन पर उतरने का फैसला किया।
जैसे ही वह उतरने लगे, दरवाज़ा बंद होने की घोषणा हुई और अचानक मेट्रो के दोनों गेट्स तेज़ी से बंद होने लगे। भगवत जी उतरते-उतरते गेट से टकरा गए और प्लेटफॉर्म की तरफ गिर पड़े। लेकिन उनका एक पैर अभी भी मेट्रो के गेट में फंसा हुआ था। मेट्रो किसी भी पल चल सकती थी और यह छोटी सी चूक जानलेवा साबित हो सकती थी।
एक तरफ था प्लेटफॉर्म पर गिरे शरीर का दर्द, दूसरी तरफ मेट्रो में फंसा हुआ पैर
यह दृश्य कल्पना से भी अधिक भयावह था। भगवत जी ने बताया कि जैसे ही वह ज़मीन पर गिरे, घुटने, कोहनी और कमर में ज़बरदस्त चोटें आईं। शरीर दर्द से कराह रहा था और सबसे बड़ी चिंता ये थी कि मेट्रो यदि चल पड़ी तो क्या बचेगा?
लेकिन जैसे ही संकट गहराया, वैसे ही किस्मत ने अपना एक नया चेहरा दिखाया।

तीन देवियाँ बनीं ‘धरती पर फरिश्ते’, बिना एक पल गंवाए दौड़कर पहुँच गईं मदद को
उस समय प्लेटफॉर्म पर मौजूद एक महिला अपनी दो बेटियों के साथ थीं। उन्होंने जैसे ही भगवत जी की स्थिति देखी, बिना कुछ सोचे समझे मदद को दौड़ पड़ीं। पहले तो उन्होंने मैट्रो स्टाफ को गेट खोलने के लिए आवाज़ दी, और जब दरवाज़ा खुला तो उन्होंने फंसा हुआ पैर बाहर निकाला।
इसके बाद उन्होंने भगवत जी को सहारा देकर उठाया, पास में सुरक्षित स्थान पर बैठाया, पानी पिलाया और लगातार उनका ध्यान रखा। भगवत जी कहते हैं कि वो महिला और उनकी बेटियाँ तब तक उनके शरीर को दबाती रहीं जब तक मेडिकल टीम नहीं पहुँच गई।
“उनके हाथों का स्पर्श जैसे माँ के आशीर्वाद जैसा था…”
भगवत प्रसाद शर्मा इस घटना को याद करते हुए बेहद भावुक हो जाते हैं। उन्होंने सोशल मीडिया पर इस घटना को साझा करते हुए लिखा:
“मैं उन दीदी और उनकी बेटियों का जीवनभर ऋणी रहूँगा। उनके हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ। उनके आशीर्वाद और समय पर की गई मदद के कारण ही मैं आज ज़िंदा हूँ।”
उनका कहना है कि अगर वो मेरी फेसबुक पोस्ट देख लें, तो मैं उनके चरण स्पर्श करना चाहता हूँ।
दिल्ली मेट्रो की मेडिकल टीम और एक सज्जन भी बने सहायक
इस घटना में दिल्ली मेट्रो की मेडिकल टीम और एक अन्य सज्जन भी महत्वपूर्ण किरदार में रहे। जैसे ही सूचना मिली, टीम मौके पर पहुँची और प्राथमिक चिकित्सा दी। भगवत जी ने उन सभी का हृदय से आभार प्रकट किया है।
इंसानियत की मिसाल बनी दिल्ली – जहाँ ज़िंदा है संवेदनाएँ
इस घटना ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया कि दिल्ली सिर्फ एक राजनीतिक राजधानी नहीं, यह इंसानियत की राजधानी भी है। जहाँ भीड़ के बीच से मदद के हाथ निकलते हैं और जहां दिलों में संवेदना आज भी जिंदा है।
कई बार हमें लगता है कि बड़े शहरों में लोग बेरुखे होते हैं, पर ये घटना बताती है कि सही समय पर सही लोग सामने आते हैं, और वही लोग असली नायक होते हैं।
फेसबुक पर पोस्ट के ज़रिए ढूँढ रहे हैं वो तीन देवियाँ
भगवत जी ने अपने फेसबुक पोस्ट में उस महिला और उनकी बेटियों से आग्रह किया है कि यदि वे यह पढ़ें तो कृपया संपर्क करें। वह उन्हें धन्यवाद कहना चाहते हैं और उनके इस उपकार के लिए जीवन भर कृतज्ञ रहेंगे।
दिल्ली मेट्रो प्रशासन से आग्रह – गेट बंद होने की प्रक्रिया को और सुरक्षित बनाया जाए
इस घटना के बाद एक सवाल उठता है – क्या मेट्रो के गेट्स इतनी तेज़ी से बंद होने चाहिए कि किसी की जान पर बन आए? भगवत जी ने यह भी आग्रह किया है कि मेट्रो प्रशासन को तकनीकी स्तर पर कुछ ऐसे सेंसर या सुरक्षा उपाय विकसित करने चाहिए जिससे कोई व्यक्ति गेट में फँसने की स्थिति में तुरंत अलार्म बजे और ट्रेन न चले।
दिल्ली की धड़कनों में आज भी बसी है इंसानियत – सलाम उस दीदी और उनकी बेटियों को!
जब तक दुनिया में ऐसे लोग मौजूद हैं, तब तक उम्मीदें ज़िंदा रहेंगी। ये घटना बताती है कि किसी को जानने की ज़रूरत नहीं होती, बस इंसानियत होनी चाहिए।
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