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Fortis Hospital News : कोविड के बाद बदल गई है बच्चों और युवाओं की ‘सांसों’ की तस्वीर, अस्थमा ने खामोशी से बढ़ाया कदम, अब इनहेलर बना ‘जीवन का रक्षक’विश्व अस्थमा दिवस पर विशेष रिपोर्ट, सावधान रहें, सतर्क बनें, सही इलाज अपनाएं

ग्रेटर नोएडा, 5 मई 2025 | रफ़्तार टुडे।
शहर की रफ्तार के साथ अब लोगों की सांसों की रफ्तार भी धीमी होती जा रही है। महामारी के बाद का दौर भले ही सतह पर सामान्य दिखाई देता हो, लेकिन अंदर ही अंदर कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं अपने पैर पसार चुकी हैं। इनमें सबसे बड़ा नाम है — अस्थमा, जो अब ना सिर्फ बुजुर्गों, बल्कि बच्चों और युवाओं की भी जिंदगी को अपनी गिरफ्त में ले रहा है। विश्व अस्थमा दिवस के मौके पर यह जानना बेहद जरूरी है कि अस्थमा अब पुरानी सांस की बीमारी नहीं रही, यह एक नया खतरा है, जो कोविड-19 के बाद और ज्यादा घातक रूप में सामने आया है।


बच्चों की सांसें भी असुरक्षित, हर पांच में एक मरीज अस्थमा से पीड़ित

ग्रेटर नोएडा के प्रमुख अस्पतालों में हर दिन दर्जनों लोग सांस लेने में दिक्कत की शिकायत लेकर पहुंच रहे हैं। इनमें करीब 20% मरीज अस्थमा के पाए जा रहे हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें 12 से 18 साल के किशोरों और छोटे बच्चों की संख्या भी तेजी से बढ़ी है।
फोर्टिस ग्रेटर नोएडा के पल्मोनोलॉजी विभाग के निदेशक डॉ. राजेश कुमार गुप्ता के अनुसार, “कोविड के बाद फेफड़ों की कार्यक्षमता में आई गिरावट ने अस्थमा के मामलों को बढ़ा दिया है। पहले जिन बच्चों को केवल एलर्जी होती थी, अब उनमें अस्थमा के अटैक की तीव्रता और आवृत्ति दोनों ही बढ़ गई हैं।”


कोविड ने कमजोर की प्रतिरोधक क्षमता, अस्थमा को मिली ‘खुली हवा’

कोविड ने सिर्फ फेफड़ों को ही नुकसान नहीं पहुंचाया, बल्कि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी कमजोर किया। इसी का फायदा अस्थमा जैसे पुराने लेकिन खतरनाक रोग को मिला। विशेषज्ञों के अनुसार, कोविड रिकवरी के बाद जो लोग लंबे समय तक सांस फूलने या थकान की शिकायत कर रहे हैं, उनमें से कई धीरे-धीरे अस्थमा की चपेट में आ चुके हैं।


इनहेलर: नया ‘मित्र’, पुराने भ्रम तोड़ने का समय

अस्थमा के उपचार को लेकर लोगों में अब भी कई गलत धारणाएं हैं। कई लोग मानते हैं कि इनहेलर के उपयोग से आदत लग जाती है या यह आखिरी उपाय होता है। लेकिन विशेषज्ञों की राय इससे बिल्कुल उलट है।
डॉ. गुप्ता का कहना है, “इनहेलर सबसे प्रभावी और सुरक्षित उपचार है। ये दवा को सीधे फेफड़ों तक पहुंचाता है, जिससे राहत जल्दी मिलती है। इनहेल्ड स्टेरॉयड का दीर्घकालिक उपयोग भी सुरक्षित माना गया है, जबकि ओरल स्टेरॉयड से साइड इफेक्ट्स की संभावना अधिक होती है।”


अस्थमा कोई संक्रामक रोग नहीं, पर जागरूकता है सबसे बड़ा इलाज

अस्थमा को लेकर समाज में फैली भ्रांतियों को दूर करना बेहद जरूरी है। यह बीमारी छूने से नहीं फैलती, लेकिन इलाज ना करने पर यह बेहद घातक हो सकती है। अस्थमा को यदि सही समय पर नियंत्रित कर लिया जाए, तो मरीज सामान्य जीवन जी सकता है।
बच्चों के माता-पिता को चाहिए कि वे लक्षणों को नज़रअंदाज़ न करें। हर बार सर्दी-जुकाम को सामान्य एलर्जी मानना गलत हो सकता है। यदि बच्चा बार-बार खांसता है, सीढ़ी चढ़ने पर थकता है या रात में सीटी जैसी आवाज आती है, तो डॉक्टर से परामर्श जरूर लें।


प्रदूषण, परागकण और धूल: अस्थमा के ‘अदृश्य दुश्मन’

पर्यावरणीय कारक अस्थमा को बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाते हैं। धूल, परागकण (pollen), गाड़ियों से निकलने वाला धुआं, और ठंडी हवा अस्थमा के मुख्य ट्रिगर हैं।
गर्मी में भी राहत की गारंटी नहीं है। गेहूं की कटाई के मौसम में हवा में परागकणों की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे अस्थमा के लक्षण तीव्र हो सकते हैं। मास्क पहनना, इनडोर एयर प्यूरीफायर का उपयोग और सफाई का ध्यान रखना इन ट्रिगर्स से बचने में सहायक हो सकता है।


अस्थमा की सही देखभाल से जी सकते हैं पूरी ज़िंदगी सामान्य तरीके से

अस्थमा कोई लाइलाज रोग नहीं है। सही समय पर डायग्नोसिस, नियमित इनहेलर थेरेपी और ट्रिगर से बचाव की आदतों के माध्यम से मरीज न केवल सामान्य जीवन जी सकता है, बल्कि पूरी तरह से सक्रिय भी रह सकता है।
बच्चों में अस्थमा के सही प्रबंधन से वे स्कूल, खेल और अन्य गतिविधियों में हिस्सा ले सकते हैं। जरूरी है कि माता-पिता और शिक्षक इस बीमारी के प्रति संवेदनशील रहें और इलाज में सहयोग करें।


थीम 2025: “सभी के लिए इनहेल्ड उपचार सुलभ बनाएं”

विश्व अस्थमा दिवस 2025 की थीम “Make inhaled treatment available for all” पर केंद्रित है। इसका उद्देश्य यह है कि इनहेलर जैसी आवश्यक दवाएं हर वर्ग तक आसानी से पहुंचें, और किसी को भी इस रोग के चलते जीवन की गुणवत्ता से समझौता न करना पड़े।


निष्कर्ष: समय रहते जागरूक हो जाएं, वरना सांसों पर भारी पड़ सकता है अस्थमा

अस्थमा कोई कल की चिंता नहीं, बल्कि आज की हकीकत बन चुकी है। यह रोग अब उम्र नहीं देखता। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक हर कोई इसकी चपेट में आ सकता है। ज़रूरत है सतर्क रहने, प्रदूषण से बचने और लक्षण दिखने पर इनहेलर को मित्र मानकर इलाज शुरू करने की। अगर हम आज सावधान हो जाएं, तो अस्थमा को भी नियंत्रित किया जा सकता है।


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