यह खुलासा नई दिल्ली स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के एक चिकित्सीय अध्ययन में हुआ है, जिसके आधार पर वैज्ञानिकों ने सलाह दी है कि बच्चों के सैंपल की जीनोम सीक्वेंसिंग बढ़ानी चाहिए। ओमिक्रॉन को लेकर साक्ष्य अभी कम हैं, लेकिन बच्चों के लिहाज से इसे सामान्य नहीं समझा जा सकता है।
मेडिकल जर्नल मेडरेक्सिव में अभी यह अध्ययन प्रकाशन से पूर्व समीक्षा की स्थिति में है। आईसीएमआर के वैज्ञानिकों का कहना है कि इस साल मार्च से जून के बीच 583 कोरोना संक्रमित बच्चों के सैंपल पर अध्ययन किया गया। इस दौरान प्रत्येक सैंपल की जीनोम सीक्वेंसिंग कराई गई और यह देखा गया कि 0 से 18 वर्ष तक की आयु के बच्चों में वायरस के कौन कौन से स्वरूप अधिक हैं? इसमें 16 कोरोना संक्रमित बच्चों के सैंपल दिल्ली और एनसीआर के अस्पतालों से लिए गए हैं।
दरअसल, देश के कई राज्यों में स्कूल फिर से खुल चुके हैं। तीसरी लहर को लेकर एक बहस भी छिड़ी हुई है, लेकिन अभी तक के चिकित्सीय अध्ययनों से पता चलता है कि अधिकांश बच्चों में संक्रमण का असर हल्का है। देश के चौथे सीरो सर्वे के अनुसार बच्चों में भी वयस्कों की भांति महामारी का जोखिम है। सर्वे में 6 से 17 वर्ष की आयु के 50 फीसदी से ज्यादा बच्चों (1819) में सीरो पॉजिटिविटी पाई गई। इनमें से ज्यादातर को भर्ती कराने की जरूरत नहीं पड़ी। हालांकि, वायरस के लगातार म्यूटेशन और ओमिक्रॉन वैरिएंट को देखते हुए बच्चों को लेकर सतर्कता बरतने की आवश्यकता है।
372 में मिले वायरस के गंभीर वेरिएंट
करीब तीन महीने तक सीक्वेंसिंग और फिर रिपोर्ट तैयार करने के बाद पता चला है कि 512 में से 372 बच्चों में कोरोना के गंभीर वैरिएंट मिले हैं, जबकि 51 बच्चों में चिंताजनक श्रेणी में रखे गए वैरिएंट पता चले हैं। यानी, 65.82 फीसदी बच्चों में डेल्टा वैरिएंट पाया गया। वहीं, 9.96 में कप्पा, 6.83 में एल्फा और 4.68 फीसदी बच्चों में B.1.36 नामक वैरिएंट मिला है। कप्पा और डेल्टा को छोड़ बाकी दोनों वैरिएंट अब दिखाई नहीं दे रहे हैं।
583 में से एक की आंख में खुजली और दर्द
अध्ययन में यह भी पता चला है कि बच्चों में कोरोना वायरस के लक्षण वयस्कों की तुलना में अलग भी हो सकते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि भले ही इसकी आशंका कम हो, लेकिन बच्चों में लक्षण अलग मिल सकते हैं। 583 में से एक बच्चा ऐसा भी था जिसे आंखों में खुजली और दर्द की शिकायत थी, जो वयस्कों में अब तक नहीं मिला है। एकमात्र इसी बच्चे ने संक्रमित होने के बाद थकान महसूस करने की जानकारी भी दी थी।
बच्चों की सीक्वेंसिंग करानी है बहुत जरूरी : वैज्ञानिक
चिकित्सीय अध्ययन में वैज्ञानिकों ने सलाह दी है कि अगर कोई बच्चा कोरोना संक्रमित मिलता है तो उसके सैंपल की जीनोम सीक्वेंसिंग होना भी बहुत जरूरी है। अगर बच्चे में संक्रमण के लक्षण मिल रहे हैं और अगले कुछ दिनों में उसके गंभीर स्थिति में जाने की आशंका है तो तत्काल सीक्वेंसिंग करानी चाहिए और यह देखना चाहिए कि आखिर बच्चे में वायरस का कौन सा स्वरूप है? उसी आधार पर चिकित्सीय प्रक्रिया को आगे बढ़ाना चाहिए।
देश में पहला बच्चा एल्फा से हुआ था संक्रमित : आईसीएमआर
आईसीएमआर के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बताया कि पिछले साल नवंबर के दौरान पहली बार कोरोना संक्रमित एक बच्चा मिला था। उसके सैंपल की सीक्वेंसिंग में एल्फा वैरिएंट की पुष्टि हुई थी। इसके बाद इनकी संख्या बढ़ती चली गई। साथ ही, नए वैरिएंट भी मिलने शुरू हो गए।